चीन की लाख धमकियों के बावजूद अमेरिका के हाऊस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी पहुंची ताइवान, चीन युद्ध पर अमादा
Despite China's millions of threats, Speaker of the US House of Representatives, Nancy Pelosi reached Taiwan, China intent on war
Panchayat24 : ताइवान को लेकर चीन की दादागीरी को संयुक्त राज्य अमेरिका से सीधे चुनौती मिली है। चीन की लाख धमकियों के बावजूद देर रात अमेरिका के निचले सदन हाऊस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान की राजधानी ताइपे पहुंच गई। नैंसी की इस ताइवान यात्रा के बाद चीन पूरी तरह युद्ध पर अमादा हो रहा है। वहीं चीन के इस अतिवादी आचरण को देखते हुए ताइवान और अमेरिका ने भी युद्ध के लिए अलर्ट घोषित कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से पूर्व चीन द्वारा जिस तरह से लगातार नैंसी के विमान को निशाना बनाए जाने और चीनी एयरक्राफ्ट से घेर लेने की धमकी दी जा रही थी उसे देखते हुए अमेरिकी नेवी के 24 एडवांस फाइटर जेट ने नैंसी के विमान के ताइवान में सुरक्षित लैंडिंग तक एक्सकार्ट में तैनात रहे। मीडिया रिपोर्ट की माने तो नैंसी की ताइवान यात्रा से कई दिन पूर्व अमेरिकी सैनिक ताइवान पहुंच चुके थे। वहां से अमेरिकी सैनिक ताइवन और चीन की स्थिति पर नजर रख रहे थे। इस क्षेत्र में युद्ध छिड़ता है तो यह पूरी दुनिया के लिए परेशानी का सबब होगा। रूस युक्रेन युद्ध से दुनिया पहले से ही संकट में हैं। यदि ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन आमने सामने होते हैं तो यह दुनिया को गहरे संकट में डाल सकता है।
नैंसी को ताइवान ने दिया सर्वोच्च नागरिक सम्मान
मीडिया रिपोर्ट के अनसार नैंसी बुधवार को ताइवान की संसद पहुंची। उन्होंने राष्ट्रपति साई इंग वेन से मुलाकात की। ताइवान ने नैंसी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ प्रॉपिटियस क्लाउड्स विद स्पेशल ग्रैंड कॉर्डन से सम्मानित किया। नैंसी ने कहा किताइवान की दोस्ती पर हमे गर्व है। अमेरिकी कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का यह दौरा ताइवान के लोकतंत्र का समर्थन करने के लिए अमेरिका की वचनबद्धता को प्रदर्शित करता है। अमेरिका हर कदम पर ताइवान के साथ है। नैंसी पेलोसी ने ताइवान संसद के डिप्टी स्पीकर साई ची-चांग से मुलाकात की। नैंसी ने तियानमेन स्क्वायर की घटना का जिक्र कर चीन के जख्मों पर नमक भी छिड़क दिया।
नैंसी की ताइवान यात्रा के बाद युद्ध का खतरा बढ़ा
चीन ताइवान को लेकर इस तरह से आक्रामक रहा है है कि ताइवान से सम्बन्ध स्थापित करने वाले देश को वह अपना शत्रु मानता है। ऐसे में अमेरिका के राजनयिक द्वारा ताइवान की यात्रा ताइवान के लिहाज से अहम है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन ने ताइवना को सीधे सीधे टारगेट सैन्य कार्रवाई की धमकी दी है।चीन ने युद्ध की ड्रील भी शुरू कर दी है। चीन ताइवान को चारों ओर से घेरने की तैयारी में जुटा है। चीन के रूख को देखते हुए अमेरिका और ताइवान भी जवाबी कार्रवाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो गए हैं। अमेरिका के चार वॉरशिप ताइवान की समुद्री सीमा में अलर्ट मोड पर है। इन पर एफ-16 और एफ-35 जैसे अत्याधुनिक लडाकू विमान घातक मिसाइलों से लैंस होकर तैयार हैं। किसी भी एक पक्ष की ओर से जल्दबाजी में लिया गया निर्णय युद्ध की शुरूआत कर सकता है।
आसान नहीं होगा चीन का ताइवान पर हमला
जानकारों की माने तो चीन भले ही नैंसी पोलोसी की ताइवान यात्रा के बाद अमेरिका और ताइवान को लाल आंखे दिखा रहा है, लेकिन उसके लिए ताइवान पर हमला करना आसान नहीं होगा। यदि ताइवान ऐसा करता है तो जहां उसे अमेकिरा से एक मोर्चे पर निपटना होगा, वहीं दूसरे मोर्चे पर ताइवान भी कड़ी टक्कर देगा। जानकारों का मानना है कि साउथ चाइना सी क्षेत्र में अमेरिका काफी पावरफुल हो चुका है। वहीं चीन का बड़ा मददगार रूस इस समय युक्रेन युद्ध में फंसा हुआ है। हालांकि उत्तरी कोरिया जरूर अमेरिका के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
क्या है चीन-ताइवान विवाद ?
दरअसल, ताइवान चीन से लगभग 100 मील दूर स्थित एक द्वीप है। चीनी सरकार ताइवान को अपने देश का एक हिस्सा मानती है, जबकि ताइवान खुद को एक सम्प्रभु राष्ट्र मानता है। ताइवान का अपना एक संविधान है। चीन का मानना है कि एक दिन ताइवान पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1949 में चीन की माओ के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने पूरे चीन पर कब्जा कर लिया। अमेरिकी समर्थित तथा राष्ट्रवादी च्यांग काई शेक के नेतृत्व वाली कॉमिंगतांग समर्थकों को चीन छोड़कर ताइवान नाम के इस टापू पर पहुंचकर अपनी जान बचाई और यहां अपनी सरकार बनाई। वैसे तो ताइवान चीन का ही एक हिस्सा था, लेकिन 1895 में चीन ने इसे जापान को दे दिया था। दूसरे विश्वयुद्ध में हार के बाद जापान ने ही ताइवान को कॉमिंगतांग समर्थकों को सौंप दिया था। माओं समर्थकों ने चीन पर अपने नियंत्रण का दावा करते हुए चीन का नाम पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाईना रखा, जबकि ताइवान ने चीन पर कानूनी तौर पर अपना दावा पेश किया और चीन का नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा। ऐसे में ताइवान भी उनका ही हुआ। दोनों ही गुट खुद को चीन का अधिकारिक प्रतिनिधि बताते हैं। चीन ताइवान को वन चाइना पॉलिसी के तहत अपना हिस्सा बताता है, तो ताइवान खुद को स्वतंत्र देश बताता है।
अमेरिका को चीन की वन चाइना पॉलिसी स्वीकार, लेकिन ताइवान पर इंकार
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने स्पष्ट कहा है कि हम वन चाइना पॉलिसी पर राजी हुए हैं। हमने इस पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन यह सोचना बिल्कुल गलत होगा कि ताइवान को बलपूर्वक छीना जा सकता है। यदि चीन ऐसा करता है तो उसका यह कदम न केवल गलत होगा, बल्कि यह कदम पूरे क्षेत्र को युद्ध की आग में झोक देगा।