बम और बंदूकें जिस काम को नहीं कर सके, भारत ने क्रिकेट से कर दिया, इस बारे में आपकी क्या राय हैं ?
What is your opinion about the work that bombs and guns could not do, India did it with cricket?

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : टी-20 क्रिकेट विश्वकप में 25 जून 2024 को अफगानिस्तान ने बंगलादेश को रोमांचक मैच में 8 रनों से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश कर लिया है। अफगानिस्तानी टीम ने इस विश्वकप में चौकाने वाला प्रदर्शन किया है। इस टीम ने विश्व क्रिकेट रेंकिंग में अपने से कहीं धाकड़ी टीमों न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया को हरा दिया है। अफगानिस्तान के इस प्रदर्शन के लिए टीम को दुनिया भर से शुभकामनाएं मिल रही हैं। अफगानिस्तान में अपनी टीम के शानदार प्रदर्शन पर जश्न मनाया जा रहा है। आपको लग रह होगा कि महाशक्तियों के विनाशक हथियारों की चर्चा के बीच टी-20 विश्वकप में अफगानिस्तान का प्रदर्शन कहा से आ गया ? दरअसल, आज हमारा विषय अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की विदेश नीति में क्रिकेट डिप्लोमेसी ही है। इसके दम पर भारत ने दुनिया में उस काम को केवल क्रिकेट के सहारे करने में कामय रहा है जिसको दुनिया बम और बंदूकों के बल पर नहीं कर सकी।
सोवियत सेनाओं ने एक दशक तक अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ी
दरअसल, अफगानिस्तान लंबे 1979 से ही बम, गोला, बारूद, हथियार, मिसाइल और टैंकों का सामना करता रहा है। 1979 में सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में सेना भेजकर कटपुतली सरकार का समर्थन किया। इसके विरोध में जनता ने विद्रोह कर दिया। एक दशक तक अफगानिस्तान की जनता ने सोवियत सेनाओं से लोहा लिया। अंत में सोवियत सेनाएं अफगानिस्तानी से पार नहीं पा सकी और निराश होकर वापस लौटना पड़ा। इसके बाद अफगानिस्तान एक गृहयुद्ध की स्थिति में चला गया। अफगानिस्तान में सत्ता संघर्ष के लिए कई इस्लामिक मुजाहिद गुटों का उदय हुआ। सत्ता संघर्ष लगातार चलता रहा। अफगानिस्तान में इस बीच आतंकवादी गुट तालिबान का उदय हुआ। तालिबान ने भी सत्ता के लिए संघर्ष किया। लगातार चले सत्ता संघर्ष के कारण अफगानिस्तान राजनीतिक रूप से अस्थित और बर्बाद हो गया।
दो दशक तक अमेरिकी और नाटो सेनाओं से जंग में फंसा रहा अफगानिस्तान
साल 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला हुआ। यह अभी तक का अमेरिका पर हुआ सबसे भीषण हमला था। इस हमले की जिम्मेवारी आतंकवादी संगठन अलकायदा ने ली। अलकायादा का सरगना ओसामा बिन लादेन के अफगानिस्तान में छिपे होने की सूचना अमेरिका को मिली। उस समय अलकायदा के समर्थन में तालिबान आ गया। तालिबान ने ओसामा बिन लादेन को अमेरिका को सौंपने से इंकार कर दिया। अमेरिका के नेतृत्व में नाटो सैनिकों ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। अमेरिका दो दशक तक अमेरिका में अलकायदा और तालिबान से हड़ता रहा। दो दशक बाद अमेरिका ने पाकिस्तान के एबटाबाद में ओसामाबिन लादेन के मार गिराया। इस दौरान अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो समर्थक सरकार का गठन किया गया। तालिबान ने इसको स्वीकार नहीं किया। अपना उद्देश्य पूरा होने के बाद अमेरिका को अफगानिस्तान आर्थिक और सैनिक तौर पर भार लगने लगा। मौका देखकर अमेरिका ने अपनी सेना को वापस बुलाना शुरू कर दिया। अमेरिकी एवं नाटों फौज की वापसी को मौके के रूप में देखते हुए तालिबान ने सरकार का तख्ता पलट कर दिया। राष्ट्रपति को परिवार सहित देश छोड़ना पड़ा। सत्ता पर तालिबान का कब्जा हो गया। इस दौरान पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में खूब हस्तक्षेप किया। अमेरिकी एवं नाटो सेनाओं की वापसी के बाद सत्ता में लौटे तालिबानियों को पाकिस्तान ने गोद में बिठा लिया। उसकी हर जायज और नाजायद मांग पर उसके साथ खड़ा हो गया। दुनिया में अलग थलग पड़ी अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार भी पाकिस्तान के सहारे दुनिया में समर्थन जुटाना चाहती थी। पाकिस्तान के बाद उसके दोस्त चीन ही तालिबान को मान्यता दे दी।
अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी ने बढ़ाई भारत की चिंता
अमेरिकी और नाटो सेनाओं की मौजूदगी के दौरान भारत ने अफगानिस्तान के विकास के कई प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था। पाकिस्तान में ढांचागत विकास में भारत का बड़ा योगदान दिया था। अफगानिस्तान के संसद भवन सहित कई हजारों करोड़ के कई प्रोजेक्ट तैयार किए। लेकिन अमेरिकी और नाटो सेनाओं के वापस लौटने के बाद भारत को अफगानिस्तान में किए गए हजारों करोड़ के निवेश सहित बदलती परिस्थितियों में भारत के हित को लेकर चिंता सताने लगी। भारत की चिंताएं उस समय और बढ़ गई जब ऐसी खबरें आने लगी कि अफगानिस्तान की जेलों में बंद खूंखार आतंकवादियों को तालिबान ने आजाद कर दिया है। वहीं, इस बात का भी आशंकाएं प्रबली होने लगी कि पाकिस्तान अपने आतंकवादी संगठनों और तालिबानियों के साथ मिलकर जम्मु कश्मीर में आतंकवाद का नया खेल शुरू कर सकता है।
भारत ने शुरू किए राजनीतिक एवं कूटनीतिक प्रयास
हालांकि भारत लगातार अफगानिस्तान की स्थिति पर नजर रखे हुए था। भारत को इस बात का भी आभास था कि अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो सेनाएं एक अंतहीन युद्ध में फंस चुकी है। अब वह छुटकारा पाना चाहती हैं। ऐसे में भारत हर स्थिति पर विचार कर रहा था। भारत ने भी पर्दे के पीछे से तालिबान से बातचीत शुरू कर दी थी। इसी का परिणाम था कि सत्ता पर कब्जा करने के साथ ही तालिबानी सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि किसी भी देश के लिए तालिबान खतरा नहीं बनेगा। लेकिन तालिबान कोई लोकतांत्रिक एवं जिम्मेवार सरकार नहीं थी। ऐसे में उसकी बात पर विश्वास करना भारत के लिए उचित नहीं था। लेकिन अफगानिस्तान की भूराजनीति में स्थिति और भारत के नजरिए से उसकी स्थिति बहुत अहम थी। भारत ने अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार बनने के बाद भी मानवीय आधार पर सहायता जारी रखी। तालिबानी सरकार से कई माध्यमों से संवाद रखा। कहते हैं कि राजनीतिक संबंधों को आधार प्रदान करने में कूटनीति बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। वहीं, कूटनीति के लिए सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक सहयोग। पर्यटन, खेलकूद और संगीत, कारोबार, समान मूल्य, सम्मेलन, निजी संबंध और संगठन जैसे तत्व अहम होते हैं। भारत ने भी इर स्तर पर तालिबान सरकार को साधने का प्रयास किया।
क्रिकेट से भारत अफगानिस्तान के लोगों की भावनाओं को जीतने में कायाब रहा
वैसे तो भारत अफगानिस्तान की आम जनता के दिल के बेहद करीब था। बदले हालातों में अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबानी सरकार ने भी शुरूआत में भारत से बेहतर संबंध रखने के संकेत दे दिए थे। अफगानिस्तान में चल रही परियोजनाओं को तालिबान सरकार ने आगे भी जारी रखने की बात कही। क्रिकेट ने अफगानिस्तान की जनता और तालिबानी सरकार भारत के रिश्तों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। दरअसल, अफगानिस्तान में क्रिकेट के प्रति काफी दिवानगी है। नाटो और अमेरिकी सेनाओं की मौजूदगी के दौरान ही अफगानिस्तान क्रिकेट टीम अन्तर्राष्ट्रीय मैच खेलना शुरू कर चुकी थी। लेकिन देश में बदले हालातों के बाद क्रिकेट के विकास पर संकट के बादल छाने लगे थे। अफगानिस्तान के लोगों और क्रिकेट के खिलाडि़यों के दिल में क्रिकेट के भविष्य को लेकर मायूसी थी। ऐसे में भारत ने अफगानिस्तान क्रिकेट को सहारा दिया।
अफगानिस्तान में एक भी क्रिकेट का मैदान नहीं है। ऐसे अफगानिस्तान की टीम को प्रेक्टिस करने के लिए भारत में मैदान मुहैया कराए गए। शुरू में लखनऊ और देहरादूर अफगानिस्तान क्रिकेट टीम के होम ग्राउंड रहे। बाद में ग्रेटर नोएडा अफगानिस्तान टीम का होम ग्राउंड रहा। यहां काफी समय तक अफगानिस्तान ने मैच खेले हैं। प्रेक्टिस की है। वर्तमान में एक बार फिर ग्रेटर नोएडा के मैदान पर अफगानिस्तानी टीम प्रेक्टिस करती हुई दिखाई देगी। भारत की विश्व प्रसिद्ध क्रिकेट लीग आईपीएल में अफगानिस्तान के खिलाडी खेलते हैं। वर्तमान अफगानिस्तान क्रिकेट टीम का कप्तान राशिद खान का नाम प्रमुख है।
भारत अफगानिस्तान क्रिकेट टीम की कई तरह से मदद करता है। बीते एक दिवसीय क्रिकेट विश्वकप में भी अफगानिस्तानी टीम ने काफी शानदार प्रदर्शन किया था। उस समय अफगानिस्तानी टीम के कप्तान भारत के पूर्व क्रिकेटर अजय जडेजा थे। अजय जड़ेजा ने मुफ्त में अफगानिस्तान को कोचिंग दी थी। इसका अफगानिस्तान की टीम और अफगानिस्तान के लोगों ने काफी सराहा था। आज अफगानिस्तानी क्रिकेट टीम और अफगानिस्तान के लोगों के दिल में भारत के प्रति बहुत प्रेम और सम्मान है। क्रिकेट के चलते अफगानिस्तानी टीम के प्रसंशक भारत को बड़ा भाई मानते हैं।
एक दिवसीय विश्वकप मैच में भारत के पूर्व क्रिकेटर इरफान पठान ने पाकिस्तान पर अफगानिस्तानी टीम की शानदार जीत पर अफगानिस्तानी टीम खिलाड़ी राशिद खान के साथ मैदान पर डांस किया था। पूरे अफगानिस्तान की जनता ने विश्वकप के दौरान अफगानिस्तानी क्रिकेट टीम को मिले समर्थन को खूब सराहा था। भारत मैच देखने आए अफगानिस्तानी दर्शकों ने भारत में मिले सम्मान और प्यार अविस्मरणीय बतया था।
विश्वकप में लगातार जीत दर्ज कर दुनिया को हैरान करने वाली अफगानिस्तानी टीम की इस उपलब्धि पर अफगानिस्तानी जनता के साथ तालिबानी सरकार भी काफी खुश हैं। अफगानिस्तानी जनता और तालिबानी सरकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि अफगानिस्तानी क्रिकेट टीम को इस स्तर पर पहुंचाने में भारत का बहुत बड़ा योगदान है। इसके चलते उनकी टीम पूरी दुनिया में अफगानिस्तान का नाम रोशन कर रही है। इस ऐतिहासिक जीत के बाद तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने अफगानिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान राशिद खान से वीडियो कॉल करके बधाई दी है।
क्रिकेट ने दिया भारत अफगानिस्तान के संबंधों को नया आयाम
एक समय था जब विशेषज्ञ इस बात की आशंका व्यक्त कर रहे थे कि पाकिस्तान तालिबानी लड़ाकों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करेगा। जम्मु एवं कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देगा। लेकिन भारत के विभिन्न प्रयासों सहित क्रिकेट डिप्लोमेसी ने हालात को बहुत हद तक बदल दिया है। अफगानिस्तानी अवाम और तालिबानी सरकार भारत को अपना सच्चा हमदर्द मानती हैं। अफगानिस्तान में क्रिकेट टीम के शानदार प्रदर्शन पर मनाए जा रहे जश्म में अफगानिस्तानी खिलाडियों के साथ भारतीय क्रिकेट टीम की भी जमकर प्रशंसा हो रही है। हालांकि सुपर-8 में भारत ने अफगानिस्तान को हरा दिया था। इसके बावजूद अफगानिस्तान में इस हार को सहजता से स्वीकार कर लिया। सोशल मीडिया पर अफगानिस्तानी टीम के प्रशंसक भारत की हार के बड़े भाई से मिली हार तक कह रहे हैं। इस सबके बाद इतना तो कहा ही जा सकता है कि क्रिकेट के खेल ने पूरी तरह न सही, लेकिन भारत और अफगानिस्तान के संबंधों को बेहतर आयाम दिया है।