स्पेशल स्टोरी

आमरीन भट्ट की हत्‍या पर समाज का मौन आने वाली पीढियों के लिए खतरनाक

The silence of the society on the murder of Aamreen Bhatt is dangerous for the coming generations

Panchayat24.com  (डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा ) : जम्‍मु कश्‍मीर के बडगांव जिले के चदूरा क्षेत्र में आतंकवादियों ने टीवी एक्‍ट्रेस आमरीन भट्ट की गोली माकर हत्‍या कर दी। आतंकवादयों की इस कायराना हरकत पर देश में ना कोई शोर मचा ना कोई प्रदर्शन हुआ। देश की आधी आबादी के हिमायती होने का दम भरने वाले संगठन और लिबरल होने का ढोंने करने वालों की ओर से भी इस घटना पर कोई प्रतिक्रया सामने नहीं आई।

आमरीन भट्ट एक टीवी कलाकार थी। अपने दम पर उसने एक मुकाम बनाया था। वह खुले विचार पसंद आधुनिक भारत की महिला थी। उसका कसूर केवल इतना था कि उसने एक आम महिला की तरह स्‍वतंत्र जीवन जीने के रास्‍ते को चुना था। सोशल मीडिया पर उसके फॉलोवर बेशुमार थे। बस यही बात जेहादी मानसिकता के लोगों को पसंद नहीं आई और घर में घुसकर उसकी हत्‍या कर दी।

आतंकवादियों के मन में बदलाव को लेकर है डर

दरअसल, जम्‍मु कश्‍मीर के युवा धार्मिक रूढि़वादिया और कट्टटरता की जंजीरों को तोड़कर मुख्‍यधारा से जुड़ना चाहता है। महिलाएं रूढि़वाद की दीवारों को गिराकर खुले आसमान में उड़ान भरने लगी है। खेल, शिक्षा, चिकित्‍सा संगीत और फिल्‍म जगत जैसे क्षेत्रों में हिस्‍सेदारी तय कर रही हैं। उससे आतंकवादियों की जड़े हिलने लगी हैं। आतंकवादियों को जम्‍मु कश्‍मीर की जनता से धर्म के कल्‍पनालोक का सपना दिखाकर भावनात्‍मक समर्थन हासिल करना मुश्किल हो रहा है।

आमरीन भट्ट ही नहीं अरूसा परवेज और जायरा वसीम भी रहीं है निशाने पर

ऐसा नहीं है कि जम्‍मु कश्‍मीर में बदलाव की बयार केवल आमरीन भट्ट ने ही महसूस की है। बल्कि 12वीं कक्षा में टॉप करने वाली अरूसा परवेज और दंगल गर्ल के नाम से मशहूर जायरा वसीम भी कंटरपंथियों के निशाने रह रहे हैं।

जायरा वसीम ने जहां इन कट्टटरपंथियों के जेहादी फतवों से परेशान होकर फिल्‍म जगत को छोड़ चुकी हैं। वहीं, 12वीं कक्षा में टॉप करने वाली अरूसा परवेज ने फोटो खिचवाते हए सिर नहीं ढका। यह बात कट्टरपंथियों को चुभ गई। अरूसा को गर्दन काटे जाने और उसके  परिजनों को लगातार धमियां मिलने लगी। लेकिन अरूसा ने कट्टरपंथियों को उन्‍हीं की भाषा में जवाब दिया। अरूसा ने कहा कि उसे खुद को सच्‍चा मुसलमान साबित करने के लिए हिजाब की जरूरत नहीं थी।

समाज का मौन आने वाली पीढि़योंं के लिए खतरनाक

दिल्‍ली में एक निर्भया केस में देश भर में मुखर आवाज उठी, लेकिन आमरीन भट्ट, के मामले में ऐसा नहीं दिखा। इस तरह की घटनाओं को आतंकवादी इस्‍लाम की दुहाई देकर न्‍याय और तर्कसंगत ठहराने का प्रयास करते हैं। ऐसे में  जम्‍मु और कश्‍मीर में सियासी लड़ाई एक अलग बात है। यह कब खत्‍म होगी किसी को नहीं पता। लेकिन इस लड़ाई के लिए महिलाओं और युवाओं को आतंकवाद की बलि नहीं चढ़ाया जा सकता।

आने वाली पीढियों को खतरे से बचाने का फर्ज निभाना होगा

यदि ऐसी घटनाओं के खिलाफ चुप्‍पी को तोड़कर विरोध नहीं किया गया तो न जाने कितनी निर्भयाओं को इसका दंश झेलना होगा। वैसे तो इस खतरे की जद में देश का सम्‍पूर्ण समाज है, लेकिन यह दानव मुस्लिम समाज के बहुत करीब खड़ा है। हिंसा और राजनीति के भेद को समझना होगा। देश विरोधी ताकतों, आतंकवादी संगठनों और कट्टरपंथियों द्वारा मुस्लिम युवाओं और महिलाओं को मजहबी जंजीरों में बांधक रखने की, बाहरी दुनिया से काटकर रखने की साजिश की जा रही है। इस साजिश को नाकाम करना होगा। अन्‍यथा आज जो हमने अफगानिस्‍तान में देखा, कल ऐसा ही नजारा आने वाली पीढियां अपने ही देश में देखेंगी।

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