चिटेहरा गांव पर मंडराया बड़ा संकट, नहीं संभले तो भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम, भविष्य के लिए अशुभ संकेत
A big crisis looms over Chitehra village, if not controlled, we will have to face serious consequences, ominous signs for the future

Panchayat 24 : भीषण गर्मी के बीच तेजी से बढ़ता हुआ जलसंकट विकराल रूप धारण कर रहा है। दिल्ली एनसीआर भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहा है। सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि दिल्ली एनसीआर के गौतम बुद्ध नगर और गाजियाबाद जैसे जिले भी इस संकट की चपेट में आने लगे हैं। कई गांवों में तेजी से जलस्तर घट रहा है। जल संकट का ताजा उदाहरण दादरी क्षेत्र के चिटेहरा गांव में भी पैर पसार रहा है। गांव में कई लोगों के लगभग 120 फीट पर लगे सबमर्सिबल पंप बंद हो गए हैं। कम गहराई पर लगी नलों ने पानी देना बंद कर दिया है। यदि लगातार हो रहे जल दोहान को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो समाज को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। भविष्य के लिए यह शुभ संकेत कतई नहीं हैं।
क्या है पूरा मामला ?
चिटेहरा गांव के निवासी सुधीर भाटी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट करके लोगों को तेजी से बढ़ रहे जल संकट के बारे में सजग किया है। उन्होंने अपन पोस्ट में लिखा है कि मेरे आधा दर्जन पड़ोसियों का 120 फीट तक पानी खत्म हो गया है। सबमर्सिबल में पानी नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि गांव के ऊंचाई पर बसे घरों में यह संकट और भी अधिक है। ग्रामीणों से अपील करते हुए लिखा है कि आप सभी अपने आसपास पानी की बर्बादी रोके। उन्होंने बताया कि राजेन्द्र सिंह, बिजेन्द्र सिंह, पवन, जितेन्द्र और विमला देवी के यहां लगे सबमर्सिबल ने पानी देना बंद कर दिया है। दरअसल, यह कहानी अकेले चिटेहरा गांव की नहीं है। अंधाधुंध तरीके से हो रहे जलदोहन के कारण जल संकट की यह कहानी कमोबेश नोएडा और दादरी के हर गांव में देखने में आ रही है। कई गांवों में पुरानी नलों ने पानी देना बंद कर दिया है। भीषण गर्मी ने इस समस्या को अधिक बढ़ा दिया है।
अनावश्यक जल दोहन से पैदा हो रहा है जल संकट
दरअसल, हवा और पानी प्रकृति की ओर से हर मनुष्य को मुफ्त में दी गई अमूल्य देन हैं। इनके बिना जीवन संभव नहीं है। लेकिन बदलते दौर के साथ पानी और हवा को लेकर मनुष्य का नजरिया बदल गया है। प्रकृति की अमूल्य देन के महत्व को मानव ने कमतर करके आंकना शुरू कर दिया है। परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण और अंधाधुंध जल दोहन तेजी से बढ़ रहा है। पीने योग्य शुद्ध जल को निजी हितों के कारण बर्बाद किया जा रहा है। कई बार बेसमेंट और उद्योगों के लिए बड़े बड़े बोरिंग करके धरती के गर्भ से जल का दोहन करके गंदे नालों में बहाया जा रहा है। कभी गांवों में जल संरक्षण को बहुत महत्व दिया जाता था। घरों से कभी भी पानी की बर्बादी नहीं देखी जाती थी। कई गांवों में तो दैनिक उपयोग के पानी के निकासी की नालियां भी नहीं होती थी। घर से निकलने वाला पानी कुछ दूरी तय करके ही घर के आंगन में लगे पेड़ों या फिर गड्ढे में जाकर सूख जाता था। लेकिन पिछले डेढ से दो दशक में धरती से जल दोहन के लिए बड़े पैमाने पर बोरिंग करके सबमर्सिबल पम्प लगाए गए हैं। इनसे जरूरत से कई गुना जल दोहन प्रतिदिन किया जाता है। परिणामस्वरूप गांव में पानी निकासी के लिए बनाई गई नालियों में पानी की बर्बादी के सबूत मिल जाते हैं। वहीं, व्यवसायिक उपयोग के लिए भी लगातार धरती से जलदोहन किया जा रहा है। शासन एवं प्रशासन के स्तर पर जल संरक्षण के नाम पर कार्यक्रम आयोजित करके इतिश्री कर लिया जाता है। परिणामस्वरूप संकट लगातार बढ़ रहा है।
जल संरक्षण के परंपरागत स्रोत्र पर हुआ अतिक्रमण, शासन प्रशासन गंभीर नहीं
हमारे पूर्वजों अवश्य ही दूरदर्शी थे। इसी लिए उन्होंने जल संकट की समस्या का पूर्व में ही आभास करते हुए हर गांव में एक दो नहीं बल्कि कई जलसंरक्षण के स्रोत्र तैयार किए थे। इनमें तालाब, जोहड़ एवं पोखर जल संरक्षण के प्रमुख माध्यम थे। वर्तमान में तेजी से बढ़ी आबादी को पीने एवं दैनिक जीवन के कामों के लिए शुद्ध पानी की कई गुना आवश्यकता बढ़ गई है। लेकिन बदलते समय में हमारे परंपरागत जल संरक्षण के स्रोत्र अतिक्रमण की चपेट में आ गए हैं। वर्तमान में आवश्यकता इस बात की थी कि नए तालाबों का निर्माण किया जाए। वहीं, पुराने तालाबों का संरक्षण किया जाए। लेकिन स्थित एक दम उलट है। हर गांव में तालाबों पर तेजी से अतिक्रमण हुआ है। उनका मूलस्वरूप को अतिक्रमण ने बदल दिया है, या फिर नष्ट ही कर दिया है। परिणामस्वरूप बरसात का पानी बर्बाद होकर नालियों और नालों में बह जाता है। तालाबों और पोखरों पर हुए अतिक्रण एवं अवैध कब्जों को लेकर सरकारों गंभीर नहीं है। शासन और प्रशासन इस अतिक्रमण को हटाने के लिए गंभीर प्रयास नहीं कर रहे हैं। हालांकि प्रदेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद तालाबों और पोखर के रूप में जल संरक्षण के परंपरागत स्रोत्र के संरक्षण के लिए अभियान चलाया था। लेकिन यह अभियान तालाबों को अतिक्रण एवं अवैध कब्जों से मुक्त कराने से अधिक वर्तमान में शेष बचे तालाबों को सहेजने का अधिक रहा।
बुजुर्गों की शिक्षाओं में छिपा है जल संरक्षण की प्रेरणा
हमारे बुजुर्ग जल की बर्बादी को लेकर भविष्य में आने वाली परेशानियों को हमसे कहीं अधिक अच्छी तरह समझते थे। हमने बुजुर्गों से सुना था कि कैसे हर मोहल्ले में जल के लिए एक कुआंं और तालाब होता था। कुआं से मानव दैनिक जीवन के उपयोग के लिए पानी का प्रयोग करता था। घर की महिलाएं स्नान के लिए कुए से पानी घर लाती थी। पुरूष भी कुआं पर ही स्नान करते थे। वहीं, पशुओं के लिए तालाबों का पानी प्रयोग में लाया जाता था। सनातन धर्म में जल को देवता का स्थान दिया गया है। धार्मिक अनुष्ठान एवं कर्मकाण्ड में जल का विशेष महत्व है। सृष्टि के निर्माण में जिन पंच तत्वों को शामिल किया गया है, उनमें जल भी एक तत्व है। हमारे बुजुर्ग हमेशा हमे बताते थे कि पानी को उतना ही उपयोग करो जितने की जरूरत है। पानी की बर्बादी पर ईश्वर को इसका हिसाब देना पड़ेगा। दरअसल, बुजुर्गों की हर शिक्षाओं और कहावतों के पीछे जल संरक्षण के लिए नैतिक कर्तव्य को पूरा करने के लिए प्रोत्साति करने का उद्देश्य छिपा होता था।
युवा पीढी को आगे आना होगा
देश की युवा पीढ़ी के कंधों पर जल संरक्षण के लिए बड़ी जिम्मेवारी है। यदि जल संकट अधिक विकराल होता है तो इसका दुष्प्रभाव आज की युवा पीढ़ी को ही झेलना होगा। वहीं, जिन लोगों को सुलभ तरीके से पानी उपलब्ध हो रहा है, उन्हें भी इस बात पर ध्यान देना होगा कि वह पानी की बर्बादी रोकें। घर पर केवल उतना ही पानी प्रयोग करें जितने की जरूरत है। जल संरक्षण के लिए तकनीकी तथा इलेक्ट्रोनिकस माध्यमों का प्रयोग करके पानी को बर्बाद न करें। बरसात के पानी के संरक्षण के लिए हो सकते तो हर मोहल्ले में सामुहिक रूप से वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाए जाएं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?
जल संरक्षण पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एवं पर्यावरणविद विक्रांत तौंगड़ का कहना है कि गौतम बुद्ध नगर दोआब के बीच का क्षेत्र है। यहां देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा जल संकट को लेकर काफी अच्छी स्थिति में था। लेकिन साल 2004 के बाद बिसरख ब्लॉक और जेवर ब्लॉक जल संकट के खतरनाक जोन में पहुंच गए। जेवर को जल संकट के लिए डार्क जोन में रखा जाता है। यहां भूजल बहुत नीचले स्तर पर है। वहीं नोएडा में कई सेक्टरों में यह स्थिति 300 फीट तक पहुंच गई है। दादरी क्षेत्र में भू गर्भ जल बेहतर स्थिति में था। लेकिन अब दादरी क्षेत्र में भी भूजल पर संकट मंडरा रहा है। चिटेहरा जैसे गांव में जल संकट के लक्षण कतई शुभ नहीं है। यहां लगभग आधा दर्जन तालाब और नहर भूमिगत जल के स्तर को बनाए रखने के बेहतर साधन थे। विक्रांत तोंगड़ का कहना है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में लगभग एक हजार कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट चल रहे हैं। यहां पर बेसमेंट निर्माण के लिए भूजल का दोहन किया जा रहा है। यदि इस संकट से निपटन के अभी से उपाय नहीं किए गए तो भविष्य में यह समस्या विकराल रूप ले लेगी। इसके लिए जरूरत है कि गांवों के तालाबों का सही रूप से संरक्षित किया जाए। नए तालाबों का निर्माण करके अधिक से अधिक वर्षा जल का संरक्षण किया जाए।
वहीं, ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट में बतौर हाईड्रोलॉजिस्ट अंकिता राय का कहना है कि गौतम बुद्ध नगर में तेजी जलदोहन बढ़ा है, लेकिन उस अनुपात में जल का संरक्षण नहीं किया जा रहा है। इसके चलते जल अब गांव देहातों में भी जल संकट से जूझना पड़ रहा है। जरूरत इस बात की है कि बरसात के जल को अधिक से अधिक संरक्षित किया जाए। वहीं, दादरी क्षेत्र में सिंचाई के लिए प्रमुख रूप से ग्राउंड वाटर को ही प्रयोग में लाया जाता है। वर्तमान में बढ़ते जल संकट के लिए यह प्रमुख कारण है। वहीं, धान की खेती में बहुत अधिक ग्राउंड वाटर का प्रयोग किया जा रहा है। वहीं, धान की फसल की कई ऐसी प्रजातियां है जिनके लिए सामान्य की अपेक्षा पानी की अधिक आवश्यकता होती है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सिंचाई के लिए नहर अथवा दूसरे स्रोत्रों का उपयोग किया जाए। कई बार एक स्थान पर हो रहा जलदोहन दूसरे स्थान को भी प्रभावित करता है। ऐसे में ग्रेटर नोएडा एवं दादरी क्षेत्र में जल संकट का बड़ा औद्योगिक और कंस्ट्रक्शन साइटों पर हो रहा जल दोहन भी है।