गौतम बुद्ध नगरवासियों से 24 साल पूर्व किए गए अन्याय का प्रायश्चित करने का मौका क्यों चूक रही है भाजपा ?
Why is BJP missing the opportunity to atone for the injustice done to the people of Gautam Buddha Nagar 24 years ago?

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में यदि भारत की विशेषताओं का वर्णन किया जाए तो सबसे पहले लोकतांत्रिक गणतंत्र की बात की जाती है। एक लोकतांत्रित गणतंत्र राष्ट्र के प्रधानमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सफलतापूर्वक 11 साल पूरे कर चुके है। उत्तर प्रदेश में योगीआदित्यनाथ भी सफलतापूर्वक 8 साल पूरे कर चुके हैं। इस उपलक्ष में ग्रेटर नोएडा प्रेसक्लब में भाजपा द्वारा एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। प्रेसवार्ता को उत्तर प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री कुंवर बृजेश सिंह ने संबोधित किया। उनकी बातों से मैं सहमत हूं, संतुष्ट कतई नहीं। उनकी बातों से लगा कि या तो वह गौतम बुद्ध नगरवासियों के साथ हुए अन्याय से परिचित नहीं है, या फिर जानबूझकर वह नजर बचा रहे हैं।
भाजपा गौतम बुद्ध नगर के लोगों के साथ हुए अन्याय से परिचित नहीं है, यह स्वीकार्य नहीं किया जा सकता। यह अन्याय भाजपा की प्रदेश सरकार द्वारा 24 साल पूर्व किया गया था। भाजपा सरकार ने एक झटके में गौतम बुद्ध नगर के लोगों को लोकतंत्र की पहली पाठशाला कहे जाने वाले निकाय चुनावों (ग्राम पंचायत) से वंचित किए जाने की पटकथा लिख दी थी। इस पटकथा का ही परिणाम है कि गौतम बुद्ध नगर में धीरे-धीरे ग्राम पंचायतें समाप्त हो रही हैं। भाजपा चाहे तो यह सिलसिला रूक सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपा गौतम बुद्ध नगरवासियों के साथ 24 साल पूर्व किए गए अन्याय का प्रायश्चित करने का मौका चूक रही है ?
साल 2001 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा को एक औद्योगिक टाऊनशिप मानकर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 क्यू का तर्क देते हुए एक अध्यादेश के जरिए नोएडा-ग्रेटर नोएडा में ग्राम पंचायतों का अस्तित्व समाप्त कर दिया था। उस समय ग्राम प्रधानों के विरोध के कारण भाजपा सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे, लेकिन अध्यादेश को वापस नहीं लिया गया। इसी को आधार बनाकर आगे आने वाली सरकारों ने गौतम बुद्ध नगर में ग्राम पंचायत चुनावों की बहाली पर कोई विचार नहीं किया, बल्कि इन्हें समाप्त करने की गांवों की बदहाली की कहानी लिखना शुरू कर दिया।
परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी ग्राम पंचायत चुनावों में गौतम बुद्ध नगर के 145 गांवों में लोकतंत्र की प्रथम पाठशाला कहे जाने वाले ग्राम पंचायत चुनाव नहीं होंगे। शेष 62 गांवों में यह व्यवस्था कब तक लागू रहेगी यह भी मुश्किल है। बदले में नगर निकाय जैसा कोई विकल्प भी नहीं दिया जा रहा है। परिणामस्वरूप 145 गांव पूरी तरह नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण के रहमों करम पर निर्भर हैं। उत्तर प्रदेश में सत्ता के शीर्ष पर रही सरकारों का एक तर्क समझ से परे रहा है कि किस आधार पर गौतम बुद्ध नगर के गांवों को एक टाऊनशिप का हिस्सा मान लिया गया ?
गौतम बुद्ध नगर में वास्तव में एक पूर्ण इंडस्ट्रियल टाऊनशिप के रूप में एनटीपीसी टाऊनशिप स्थित हैं। सवाल उठता है क्या जिन गांवों में ग्राम पंचायत चुनाव समाप्त हुए हैं, वहां एनटीपीसी जैसी आधुनिक सुविधाओं वाली व्यवस्था लागू हैं ? क्या प्राधिकरणों ने सभी गांवों का कायाकल्प करके एनटीपीसी जैसी टाऊनशिप बना दिया है ? सच्चाई यह है गांवों में आधे अधूरे विकास कार्य हो रहे हैं जिससे उनकी हालत बद से बदतर हो गई है। गांव, गांव रहे नहीं हैं, और शहर बन नहीं सके हैं। गांव तेजी से भविष्य का बड़ा स्लम बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। जिले के कुछ गांव तो लगभग स्लम बन चुके हैं। आज गांवों का प्राधिकरणों पर कोई नियंत्रण नहीं है। औद्योगिक विकास के लिए अपनी जमीन देने वाले ग्रामीणों ने संविधान से मिले मूल अधिकार को भी लगभग खो ही दिया है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि ग्राम पंचायतों में भी भारी भ्रष्टाचार होता है। लोगों को स्थानीय निकास (ग्राम पंचायत चुनाव) से विमुख कर देना इसका विकल्प कतई नहीं हो सकता है। ग्राम पंचायतों में फैले भ्रष्टाचार नियंत्रण एवं पारदर्शिता के लिए उपचार होना चाहिए।
विपक्षी दल के तौर पर भाजपा के नेताओं ने भी गौतम बुद्ध नगर में समाप्त हो रही ग्राम पंचायतों का विरोध किया था। स्थानीय नेताओं ने बढ़ चढ़कर दावे किए थे कि सत्ता में आने पर उनकी सरकार जिले में ग्राम पंचायतों को बहाल कराएगी। केन्द्र में 11 साल और प्रदेश में 8 सालों से सत्ता में होने के बावजूद भाजपा ने इस विषय को भुला दिया है। आश्चर्य इस बात का है कि भाजपा को सत्ता से बेदखल करके सत्ता हासिल करने का कपोल स्वपन देख रहे विपक्षी दलों के नेता भी इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं।
इससे पता चलता है कि गौतम बुद्ध नगर में विपक्ष मानसिक रूप से बहुत कमजोर है। सत्ताधारी दल भाजपा के सामने विपक्ष लगभग अपनी हार स्वीकार कर चुका है। औपचारिकता के लिए ही सत्ताधारी दल के निर्णयों पर सीमित प्रतिक्रिया देता है। अपने दल में अपनी उपस्थिति के लिए चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेते हें। गौतम बुद्ध नगर में सत्ता के विरोध के अपने कर्तव्य को मानो विपक्ष भूल ही गया है। कांग्रेस लगभग मैदान से बाहर है। समाजवादी पार्टी चाहकर भी अपनी गति बढ़ा नहीं पा रही है। बसपा अपने स्वर्णिमकाल में भी इस विषय पर निर्णायक कदम नहीं उठा सकी थी। इस पैमाने पर किसान नेता भी चुप्पी साधे हुए है। यह भी किसान की बात करते हैं, लेकिन गांव को भूल गए हैं। यह इन्हें फिट बैठ रहा है।
यदि गौतम बुद्ध नगर जिले के 145 गांवों के लोगों को स्थानीय निकायों से वंचित रखा जाता है तो सवाल उठता है कि क्या यह जिला भारत का हिस्सा नहीं है ? क्या देश की राजधानी के करीब गौतम बुद्ध नगर नाम का कोई टापू है जिस पर लोगों को उनके संवैधानिक लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है ? क्या गौतम बुद्ध नगर देश के हर नागरिक को लोकतांत्रिक तरीके से स्थानीय निकाय प्रक्रिया में भागीदारी का अधिकार देने वाला संविधान लागू नहीं होता है ? क्या गौतम बुद्ध नगर एक दुधारू पशु है जिसको सत्ता में आने वाला दल अपने तरीके से दुहता है ? क्या गौतम बुद्ध नगर सफेदपोशों, भ्रष्ट नौकरशाहों और माफियाओं के लिए लूट का अड्डा बनकर रह गया है ?
यदि वास्तव में भारतीय जनता पार्टी केन्द्र की मोदी सरकार के 11 साल और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के 8 साल पूरे होने के उपलक्ष में गौतम बुद्ध नगरवासियों को कुछ देना ही चाहती है तो ग्राम पंचायतों की बहाली करके उनका संवैधानिक अधिकार लौटा दे। लोगों के लिए इससे अच्छा कोई उपहार नहीं हो सकता है। यह सबकुछ इतना मुश्किल भी नहीं है। इस देश में जब जम्मु एवं कश्मीर से धारा 370 हट सकती है तो गौतम बुद्ध नगर से एक अध्यायदेश को समाप्त करके गौतम बुद्ध नगर में ग्राम पंचायतों की बहाली भी हो सकती है। सही मायने में यही गौतम बुद्ध नगर की जनता के साथ हुए अन्याय के लिए भाजपा का वास्तविक प्रायश्चित होगा।