नोएडा विधानसभा

रेलवे स्टेशन से पुस्तक स्टाल के गायब होना एक चिंता का विषय है : डॉ. देवेन्द्र दीपक

Disappearance of book stall from railway station is a matter of concern: Dr. Devendra Deepak

Panchayat 24 : वर्तमान दौर में पुस्‍तकों की प्रासंगिकता बढ़ गई है। ऐसे में रेलवे स्‍टेशनों से पुस्‍तकों के गायब होते स्‍टॉल चिंता का विषय है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि पुस्‍तकें पढ़ी जा रही हैं, भले ही उनका स्‍वरूप बदलकर ई-बुक हो गया है। यह बातें मनुष्य के सामाजिक जीवन में पुस्तक का महत्व को रेखांकित करते हुए प्रख्यात साहित्याकार डॉ. देवेन्द्र दीपक ने नोएडा स्थित प्रेरणा शोध संस्थान में प्रो. अरुण कुमार भगत द्वारा सम्पादित पुस्तक “काव्य पुरुष: डॉ. देवेन्द्र दीपक – दृष्टि और मूल्यांकन” के विमोचन समारोह में कहीं।205 पृष्ठों की इस पुस्तक में 48  लेख हैं और इसका प्रकाशन यश प्रकाशन ने किया है।

उन्‍होंने कहा कि पुस्‍तकें ज्ञान का मूलस्रोत्र हैं। इस लिए नायक पुस्‍तकें हैं और गूगल सहायक है। गूगल पर उपलब्‍ध ज्ञान का आधार भी पुस्‍तकें ही हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि पुस्तक उद्घाटन के मंचों पर लेखक और लेखिका के जीवन साथी का भी सम्मान होना चाहिए।  इससे बदलते सामाजिक परिदृश्य में पारिवारिक समरसता बढेगी।

बता दें कि डॉ. देवेन्द्र दीपक राष्ट्रीय चेतना के शिक्षक, पत्रकार और साहित्यकार रहे हैं। वह मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक के अतिरिक्त कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दे चुके हैं।  डॉ. देवेन्द्र दीपक वर्त्तमान में 94 वर्ष के हैं।  उन्होंने आपातकाल, दलित चिंतन, भारतीय संस्कृत के मूल्यों पर अपनी दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है।

पुस्तक का लोकार्पण करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के क्षेत्र प्रचार प्रमुख पद्म सिंह ने कहा कि देवेन्द्र जी ने केवल शब्दों से ही नहीं बल्कि अपने आचरण से देश और समाज को जोड़ने वाला विमर्श खड़ा किया। उनकी कविताओं में देश, धर्म, और संस्कृत का विचार होता है। उन्होंने अपने नाम के अनुरूप दीपक की तरह जलकर समाज का मार्गदर्शन किया। दिल्ल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अवनिजेश अवस्थी ने कहा कि देवेन्द्र जी ने आपातकाल को सहा और उसको शब्दों में पिरोया है। उन्होंने नौकरियां छोड़ी लेकिन झुके नहीं। वह वक्ता रहे किसी के प्रवक्ता नहींं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा कि सत्तर के दशक में इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा थोपा गया आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का एक काला अध्याय है। यह लोकतंत्र पर एक धब्बा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि डॉ. देवेन्द्र दीपक सच्चे अर्थों मे एक भारतीय साहित्यकार है क्योंकि वह अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहे है। जिसकी वैचारिकी के सूचकांक विदेशी हों, वो भारतीय साहित्यकार कैसे हो सकता है।

पुस्तक के लेखक प्रो. अरुण कुमार भगत पत्रकारिता और साहित्य के ख्यातनाम हस्ताक्षर हैं। वह वर्तमान में बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य हैं। अपने संबोधन में प्रो. भगत ने कहा कि डॉ. देवेन्द्र दीपक की रचानाओं में सूक्तियों की भरमार है जो जीवन के मार्गदर्शक का कार्य करती है।

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