दादरी क्षेत्र का बलिदानी अतीत: 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में फांसी पर चढ़ाए गए शहीदों के सम्मान में स्थापित किया गया शिलालेख
Sacrificial past of Dadri region: Stone inscription installed in honour of the martyrs hanged in the First War of Independence of 1857

Panchayat 24 : ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद देश के सम्मान की रक्षा करने वाले वीरों की वीर गाथाओं को देशवासी याद कर रहे हैं। देश के लिए बलिदान होने वालों में दादरी एवं आसपास के क्षेत्र का नाम सम्मान से लिया जाता है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी दादरी तथा आसपास के क्षेत्र के लोगों ने बढ चढ़कर भूमिका निभाई थी। परिणामस्वरूप दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्र में अंग्रेजी सेना के पैर उखड़ गए थे।
अंग्रेजी सेना ने क्षेत्र के 84 लोगों को गिरफ्तार कर बुलन्दशहर के काले आम पर फांसी पर टांग दिया था। देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले इन बलिदानी शहीदों का नाम इतिहास के पन्नों में अमर है। धीरे-धीरे इनके बलिदान की निशानियां अब मिटती जा रही हैं। वर्तमान युवा पीढ़ी को शायद ही इन बलिदानियों की बलिदान गाथा से परिचय हो।जिला पंचायत कार्यालय परिसर में इन बलिदानियों की याद में शिलापट लगवाया गया है। शिलापट पर सभी 84 शहीदों के नाम अंकित हैं। शिलालेख का लोकार्पण उत्तर प्रदेश सरकार में पंचायती राज मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने एक कार्यक्रम के दौरान किया।
कार्यक्रम का आयोजन जिला भाजपा द्वारा ऑपरेशन सिंदूर और तिरंगा यात्रा के उपलक्ष में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला पंचायत अध्यक्ष अमित चौधरी ने की। कार्यक्रम के दौरान सांसद डॉ महेश शर्मा, एमएलसी नरेन्द्र भाटी, दादरी विधायक तेजपाल सिंह नागर, भाजपा जिलाध्यक्ष अभिषेक शर्मा, जिला पंचायत सदस्य देवा भाटी एवं मोहिन सहित कई राजनीतिक एवं सामाजिक लोग उपस्थित रहे।
गांवों में क्रांति की आग फैलने से अंग्रेजी सरकार के उखड़ गए थे पैर
दरअसल, मई 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम में इस क्षेत्र मे तत्कालीन दादरी रियासत, जो कि अधिकांश जिला गौतमबुद्धनगर का भू-भाग है, ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1857 को महान कान्ति को अंग्रेजों ने गदर का नाम दिया था। यह क्रांति गांवों में भी फैल गयी थ। ग्रामीणों ने अत्याचारी अंग्रेजी सरकार को चुनौती कड़ी दी थी। लगभग एक साल तक चले संघर्ष के बाद गुलामी का निशान ही मिटा दिया था।
अंग्रेजी सरकार की रिपोर्ट में दादरी को अतिसंवेदनशील क्षेत्र बताया गया था
अंग्रेजी सरकार को 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारी नुकसान उठाना पड़ा था। दादरी क्षेत्र में अंग्रेजी सरकार के पैर उखाड़ दिए थे। अंग्रेजी सरकार की उम्मीदों के विपरीत ग्रामीणों ने क्रांति को नई दिशा दी थी। हालांकि अंग्रेजी सरकार द्वारा स्वतंत्रता आंदोनल को क्रूरता पूर्वक कुचल दिया गया था। बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर क्रूरता पूर्वक मृत्युदण्ड दिया गया था। दादरी तथा आसपास के क्षेत्र के बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया था। तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी मिस्टर टर्नबुल की रिपोर्ट में कहा गया था कि कि दादरी एवं आसपास के क्षेत्र में भारी गड़बड़ी है।
दादरी के एक परिवार को अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत का जिम्मेवार ठहराया
सन 1874 में बुलन्दशहर के डिप्टी कलेक्टर कुवर लक्षण सिंह ने 1857 की कान्ति का लिपिबद्ध किया था। वह लिखते है कि दादरी रियासत के राव रोशन सिंह, राव उमराव सिंह, राव बिशन सिंह और राव भगवन्त सिंह आदि ने मिलकर अग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत का झन्डा उठाया था। अतः इस परिवार की सारी चल-अचल सम्पत्ति सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी। राव रोशन सिंह तथा उनके पुत्रों व भाईयो को प्राण दण्ड दे दिया गया ।
84 क्रांतिकारियों को काले आम पर दी गई फांसी
देश की स्वतंत्रता के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में कई कई क्रांतिकारियों को बुलन्दशहर के काले आम पर फांसी पर लटकाया गया। इनमें हिम्मत सिंह गांव (रानौली), झण्डू जमीदार, सहाब सिंह (नगला नैनसुख), हरदेव सिंह रूपराम (बील), मजलिस जमीदार (लुहारली), फत्ता नम्बरदार (चिटहेरा), हरदयाल सिंह गहलौत, दीदार सिंह (नगला समाना), राम सहाय (खगुआ बास), नवल, हिम्मत जमीदार (पैमपुर), कदम गुर्जर (प्रेमपुर), कल्लू ज़मीदार (चीती), करीमबख्श खान (तिलबेगमपुर), जबता खान (मुडसे), मैदा जमीदार, बस्ती जमीदार (सावली), इन्द्रसिंह भोलू गुर्जर (मसौता), मुल्की गुर्जर (हदयपुर), मुगनी गुर्जर (सैथली), बंसी जमीदार (नगला चमरू), देवी सिंह जमीदार, (मेहसे,) दानसहाय (देवटा), बस्ती जमीदार (गिरधरपुर) फूल सिंह गहलौत (पारसेह), अहमान गुर्जर (बढपुरा), दरियाव सिंह (जुनेदपुर), इन्द्रसिंह (अटटा), राम स्वरूप (गुनपुरा), सुरजीत सिंह (राजपुर), सुलेख (महावड), सुरजीत सिंह (अटटा), हरदयाल सिंह रौसा, राम दयाल सिंह, निर्मल सिंह (सरकपुर) और बिशन सिंह (बिशनपुरा), सहित कुल 84 कान्तिकारियों को अग्रेजी सरकार ने रिंग लीडर दर्ज कर भारत की आजादी के लिए प्रथम कान्ति युद्ध में बुलन्दशहर के (काला आम) पर मृत्यु दण्ड दिया गया। वही अंग्रेजी सरकार द्वारा सैकडों कान्तिकारियों को काले पानी की सजा दी गई।