भारत के विकास पर इण्डिया का ब्रेक ! ग्रेटर नोएडा के विकास में किसानों की सहमति, तोशा कंपनी असहमत क्यों ?
India's brake on India's development! Farmers agreed to the development of Greater Noida, why Tosha Company disagrees?

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : ग्रेटर नोएडा से ग्रेटर नोएडा वेस्ट और नोएडा की ओर जाते समय तिलपता गोलचक्कर से महज चंद कदमों की दूरी पर 130 मीटर सड़क का छोटा सा टुकड़ा बदहाल स्थिति में है। चमचमाती सड़क पर सरपट दौड़ती वाहनों की गति पर यहां अचानक ब्रेक लग जाता है। ट्रेफिक जाम के कारण हर रोज यहां से गुजरने वाले लाखों वाहन चालकों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। टूटी सड़क के कारण यहां कई बार लोग हादसों का शिकार भी हुए हैं। सवाल उठता है कि पूरे शहर की सड़कों की दशा चमकाने वाला ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण इस सड़क के टुकड़े को क्यों नहीं बना रहा है ? प्राधिकरण सड़क को बना नहीं रहा है अथवा कोई मजबूरी है ? जनहित के नाम पर अरजेंसी क्लॉज लगाकर किसानों की जमीनों का रातों रात अधिग्रहण करने वाला प्राधिकरण जमीन के मामूली टुकड़े को प्राप्त करने में मजबूर हो सकता है?
ग्रेटर नोएडा और नोएडा को ग्रेटर नोएडा वेस्ट के रास्ते जोड़ने वाली 130 मीटर सड़क काफी महत्वपूर्ण है। यह सड़क भविष्य में एनएच-9 को जेवर में निर्माणाधीन नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से जोड़ेगी। तिलपता चौक के पास सड़क बुरी तरह क्षतिग्रस्त है।संबंधित जमीन का मामला इलाहबाद हाईकोर्ट में लंबित है। यह जमीन टेलीविजन पिक्चर टयूब बनाने वाली तोशा कंपनी की है। वर्तमान में कंपनी में किसी प्रकार का उत्पादन नहीं हो रहा है। कंपनी की जमीन 130 मीटर सड़क के बीचों बीच स्थित होने के कारण प्राधिकरण लगातार तोशा कंपनी के प्रबंधन से बातचीत कर मामले का समाधान करने का प्रयास करता रहा है। इसके बावजूद कोई परिणाम नहीं निकल सका है। हाईकोर्ट ने भी प्राधिकरण को इस संबंध में जमीन को खरीदने अथवा आपसी सहमति से समाधान के लिए किसी अन्य विकल्प को तलाशनें की बात कही है।
प्राधिकरण में तैनाती के बाद से ही सीईओ एनजी रवि कुमार ने इस प्रकरण को गंभीरता से लिया है। सीईओ और उनकी टीम ने एक बार फिर तोशा कंपनी के प्रबंधन से बातचीत शुरू की। सूत्रों के अनुसार तोशा कंपनी प्रबंधन मोलभाव में खुद को बेहतर स्थिति में पाकर प्राधिकरण के सामने गैरवाजिब शर्तें रख रहा है। कंपनी प्रबंधन सड़क के आड़े आ रही अपनी जमीन की बेहतर कीमत के साथ लगभग 17 बीघा अतिरिक्त जमीन का भी बेहतर मोलभाव चाहता है। वहीं, प्राधिकरण किसी भी कीमत पर इन शर्तों को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है। प्राधिकरण का मानना है ऐसा करना नियम विरूद्ध होगा। ऐसा करना व्यवहारिक नहीं है।
फिलहाल तोशा कंपनी प्रबंधन प्राधिकरण के बीच शुरू हुआ बातचीत का सिलसिला टूट गया है। ऐसे में हर दिन सड़क पर यात्रा करने वाले लाखों वाहन चालकों को समस्या से बहुत जल्द निजात पाने का सपना भी टूट गया है। प्राधिकरण द्वारा यात्रियों एवं वाहन चालकों को कुछ राहत देने का प्रयास किया गया था। कंपनी प्रबंधन की जिद के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। प्रतीत हो रहा है कि कंपनी प्रबंधन प्राधिकरण पर दबाव बनाकर गैरवाजिब मांगों को मनवाना चाहता है। बहरहाल, प्राधिकरण समस्या समाधान के दूसरे विकल्पों पर भी विचार कर रहा है। संभवत: न्यायपालिका के दखल से निकट भविष्य में कोई समाधान निकल जाए। फिलहाल पूरे प्रकरण में प्रशासन, प्राधिकरण, शासन, और न्यायपालिका पर तोशा कंपनी प्रबंधन भारी पड़ता दिख रहा है।
जिले में एक दौर था जब कई परियोजनाओं के लिए जनहित की दुहाई देकर किसानों की जमीनों को रातों रात अरजेंसी क्लॉज लगाकर अधिग्रहण कर लिया गया था। कई परियोजनाओं का जनहित से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। फिर भी इन परियोजनाओं को लोकहित से जोड़कर परिभाषित किया गया था। वहीं, 130 मीटर सड़क का लगभग एक सौ मीटर का टुकड़ा बुरी तरह से बदहाल है। प्रतिदिन लाखों लोगों को असुविधा होती है। सड़क निर्माण सीधे तौर पर जनहित से जुड़ा मुद्दा होने के बावजूद तोशा कंपनी प्रबंधन की जमीन के मामूली टुकड़े को हासिल करने में प्रशासन, प्राधिकरण, शासन और सरकार पूरी तरह असफल साबित हुए हैं। आश्चर्य है कि जनहित को आधार बनाकर बड़े बड़े फैसले सुनाने वाली न्यायपालिका इस प्रकरण में जनहित नहीं देख पा रही है।
सवाल उठता है क्या आम आदमी, किसानों और पूंजीपतियों के मामले में जनहित की अलग अलग परिभाषाएं हैं ? क्या देश के विकास के लिए जनहित का तर्क किसानों पर ही लागू होता है, पूंजीपतियों पर नहीं ? क्या देश में जनहित की कीमत किसान और आम आदमी ही चुकाएगा, सत्ता और व्यवस्था पर मजबूत पकड़ के कारण पूंजीपति केवल जनहित का उपभोग ही करेगा ? क्या जनहित के आधार पर बनी सड़कों पर तोशा कंपनी प्रबंधन यात्रा नहीं करता है ? यदि ऐसा नहीं है तो फिर तोशा कंपनी जमीन देने के बदले गैरवाजिब शर्तें प्राधिकरण के सामने रखकर विकास का विरोध नहीं कर रहा है ? क्या ग्रेटर नोएडा में भारत के विकास पर इंडिया के तोशा कंपनी जैसे पूंजीपतियों द्वारा ब्रेक लगाया जा रहा है ? क्या देश के विकास के लिए पूंजीपतियों की सम्पत्तियों का अधिग्रहण किया जाना वर्जित है ? क्या देश के विकास में पूंजीपतियों का हित ही जनहित बन गया है ? इन सभी सवालों के जवाब सरकारों को तलाशनें होंगे। फिर भी ग्रेटर नोएडा में तोशा कंपनी प्रकरण में तो कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है।