स्पेशल स्टोरी

संभावनाओं के रथ पर सवार अखिलेश यादव ने जातिवादियों को दिया झटका, राजकुमार भाटी की सफाई लोगों को क्‍यों नहीं आई रास ?

Akhilesh Yadav riding on the chariot of possibilities gave a shock to the casteists, why did people not like Rajkumar Bhati's clarification?

Panchayat 24 : अखिलेश यादव द्वारा माता प्रसाद पाण्‍डे को उत्‍तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद कुछ जातिवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं वैचारिक धरातल को चकनाचूर करते हुए जोर का झटका दिया है। इनमें से कुछ नेता और कार्यकर्ता अखिलेश यादव के फैसले का विरोध कर रहे हैं। वहीं, कुछ नेता और कार्यकर्ता ऐसे भी है जो अपनी राजनीतिक मजबूरियों के कारण पार्टी अध्‍यक्ष के फैसले को मास्‍टर स्‍ट्रोक बताते हुए समर्थन में तर्क भी पेश कर रहे हैं। अखिलेश यादव के फैसले का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि उन्‍होंने पार्टी की जीत का आधार बनी सोशल इंजीनियरिंग पीडीए की मूल भावना को चोट पहुंचाई है। इन लोगों को समझाने के लिए पार्टी प्रवक्‍ता राजकुमार भाटी ने अपने टविटर (एक्‍स) पर एक पोस्‍ट करते हुए अखिलेश यादव के फैसे का समर्थन करने की बात कही है।

जरूरी नहीं है कि हर निर्णय आपके मन माफिक हो या हर फैसला आपकी समझ में ही आए l किंतु नेता के ऊपर भरोसा करके चलोगे तभी पार्टी आगे बढ़ेगी I जो निर्णय हमारे नेता ने लिया हम सबको उसका समर्थन करना चाहिए।

————— राजकुमार भाटी, पार्टी प्रवक्‍ता, समाजवादी पार्टी

राजकुमार भाटी के इस पोस्‍ट में अखिलेश यादव के फैसले पर सवाल उठाने वाले पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को डांटने वाले लहजे में लिखा है कि जरूरी नहीं कि हर निर्णय आपके मनमाफिक हो। इस पोस्‍ट में पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की समझ पर सवाल उठाते हुए लिखा गया है कि जरूरी नहीं कि हर फैसला आपकी समझ में ही आए। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को  राजकुमार भाटी ने सझाते हुए कहा है कि नेता के ऊपर भरोसा करके चलोगे तभी पार्टी आगे बढ़ेगी। अंत में उन्‍होंने संगठन और पार्टी के भले के लिए राजनीतिक नैतिकता के आधार पर सलाह देते हुए लिखा है कि जो निर्णय हमारे नेता ने लिया है, हम सबको उसका समर्थन करना चाहिए। राजकुमार भाटी ने बड़े ही संतुलित रूप में इस पोस्‍ट को लिखा है। इस पोस्‍ट में उन्‍होंने मुक्‍तकंठ से अखिलेश यादव के फैसले का समर्थन नहीं किया है। जिस तरह से वह इस फैसले को पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओ से स्‍वीकार करने वाला पोस्‍ट किया है, उससे राजनीतिक मजबूरी का भाव अधिक प्रकट हो रहा है।

जानकारों की माने तो अखिलेश यादव द्वारा नई सोशल इंजीनियरिंग पीडीए का प्रयोग भले ही लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव में कामयाब रहा हो, लेकिन आगामी चुनावों में इसकी सफलता को लेकर बेहतर संभावनाएं नहीं है। वहीं, कांग्रेस भी लोकसभा चुनावों की कामयाबी के बाद 12 प्रतिशत वोटबैंक वाले ब्राह्मण वोटरों को साधने का प्रयास करेगी।

अखिलेश यादव जानते हैं कि आगामी उपचुनाव और 2027 के विधानसभा चुनावों में  भाजपा हिन्‍दुत्‍व के कार्ड को अधिक मजबूती से धार देगी। ऐसी स्थिति में पीडीए की असल परीक्षा होगी। भाजपा के हिन्‍दुत्‍व की तुलना में पीडीए को एकजुट करके रखना अधिक चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में अखिलेश यादव पीडीए की मजबूती के लिए भाजपा के हिन्‍दुत्‍व में 12 प्रतिशत की भागीदारी वाले ब्राह्मण वोटरों को साधना चाहते हैं। ऐसा करके वह एक तीर से दो निशाना लगाना चाहते हैं। पहला, वह सर्वसमाज समर्थक होने का संदेश देना चाहते हैं। दूसरा, यदि पीडीए के कमजोर  पड़ने पर दलित और पिछड़ा वर्ग के मतदाता साथ छोड़कर जाते हैं तो उनकी भरपाई ब्राह्मण वोटरों से हो जाए।

वहीं, भाजपा एक बार फिर चुनावों में अपने हिन्‍दुत्‍व के कार्ड को अधिक धार देगी। ऐसे में भाजपा के निशाने पर दलित और पिछड़ा वर्ग के मतदाता होंगे। कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों के नाम लिखने का आदेश देकर योगी आदित्‍यनाथ ने हिन्‍दुत्‍व के सहारे ओबीसी और दलित मतदाताओं को बड़ा संदेश दिया है।

जानकारों का मानना है कि हाल ही में संपन्‍न हुए लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को ग्रामीण क्षेत्रों में अच्‍छी खासी सफलता मिली है। इसके विपरीत शहरी बाहुल्‍य क्षेत्रों में पार्टी को उस तरह की सफलता प्राप्‍त नहीं हुई है। ऐसे में अखिलेश यादव शहरी क्षेत्रों में पार्टी की जड़े मजबूत करना चाहते हैं। यह बात गौतम बुद्ध नगर जिले के संबंध में भी सही साबित होती है। लाख कोशिशों के बावजूद शहरी मतदाता बाहुल्‍य इस जिले में समाजवादी पार्टी शहरी वोटरों तक अपनी पहुंच नहीं बना सकी है।

गौतम बुद्ध नगर जिले में समाजवादी पार्टी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अभी तक अपना खाता तक नहीं खोल सकी है। जिस समय उत्‍तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी, उस समय भी यहां समाजवादी पार्टी के लिए शुन्‍य ही था। हाल ही में संपन्‍न हुए लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का पीडीए फार्मूला भले ही  प्रदेश के दूसरे हिस्‍सों में कामयाब रहा, लेकिन गौतम बुद्ध नगर में ऐतिहासिक हार भी झेली है। इससे स्‍पष्‍ट हो गया है कि इस जिले में समाजवादी पार्टी को अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए पीडीए के बाहर की जातियों को समायोजन करना ही होगा। अन्‍यथा इस जिले के बहुत करीब होकर भी समाजवादी पार्टी के लिए दिल्‍ली दूर ही रहेगी।

यदि समाजवादी पार्टी को यहां अपना विस्‍तार करना है तो पीडीए से हटकर नीतियों में लचीलापन लाना होगा। ऐसी स्थिति में पीडीए से बाहर की जातियों को भी पार्टी एवं संगठन में समायोजित करना होगा। जानकारों के अनुसार आगामी विधानसभा चुनावों से पूर्व नोएडा महानगर और गौतम बुद्ध नगर जिलाध्‍यक्ष बदले जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में शहरी मतदाता बाहुल्‍य इस जिले में पार्टी नेतृत्‍व पीडीए से बाहर की जातियों पर दांव खेल सकता है। बता दें कि गौतम बुद्ध नगर की डेमोग्राफी पिछले कुछ सालों में तेजी से बदली है और यहां पीडीए से बाहर की जातियों का बोलबाला हो गया है।

हालांकि अभी तक पिछड़ा वर्ग के अन्‍तर्गत आने वाली गुर्जर और यादव नेताओं ने ही गौतम बुद्ध नगर में पार्टी का नेतृत्‍व किया है। भले ही गौतम बुद्ध नगर में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा हो, लेकिन लोकसभा चुनाव में प्रदेश में पार्टी के शानदार प्रदर्शन के बाद पार्टी नेता काफी खुश है।

गौतम बुद्ध नगर में समाजवादी पार्टी पर जातिवादी पार्टी होने का लेबल लगा हुआ है। इसी कारण बाहर एवं शहरी लोग समाजवादी पार्टी को आशंका भरी नजरों से देखते हैं। पार्टी के पीडीए के फार्मूला ने  इन लोगों की आशंकाओंं को अधिक मजबूत कर दिया। परिणामस्‍वरूप यहां समाजवादी पार्टी  उम्‍मीदवार को उत्‍तर प्रदेश की सबसे बड़ी हार का  सामना करना पड़ा।

इन्‍हें उम्‍मीद जगने लगी है कि साल 2024 में उत्‍तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए सरकार बनाने की बेहतर संभावनाएं हैं। ऐसे में गुर्जर और यादव समाज के समाजवादी नेता यह कतई नहीं चाहेंगे कि बुरे दौर में पार्टी के साथ वह खड़े रहे और पार्टी के अच्‍छे दिनों में किसी दूसरे के हाथ में पार्टी की बागड़ोर चली जाए।

यदि वाकई में अखिलेश यादव ने एक मास्‍टर स्‍ट्राक के रूप में माता प्रसाद पाण्‍डे को नेता प्रतिपक्ष बनाया है तो यह भी तय है कि निकट भविष्‍य में अखिलेश यादव कुछ ऐसे अन्‍य फैसले ले सकते हैं जिनमें सवर्ण समाज, विशेषकर ब्राह्मणों को तवज्‍जो दी जागी। इस कड़ी में समाजवादी पार्टी छोड़कर गए दूसरे ब्राह्मण नेता भी वापसी पर विचार कर सकते हैं, क्‍योंकि उन्‍हें दूसरे दलों में जाकर भी कोई बड़ा राजनीतिक लाभ नहीं हुआ है।

अखिलेश यादव के फैसले के बाद पीडीए के बाहर की जातियों के लिए समाजवादी पार्टी में संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। यदि पार्टी निकट भविष्‍य में भी पीडीए के बाहर की जातियों के प्रति नरम रूख अपनाती है तो 2027 के विधानसभा चुनाव में  पार्टी  के ऐसे नेताओं के लिए समस्‍या पैदा होगी जो पीडीए की आड़ में समाजवादी पार्टी के दंभ पर ब्राह्मणों समाज का अपमान करते थे। ऐसी स्थिति में देखना होगा कि वह अपने बयान पर कायम रहते हैं या फिर अपनी रंग दबल कला का प्रदर्शन करते हैं।

यदि ऐसा होता है तो इससे समाजवादी पार्टी के ऐसे नेताओं के लिए मुश्किलें पैदा होंगी जिन्‍होंने अभी तक समाजवादी पार्टी के छत्र के नीचे खड़े होकर सवर्णों, विशेषकर ब्राह्मणों को अपमानित करने का ही काम किया है।

दरअसल, समाजवादी पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अखिलेश यादव राजनीति में अपने राजनीतिक प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। हालांकि इन राजनीतिक प्रयोगों का उन्‍हें भारी भुगतान भी करना पड़ा है। लोकसभा चुनाव 2024 में अखिलेश यादव ने नई सोशल इंजीनियरिंग पीडीए फार्मूले का राजनीतिक प्रयोग कर उत्‍तर प्रदेश में बड़ी जीत दर्ज की है। इस जीत के बाद अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं का मनोबल सातवें आसमान पर पहुंच गया। पीडीए को उत्‍तर प्रदेश की राजनीति के लिए भविष्‍य में सत्‍ता प्राप्‍त करने का ब्रह्मास्‍त्र समझ बैठे सपा नेता पीडीए फार्मूले को धार देने में जुटे हैं।

इसी बीच अखिलेश यादव ने सिद्धार्थनगर की इटवा विधानसभा सीट से माता प्रसाद पाण्‍डे को नेता प्रतिपक्ष बनाकर सवर्ण विरोधी राजनीति का झुंझना बजा रहे जातिवादी मानसिकता वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को जोर का झटका दिया है।

हम आपकी बात से सहमत नहीं है पार्टी के लिए मार खाए o b c sc st और मलाई के लिए जिसका 1 परसेंट वोट नही मिलता ओ उच्च कुर्सी पर वाह भाई वाह

———— राकेश यादव

ऐसे नेता अखिलेश यादव के फैसले को न तो निगल पा रहे हैं औ न ही उगल पा रहे हैं। जातिवादी मानसिकता से जकड़े ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अखिलेश यादव के फैसले पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।

अखिलेश यादव के इस फैसले पर गौतम बुद्ध नगर के पूर्व कांग्रेसी, राजनीतिक विश्‍लेष्‍क और गांधीवादी विचारक दुष्‍यंत सिंह नागर को भी यह फैसला रास नहीं आ रहा है।उन्‍होंने राजकुमार भाटी की पोस्‍ट पर समाजवादी पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अखिलेश यादव के फैसले को गलत बताया है।

नेता के उपर भरोसा तो है, लेकिन निर्णय वापस करना चाहिए.

——————- दुष्‍यंत सिंह नागर

 इतना ही नहीं उन्‍होंने इस फैसले को वापस लेने की भी बात कही है। हालांकि इस पूरे प्रकरण में दुष्‍यंत सिंह नागर का बयान ऐसा ही है जैसे बेगानी शादी में अब्‍दुल्‍ला दीवाना।

माता प्रसाद पाण्‍डे के नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद केवल कांग्रेस ही नहीं बहुजन समाज पार्टी भी अखिलेश यादव एवं समाजवादी पार्टी पर निशाना साध रही है। बहुजन समाज पार्टी से संबंध रखने वाले संजय कुमार इस फैसले को दोगलापंती बता रहे हैं।

बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा जी से आप सपाईयों को दर्द होता है लेकिन सपा के माता प्रसाद पाण्डेय के चरण को धो कर पीने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हो इतना दोगलापंती क्यों ?

————————– संजय कुमार

उन्‍होंने बहुजन समाज पार्टी के सवर्ण चेहरे सतीश चंद मिश्रा पर समाजवादी पार्टी नेताओं द्वारा कहीं गई बातों को याद दिलया है। उन्‍होंने कहा है कि सतीशचंद मिश्रा से दर्द महसूस करने वाले समाजवादियों को माता प्रसाद पाण्‍डे कैसे स्‍वीकार है ?

राजकुमार भाटी की पोस्‍ट पर मिस्‍टर त्‍यागी नामक एक व्‍यूअर समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा माता प्रसाद पाण्‍डे को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर उनकी आलोचना किए जाने पर समाजवादियों पर जातिवादी होने का आरोप लगाया है।

माता प्रसाद पांडे, समाजवादी पार्टी से ब्राह्मणों को जोड़ने का काम कर रहे हैं। वह एक शानदार नेता है लेकिन केवल ब्राह्मण होने के कारण उनकी आलोचना करके समाजवादियों ने बता दिया है कि उन्हें केवल यादव और मुसलमान से ही मतलब है।

————– मिस्‍टर त्‍यागी

उनका कहना है कि माता प्रसाद पाण्‍डे का विरोध करके उन्‍होंने बताया दिया है कि आज भी समाजवादियों को केवल यादव एवं मुसलमानों से ही मतलब है।

वहीं, राजकुमार भाटी की पोस्‍ट पर नवीन दूबे एडवोकेट नामक एक व्‍यक्ति अखिलेश यादव के इस फैसले को मास्‍टर स्‍ट्रोक बताते है। इतना ही नहीं वह राजकुमार भाटी पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगाते हुए शैली में बदलाव करने की भी सलाह देते हैं।

भाटी जी , अब आप अखिलेश जी के इस निर्णय को स्वीकार कीजिये भले ही भारी मन से कीजिये । मेरे हिसाब से ये अखिलेश जी का मास्टर स्ट्रोक है । बैसे आप तुलसीदास दुबे जी का व्यापक विरोध उस व्यक्ति के चक्कर में करते रहे जो न धर्म को समर्पित था, न पार्टी को और न ही देश को । उसका समर्पण यदि था तो केवल स्वार्थ को । आज वो प्रदेश की राजनीति से उस तरीके से निकाल दिया गया है जैसे दूध से मक्खी निकाल दी जाती है । आशा है अब आप ब्राह्मण विरोध बाली अपनी शैली में बदलाव करेंगे । धन्यवाद

—————– नवीन दूबे एडवोकेट

वह राजकुमार भाटी के पूर्व में दिए गए बयानों को ताजा करते हुए कहते हैं कि कैसे उन्‍होंने एक ऐसे व्‍यक्ति के चक्‍कर में तुलसीदास का व्‍यापक विरोध किया जो न धर्म को समर्पित था, न पार्टी को और न ही देश को समर्पित था।

माता प्रसाद पाण्‍डे के नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के विरोध में अपनी बात कहने वाले रवि रावत का दर्द कुछ इस संदर्भ में है कि  समाजवादी पार्टी में मेहनत किसी ने की है और फल दूसरा प्राप्‍त कर गया है।

तुम लोग दरी बिछाते रह गए पूरा जीवन भर, और इधर समाजवादी पार्टी को वोट न देने वालों की जाति से नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया । यह PDA धराशाई हो गया l

—————- रवि रावत 

वह अपनी बात को यह कहते हुए समाप्‍त करता है कि पीडीए धराशाई हो गया है।

वहीं, रवि रंजन अखिलेश यादव के द्वारा माता प्रसाद पाण्‍डे के नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर किए जा रहे विरोध के लिए राजकुमार भाटी और उनके समर्थकों को जिम्‍मेवार ठहराते हैं।

अति पिछड़ा नेता प्रतिपक्ष बनेगा, यह बात आपके शुभचिंतकों ने ही चलाई थी. निर्णय को मानने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

——————- रविन्‍द्र रंजन

उनका कहना है कि उनके शुभचिंतकों द्वारा ही यह बात कही थी। अब ऐसे समर्थकों को अखिलेश यादव के इस निर्णय को मानने में उन्‍हें कोई दिक्‍कत नहीं होनी चाहिए।

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