राजनीति

लोकसभा चुनाव 2024 में जानिए किसने अपने दम पर भाजपा के अश्‍वमेघ यज्ञ के घोड़े को काबू किया ?

In the Lok Sabha elections 2024, know who single-handedly controlled the horse of BJP's Ashvamedha Yagna?

Panchayat 24 : लोकसभा चुनाव 2024 का परिणाम सामने आ चुका है। चुनाव परिणाम ने सभी एग्जि पोल को झुठलाते हुए सभी राजनीतिक पंडितों के कायों को गलत साबित करते हुए सभी को चौंका दिया है। इस चुनाव में सबसे अधिक झठका एनडीए और भाजपा को लगा है। वहीं, इंडिया गठबंधन का प्रदर्शान काबिल ए तारीफ रहा है। इस सबके बीच पिछले एक दशक से भाजपा की आंधी को सबसे बड़ा झठका उत्‍तर प्रदेश में लगा है। उत्‍तर प्रदेश में भाजपा के अश्‍वमेघ यज्ञ के घोडे के लगाम को न केवल पकड़ा है, साथ ही बेकाबू घोड़े को काबू भी किया गया है। सही मायनों में इस काम को करने वाला नेता सही मायनों में लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक के पटल पर असंभव को संभव करने वाले नेता के रूप में राजनीतिक गलियारों में चर्चा का केन्‍द्र बना हुआ है। इस नेता का नाम है अखिलेश यादव।

दरअसल, उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव का प्रवेश साल 2012 के लोकसभा चुनाव से कुछ साल पूर्व ही हुआ था। उस समय उन्‍होंने न केवल उत्‍तर प्रदेश में साईकिल यात्रा करके लोगों का ध्‍यान अपनी ओर खींचा था। उन्‍होंने साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सत्‍ता में हई वापसी में अहम भूमिका निभाई थी। शायद यही कारण था कि मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव की राजनीतिक क्षमता को पहचानते हुए उन्‍हें उत्‍तर प्रदेश की मुख्‍यमंत्री बनाने का फैसला किया था। इसके बाद अखिलेश यादव का राजनीतिक अनुभव मिलाजुला रहा। हालांकि समाजवादी पार्टी की बागड़ोजर जिस समय उनके हाथ में आई, उस समय समाजवादी पार्टी में काफी उठापठक हुई। परिवार में मनमुटाव हुआ। शिवपाल सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव भी अखिलेश यादव से नाराज हुए। इस विरोध के बावजूद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी की बागड़ोर अपने हाथों में ले ली।

समाजवादी पार्टी में हुए नेतृत्‍व बदलाव के बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी उत्‍तर प्रदेश की सत्‍ता से बाहर हो गई। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन अच्‍छा नहीं रहा। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। अखिलेश यादव के नेतृत्‍व में एक के बाद एक चुनाव में मिली करारी हार के बाद अखिलेश यादव के नेतृत्‍व पर सवाल उठने लगा था। 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के भविष्‍य और अखिलेश यादव के नेतृत्‍व को लेकर काफी बातें कही जा रही थी। जिस तरह से टिकट वितरण को लेकर समाजवादी पार्टी में नाटकीय घटनाक्रम चला, उसके बाद चारों ओर समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से किसी चमत्‍कार की उम्‍मीद नहीं की जा रही थी।

लोकसभा चुनाव 2024 में अखिलेश यादव के नेतृत्‍व में समाजवादी पार्टी ने किया चमत्‍कार

हाल ही में संपन्‍न हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों ने सभी को चौंका दिया है। अखिलेश यादव के नेतृत्‍व में समाजवादी पार्टी ने चमत्‍कारिक प्रदर्शन करते हुए उत्‍तर प्रदेश में भाजपा को करारी शिकस्‍त देते हुए सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं, देश की भाजपा और कांग्रेस के बाद देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी भी बन गई है। हालांकि इंडिया गठबंधन सरकार बनाने में नाकाम दिख रहा है। इसके बावजूद विपक्ष और देश की राजनीति में समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव का कद तेजी से बढ़ गया है। बता दें कि उत्‍तर प्रदेश में 80 में से 80 सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा को महज 33 सीटें मिली हैं जबकि समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की है। जिस समय पूरे देश की मीडिया में उत्‍तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में 70 से अधिक सीटें जीतने के दावे किए जा रहे थे, उस समय अखिलेश यादव अकेले मैदान में डटकर खड़े थे। भाजपा और सहयोगी दलों के राजनीतिक हमलों का सामना करते हुए उसी अंदाज में जवाब भी दे रहे थे।

सोशल इंजीनियरिंग से भाजपा के हिन्‍दुत्‍व के कवच को कमजोर किया

उत्‍तर प्रदेश में भाजपा के खराब प्रदर्शन के लिए भाजपा की कुछ बुनियादी गलतियां तो जिम्‍मेवार हैं ही, लेकिन अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग ने भी भाजपा के अभदेव माने जाने वाले हिन्‍दुत्‍व के कवच को कमजोर किया। इसी का परिणाम है कि जिस राम मंदिर के सहारे भाजपा पूरे देश को फतह करने निकली थी। उसी अयोध्‍या में भाजपा प्रत्‍याशी चुनाव हार गया। अखिलेश यादव ने जहां पीडीए का नारा दिया। वहीं, हर सीट पर जातीय समीकरणों को साधते हुए टिकट वितरण किया। हालांकि इस दौरान अखिलेश यादव को कई सीटों पर कई बार टिकट बदलना पड़ा पडा। इसके लिए राजनीतिक गलियारों में उनके निर्णयों की आलोचना भी हुई। लेकिन सही और गलत का फैसला परिणाम से होता है। 4 जून को आए परिणामों ने साबित कर दिया कि टिकटों के लेकर हुई अदलाबदली का अखिलेश का फैसला सही था। हालांकि गौतम बुद्ध नगर और मेरठ जैसी सीटों पर टिकटों की अदला बदली का फैसला गलत साबित हुआ।

समाजवादी पार्टी की आड़ में कांग्रेस ने भी बहती गंगा में धो लिए हाथ

अखिलेश यादव ने जिस तरह से चुनाव प्रचार के दौरान डटकर भाजपा के चुनावी हमलों, आरोप और प्रत्‍यारोपों का सामना किया उत्‍तर प्रदेश की जनता ने पसंद किया। जनता ने अखिलेश यादव की बातों पर विश्‍वास भी व्‍यक्‍त किया। इतना हीं नहीं, उत्‍तर प्रदेश में अपनी लगभग जमीन खो चुकी कांग्रेस पार्टी को भी समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने का लाभ हुआ। उत्‍तर प्रदेश में एक एक सीट के लिए तरस रही कांग्रेस भी 6 सीट जीतने में कामयाब रही।

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