दादरी विधानसभा सीट पर जो गलती समाजवादी पार्टी ने की, वही गलती हरियाणा में कांग्रेस ने दोहराई
The mistake that Samajwadi Party made in Dadri assembly seat, the same mistake was repeated by Congress in Haryana

Panchayat 24 : हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। चुनाव परिणाम से तस्वीर लगभग साफ हो गई है। चुनाव परिणाम से कांग्रेस को जहां बड़ा झटका लगा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी लगातार तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाने में संभवत: नायब सिंह सैनी हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। हरियाणा चुनाव परिणाम कई मायनों में उत्तर प्रदेश की दादरी विधानसभा सीट से समानता रखता है। यह भी कह सकते हैं कि साल 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दादरी सीट का परिणाम कई मायनों में हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 से तुलनात्मक रूप से समान है। इस सीट पर जिस मुद्दे को उछालकर समाजवादी पार्टी ने इस सीट को जीतने की कोशिश की थी, कुछ इसी प्रकार की कोशिश हरियाणा में कांग्रेस पार्टी ने की है। दोनों जगह समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी को भारतीय जनता पार्टी से हार का सामना करना पड़ा है।
दादरी विधानसभा चुनाव 2022 और हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में तुलनात्मक समानता
दरअसल, साल 2022 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में गौतम बुद्ध नगर जिले की दादरी विधानसभा सीट को समाजवादी पार्टी ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। उसी समय दादरी में सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर विवाद शुरू हुआ था। यह विवाद दादरी विधानसभा के बहुसंख्यक गुर्जर मतदाताओं से जुड़ था। यह प्रकरण देश भर के गुर्जर समाज के मतदाताओं की भावनाओं को प्रभावित कर रहा था। समाजवादी पार्टी ने इस प्रकरण को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जोड़कर भाजपा को गुर्जर विरोधी साबित करने का दाव चला। शुरूआत में समाजवादी पार्टी का यह दाव कारगर साबित होता दिख रहा था। भाजपा उम्मीदवार के विरोध में गुर्जर समाज के अंदर भारी आक्रोश दिखाई दे रहा था। बता दें कि भाजपा ने इस सीट पर गुर्जर समाज के नागर गौत्र के तेजपाल सिंह नागर को अपना उम्मीदवार बनाया था। वहीं, समाजवादी पार्टी ने दादरी विधानसभा सीट पर गुर्जर समाज के भाटी गौत्र के राजकुमार भाटी को अपना उम्मीदवार बनाया था। चुनाव के शुरूआती चरण में राजकुमार भाटी तेजपाल सिंह नागर पर भारी पड़ते दिख रहे थे। जैसे जैसे चुनाव मतदान के करीब आता गया, समाजवादी पार्टी उम्मीदवार राजकुमार भाटी और उनके समर्थकों ने चुनाव को पूरी तरह से गुर्जर बनाम गैर गुर्जर बना दिया। कई गुर्जर बाहुल्य गांवों में तेजपाल सिंह नागर का विरोध भी हुआ। मतदान संपन्न हुआ। समाजवादी पार्टी दादरी विधानसभा सीट पर अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त दिखाई दे रही थी। लेकिन चुनाव परिणाम उलट रहा। दादरी विधानसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार की हार की बात कहने वाले राजनीतिजक जानकारों को बड़ा झटका लगा। भाजपा उम्मीदवार तेजपाल सिंह नागर ने दादरी विधानसभा सीट पर प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी जीत दर्ज की और समाजवादी पार्टी उम्मीदवार को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।
वहीं, कुछ इसी तरह कांग्रेस ने हरियाणा की सत्ता तक पहुंचने के लिए जाट समाज को माध्यम बनाने की रणनीति पर काम किया। कांग्रेस ने जाट समाज को राजनीतिक संदेश दे दिया कि भाजपा जाट विरोधी है। भाजपा के रहते जाट हरियाणा की सत्ता तक नहीं पहुंच सकते। हरियाणा में कांग्रेस के संदेश को जाटों के बीच पहुंचाने की जिम्मेवारी कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस के सांसद और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेन्द्र हुड्डा को सौंपी गई। नेरेटिव बनाने के लिए किसान, जवान और पहलवान का सहारा लिया गया। तीनों को इस प्रकार पेश किया गया कि हरियाणा में इनका पर्यायवाची जाट समाज ही है। इसका असर भी हरियाणा की चुनावी राजनीति में दिखाई देने लगा। हरियाणा के जाट बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों का जमकर विरोध हुआ। भाजपा उम्मीदवारों को जाट बाहुल्य गांवों में प्रवेश तक नहीं करने दिया गया। जाट बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा के समर्थकों के साथ मारपीट भी की गई। राजनीतिक विश्लेषक हरियाणा में भाजपा की हार को स्वीकार कर चुके थे। यहां तक की एग्जिट पोल में भाजपा की करारी हार और कांग्रेस की प्रचंड जीत के दावे कर रहे थे। चुनाव सम्पन्न हुआ। चुनाव परिणाम ने यहां भी सभी को चौंका दिया। भाजपा लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हो गई।
दोनों ही चुनाव में जाति विशेष के ध्रुवीकरण के विरोध में दूसरी जातियों के एकीकरण को जन्म दिया
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 में गौतम बुद्ध नगर की दादरी विधानसभा चुनाव परिणाम एवं हरियाणा के 2024 के विधानसभा चुनाव परिणाम से एक निष्कर्ष निकलता है कि जब किसी बहुसंख्यक जाति का किसी रानजीतिक दल के पक्ष में ध्रुवीकरण होता है तो उसका दूसरे पक्ष में भी प्रभाव पड़ता है। दूसरी अधिकांश जातियां एक होकर बहुसंख्यक जाति के ध्रुवीकरण के खिलाफ विशेष प्रकार के एकीकरण को जन्म देती हैं। इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि राजनीति में बड़ी मछली के खिलाफ छोटी छोटी मछलियां अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए बड़ी मछली का निर्माण करती है। इसका लाभ दूसरे मुख्य प्रतिद्वंदी दल को मिल जाता है। दादरी विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी की ओर से मिहिर भोज प्रकरण की आड़ में गुर्जर जाति का जिस प्रकार से ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया उससे विधानसभा की दूसरी जातियां आशंकित हो गई। कई मुद्दों पर आपसी मतभेद भुलाकर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में भारी मतदान किया। कुछ ऐसा ही हरियाणा चुनाव में कांग्रेस के साथ भी हुआ। कांग्रेस ने जाटवाद का अतिवादी ध्रुवीकरण किया। जिसके चलते प्रदेश की दूसरी जातियां आपसी छोटे छोटे मतभेद के बावजूद भाजपा के पक्ष में लामबंद हो गई। परिणामस्वरूप हरियाणा के दूसरे क्षेत्रों अहिरवाल, कुरूक्षेत्र, बागड़ में कांग्रेस की जाट आधारित रणनीति के विपरीत प्रभाव दिखा। भाजपा को इसका लाभ हुआ है।
जाति विशेष का ध्रुवीकरण बाहरी एवं बनावटी आवरण, जाति के लोग ने मुद्दों के आधार पर नकारा
कई बार देखा गया है कि राजनीतिक दलों के द्वारा निजी लाभ के लिए बहुसंख्यक जाति का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए उस समाज के कुछ प्रभावशाली लोगों को साथ लेकर ऐसा बाहरी आवरण तैयार करते हैं कि उस जाति का एक-एक वोटर उनके पक्ष में मतदान करेगा। लेकिन इस जाति के लोग कई बार मुद्दों के आधार पर अथवा दूसरे कारणों से ध्रुवीकरण को खारिज कर देते हैं। जातीय ध्रुवीकरण का कुछ ऐसा ही नमूना दादरी विधानसभा चुनाव 2024 में देखा गया जब गुर्जर जाति के मतदाताओं ने गुर्जर जाति का ध्रुवीकरण करने का प्रयोग करने वाली समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की अपेक्षा भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में भारी मतदान किया था। कुछ ऐसा ही दृश्य हरियाणा चुनाव में देखने में आ रहा है। यहां कांग्रेस ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए जाट जाति का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया। लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि जाट समाज ने भी बहुत हद तक इस ध्रुवीकरण को नकार दिया है। भाजपा की बड़ी जीत में जाट लैंड में भी भाजपा ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।