दा बंगाल फाइल्स : ऐतिहासिक घटना को तथ्यों के साथ दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने का एक सहासिक प्रयास
The Bengal Files: A bold attempt to present the historical event to the audience with facts

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : भारत का विभाजन समस्या का एक मात्र विकल्प नहीं, बल्कि बंटवारे के बाद भविष्य में देश की एकता और अखंडता के लिए चुनौतियों को जन्म देने वाली साजिश थी। यह साजिश आज पश्चिम बंगाल में विकराल रूप धारण कर चुकी हैं। दा बंगाल फाइल फिल्म में इस विषय को शानदार तरीके से दिखाया गया है। फिल्म में भारत पाकिस्तान बंटवारे से पूर्व बंगाल के उस माहौल को दर्शाया गया है जिसमें डारेक्ट एक्शन-डे के नाम पर योजनाबद्ध तरीके से हिन्दुओं के नरसंहार को अंजाम दिया गया। कोलकाता (कलकत्ता) और नोवाखाली (वर्तमान में बंगलादेश का एक जिला) में जिन्ना और मुस्लिम लीग के समर्थकों की हिंसा को विवेक अग्निहोत्री ने जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है।
फिल्म की शुरुआत एक दलित युवती के अपहरण से होती है, जिससे मामला संवेदनशील हो उठता है। दिल्ली से सीबीआई अधिकारी शिव पंडित को जांच के लिए भेजा जाता है। बंगाल पहुँचकर वह देखता है कि कैसे राजनीतिक फायदे के लिए घुसपैठियों को बसाकर उनकी मदद से वोट बैंक तैयार किया जा रहा है। प्रशासन की मिलीभगत से दस्तावेज बनाकर डेमोग्राफी को बदलने की साजिश रची जा रही है। घुसपैठिए राजनीतिक दलों के लिए वोटबैंक बन चुके हैं और धर्म के नाम पर उनका प्रयोग किया जा रहा है। धर्म के नाम पर उनके द्वारा हिंसा को अंजाम दिया जा रहा है। फिल्म में दिखाया गया है कि 16 अगस्त 1946 को जिन्ना और मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को लेकर कलकत्ता और नोवाखाली में हिंदुओं का सामूहिक कत्लेआम करवाया था। यह सामूहिक नरसंहार आज भी बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में जारी है।
राजनीतिक दलों के लिए घुसपैठिये वोट बैंक बन गए हैं। नागरिक सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं। प्रशासन, सरकार और सत्ता के शीर्ष पर बैठे पदाधिकारियों और नेताओं द्वारा घुसपैठियों की मदद से की जा रही साम्प्रदायिक हिंसा को समर्थन दिया जा रहा है। फिल्म के तथ्यों से यह भी उजागर होता है कि महात्मा गांधी की अहिंसा की विचारधारा पर भी कई प्रश्न उठते हैं। फिल्म देखने पर आभास होता है कि महात्मा गांधी को अहिंसा के विचार को सार्वभौम समझने का भ्रम था ? डायरेक्ट एक्शन-डे के दौरान बंगाली हिन्दुओं को गांधी की अहिंसा की कीमत भारी कीमत चुकानी पड़ी ? जिन्ना और मुस्लिम लीग को समझने में महात्मा गांधी असफल रहे ? देश का बंटवारा रोकने के लिए जिन्ना और मुस्लिम लीग के तुष्टिकरण को महात्मा गांधी द्वारा बढ़ावा दिया जिसका परिणाम बंगाल के हिन्दुओं के नरसंहार के रूप में सामने आया ?
देश के बंटवारे के विषय पर महात्मा गांधी के निर्णय को कांग्रेस और मुस्लिम लीग अहम भूमिका मानते थे, लेकिन अपने खिलाफ उनका कोई भी निर्णय मान्य नहीं था ? दंगाईयों के सामने हिन्दु महिलाएं क्या करें ? फिल्म में इस सवाल का जवाब जिस तरह से महात्मा गांधी देते हैं, यह वाकई में उन्हें वैचारिक तौर पर कमजोर और क्रूर व्यक्ति के रूप में पेश करता है। इस फिल्म में महात्मा गांधी का जो आयाम प्रस्तुत किया गया है उसके बाद इतना तय है कि भारत में अब गांधी के महामानव होने पर सवाल उठेंगे। वहीं, उनके विचार आलोचना से परे नहीं होंगे ?
गोपाल पाठा का फिल्म में छोटा मगर दमदार किरदार दिखाया गया है। महात्मा गांधी से पाठा का संवाद एक पल के लिए पाठा की हिंसा को महात्मा गांधी की अहिंसा से अधिक प्रसांगिक बना देता है। वहीं, दंगाईयों के सामने हिन्दु महिलाओं को आत्मसम्मान बचाने के बारे में पाठा द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में दिया गया महात्मा गांधी का जवाब उन्हें निफरत का पात्र बना देता है। यह फिल्म कश्मीर फाइल्स 2.0 ही प्रतीत हुआ है। विवेक अग्निहोत्रि ने जहां पर कश्मीर फाइल्स को छोड़ा था, वहीं, से बंगाल फाइल्स को शुरू किया है। फिल्म का अंत बेहद नाटकीय अंदाज में होता है। फिर भी फिल्म में दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, मिथुन चक्रवर्ती और अनुपम खेर ने अपने-अपने किरदारों में दमदार अभिनय किया है। पुनीत इस्सर, शाश्वत चटर्जी, एकलव्य अरोड़ा, नमाशी चक्रवर्ती और राजेश अरोड़ा ने भी बेहतरीन भूमिका निभाई है।