जेवर विधानसभा

आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी है कि 15 साल बाद भी प्राधिकरण किसानों को आबादी के विकसित भूखंड नही दे पा रहा है ?

After all, what is the compulsion that even after 15 years, the authority is not able to provide developed residential plots to the farmers?

Panchayat 24 : भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों की समस्‍याओं को लेकर जेवर विधायक धीरेन्‍द्र सिंह ने यमुना एक्‍सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी डॉ अरूणवीर सिंह को से मुलाकात की। विधायक ने साल 2009 में रबूपुरा तथा आसपास के गांवों के किसानों की जमीन का अधिग्रहण किए जाने के बाद अभी तक किसानों को आबादी के सात फीसदी विकसित भूखंड नहीं दिए जाने पर खेद प्रकट किया है। उन्‍होंने मुख्‍य मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी को पत्र लिखकर इस देरी का कारण जानना चाहा है। विधाक ने इस बारे में औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग के अपर मुख्य सचिव को भी पत्र लिखकर शासन को इस संबंध में अवगत कराते हुए किसानों की प्रमुख समस्‍या से अवगत कराया है।

जेवर विधायक ने एक किसान के नजरिए से समस्‍या को शासन स्‍तर पर अपर मुख्‍य सचिव और यमुना प्राधिकरण के मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी के सामने पत्र के माध्‍यम से प्रस्‍तुत किया है। पत्र के माध्‍यम से कहा गया है ”सन् 2009 में, मेरा लडका 10 वर्ष का था, आज वह 25 साल का होने जा रहा है। क्योंकि वह किसान का बेटा है, इसलिए उसे उम्मीद थी कि प्राधिकरण द्वारा सन् 2009 में अधिग्रहित की गयी भूमि के सापेक्ष मिलने वाले 07 प्रतिशत विकसित भूखंड पर अपने जीवन यापन से संबंधित कोई कार्य कर लेगा। 15 साल से भी अधिक समय बीत जाने के पश्चात प्राधिकरण द्वारा अभी तक रबूपुरा व अनेकों ग्रामों के सात फीसदी विकसित भूखंड किसानों को नही दिए गए हैं। वहीं, जिन किसानों की जमीनें सन् 2014 में अधिग्रहित की गयी थी, वहां सैक्टर 28, 29, 32 व 33 आदि बना लिए गए है। यहां  पर कई फैक्ट्रियां शुरू भी हो चुकी हैं।’’

पत्र में कहा गया है कि मेरे कहने का तात्पर्य आप समझ ही गए होंगे, जिन किसानों से जमीनें लेकर, औद्योगिक विकास को तेजी से बढाया गयाा। यहां पर अनेकों फैक्ट्रियां शुरू हो चुकी हैं, लेकिन जिसकी जमीन पर, सभी फैक्ट्रियां शुरू हुई हैं, वह किसान और उसके बच्चे, आज भी इस आशा से प्राधिकरण की ओर निहार रहे हैं कि हम भी इस औद्योगिक विकास की गति के साथ कदम ताल करते हुए, अपने जीवन यापन का कोई जरिया बना पाएंगे।

विधायक ने पत्र के माध्‍यम से सवाल पूछते हुए लिखा है कि आखिर प्राधिकरण के समक्ष, ऐसी कौन सी मजबूरी हैं, जो 15 वर्ष बाद भी अनेंकों ग्रामों के किसानों को इस लाभ से महरूम रखा गया ? वह कारण अगर मैं, जान पाऊँ तो हो सकता है कि भविष्य में इस अनावश्यक विलंब से बचा जा सकता है। मुझे यह भी पता है कि प्राधिकरण की तरफ से इसका जबाव आएगा कि शीघ्र ही हम विकसित आबादी भूखंड वितरित करने जा रहे हैं, लेकिन विषय यह नही है। विषय यह है कि बाद में अधिग्रहित की गयी जमीन पर उद्योग धंधे चालू हो सकते हैं तो किसान के परिवार के जीवन यापन का एक मात्र जरिया, वह विकसित भूखंड, जिससे किसान का बच्‍चा अपने भविष्य को संवार सकता था, ऐसी क्या मजबूरियां है, जो अभी तक उसका, यह अधिकार, उसे नही मिल पाया है ?विधायक धीरेन्‍द्र सिंह पत्र में लिखते हैं कि संवैधानिक रूप से जनप्रतिनिधि होने के नाते, मुझे सिर्फ ध्यान आकर्षित कराने का अधिकार मिला हुआ है। शेष नीति निर्धारण और अंतिम निर्णय प्राधिकरणों का विशेष अधिकार है।

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