ग्रेटर नोएडा जोन

आशियाने के इंतजार में हो गई माता, पिता और भाई की मौत, कई सालों तक लगाए प्राधिकरण के चक्‍कर, सीईओ ने सुनी फरियाद तो 13 साल बाद मिला आशियाना

Mother, father and brother died in waiting for shelter, for many years the affair of authority took place, the CEO listened to the complaint and got the shelter after 13 years

Panchayat24 : ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों द्वारा एक आवंटी के शोषण का ऐसा मामला प्रकाश में आया है जिसे सुनकर मानवता शर्मसार होती है। प्राधिकरण के सीईओ के संज्ञान में मामला आने पर मामले की तथ्‍यों के साथ जांच की गई। जांंच में आवंटी का पक्ष सही पाया गया। सीईओ के आदेश पर 13 साल बाद आवंटी को उसका आशियाना मिल गया। हालांकि संघर्ष और इंतजार के इस दौर में पीडित को अपनी माता, पिता और बड़े भाई को खोना पड़ा। आशियाना मिलने पर पीडित के आंसू छलक गए। उसने सीईओ कार्यालय पहुंचकर न्‍याय दिलाने के लिए सीईओ सुरेन्‍द्र सिंह का आभार प्रकट किया।

क्‍या है पूरा मामला ?

दरअसल, मूलरूप से गाजियाबाद के रहने वाले सरजीत कुमार के पिता टुकीराम ने 2009 की आवासीय भूखंड योजना में आवेदन किया। उनके नाम ग्रेटर नोएडा वेस्ट के सेक्टर दो में 220 वर्ग मीटर का प्लॉट निकल आया। इसका भुगतान किस्तों पर करना था। सरजीत के पिता किस्तों का भुगतान करते रहते थे।

2014 में पिता को ब्रेन हैम्रेज हो गया, जिससे कुछ किस्तें रह गईं। इस दौरान टुकीराम ने सरजीत को प्लॉट के बारे में नहीं बताया था। सरजीत उस समय दिल्ली में सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे थे। जब उनके पिता ठीक हुए तो उन्होंन सरजीत को इस प्लॉट के बारे में जानकारी दी। सरजीत ने प्राधिकरण से संपर्क कर बकाया रकम की जानकारी ली और 2015 में पूरा भुगतान कर दिया।

प्‍लॉट विवाद में और परिवार संकट में फंस गया

सरजीत कुमार ने प्लॉट की लीज डीड कराने के लिए लीज प्लान उपलब्ध कराने को आवेदन किया। इस बीच सेक्टर दो जमीन के कुछ हिस्से पर विवाद के चलते मामला कोर्ट में चला गया। इस बीच सरजीत को पारिवारिक कष्ट से भी गुजरना पड़ा। 2016 में बड़े भाई की मृत्यु हो गई। 2018 में पिता का देहांत हो गया और 2019 में मां की भी मृत्यु हो गई।

प्‍लॉट की रजिस्‍ट्री के लिए अधिकारियों ने इधर उधर दौड़ाया

सरजीत ने पिता की मृत्यु के बाद 2018 में इस प्लॉट की रजिस्ट्री के लिए प्राधिकरण में आवेदन किया। इस पर प्राधिकरण की तरफ से वारिसान लाने को कहा गया। सरजीत ने एसडीएम से वारिसान बनवाकर प्राधिकरण में जमा किया। प्राधिकरण की तरफ से फिर बताया गया कि प्लॉट का लीज प्लान जारी नहीं हुआ है। रजिस्ट्री समय से न कराने के कारण 3.40 लाख रुपये का विलंब शुल्क भी जमा करना होगा। सरजीत का दावा था कि उन्होंने पूरा भुगतान कर दिया है, लेकिन इस मसले का हल नहीं निकल पा रहा था।

सीई को दास्‍तां सुनाने पर हुई प्‍लॉट की रजिस्‍ट्री

सरजीत कुमार ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ व मेरठ मंडलायुक्त सुरेन्द्र सिंह से मिलकर आपबीती सुनाई। सीईओ के निर्देश पर इस प्रकरण से जुड़े सभी दस्तावेजों का मिलान किया गया। आवंटी की कोई गलती न होने कारण विलंब शुल्क माफ कर दिया गया। करीब 20 दिन पहले सरजीत के नाम प्लॉट की रजिस्ट्री हो गई।

अपना आशियाना मिला, लेकिन अपने नहीं रहे

इस पूरे घटनाक्रम में प्राधिकरण के सीईओ साहब की न्‍यायप्रियता की तारीफ की जाए या प्राधिकरण द्वारा लोगों के किए गए शोषण की भर्त्‍सना, यह विचारणीय प्रश्‍न है। लेकिन इतना तय है यदि सीईओ साहब मामले में दरियादिली नहीं दिखाते तो पीडित को न जाने कितने और सालों तक अपने आशियाने के लिए भटकना पड़ता। आशियाना मिल भी पाता या नहीं। बहरहाल, सुरजीत कुमार को उसका आशियाना मिल गया है। लेकिन सुरजीत कुमार के दिल में यह कसक जरूर होगी कि वह आशिया मिलने की खुशी मनाए या इस बात का दुख कि आशियाने की खुशी बांटने वाले उसके अपने अब नहीं रहे। लेकिन यह बात भी सही है कि सभी लोग का भाग्य सुजीत कुमार की तरह नहीं चमकता। आज भी हजारों लोग अपने घर की मांग को लेकर आए दिन प्रदर्शन कर रहे हैं।

 

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