स्पेशल स्टोरी

आपदा से निपटने में लाचार दिखा विद्युत विभाग : बड़ा सवाल, उपभोक्‍ताओं के लिए निजीकरण ही है एकमात्र बेहतर विकल्‍प ?

Electricity department appeared helpless in handling the disaster: Big question, is privatization the only better option for consumers?

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 : किसी भी आपदा पर सामूहिक प्रयासों से ही विजय हासिल की जा सकती है। कुछ ऐसे ही प्रयास दो दिन पूर्व आई तेज आंधी और बरसात जैसी प्राकृतिक आपदा में दादरी क्षेत्र मे देखने को मिला। भारी संख्या में पेड़ विद्युत लाइन के ऊपर गिर गई कई स्थानों पर विद्युत पोल भी क्षतिग्रस्त हो गए जिसके कारण दादरी नगर और आसपास के गांव में विद्युत आपूर्ति पूरी तरह बाधित हो गई। दूसरी ओर गर्मी के मौसम में विद्युत आपूर्ति बाधित होने से लोगों का बुरा हाल था।

हालात पर काबू पाने के लिए विद्युत विभाग द्वारा क्षेत्र की जनता से सहयोग की अपील की थी। परिस्थितियों को देखते हुए जनता ने भी धैर्य दिखाया और सहयोग किया। लगभग दो दिन और दो रातों के बाद दादरी नगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति सुचारू हो सकी। धैर्य बनाए रखने के लिए क्षेत्र की जनता और दिन रात कड़ी मेहनत के लिए विद्युत विभाग के अधिकारी तथा कर्मचारी साधुवाद के पात्र हैं।

एक अन्य पहलू बताता है कि सब कुछ इतना सुंदर नहीं है जितना पूरे प्रकरण में प्रथम दृष्‍टया दिखाई दे रहा है। जिस दौर में बिजली मानव जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है। गर्मी के मौसम में पटरी से उतरी हुई विद्युत व्यवस्था को दुरुस्थ करने में दो दिन लगने चाहिए थे? क्‍या हालात वास्‍तव में इतने जटिल थे या विभाग की पूर्व की लापरवाहियों और उदासीनता के कारण बन गए थे ? यह घटना विभाग की व्‍यवस्‍था की कार्ययोजना और कार्यशैली पर सवाल उठती है ?

इस पूरे प्रकारण को देखकर ऐसा कतई नहीं लगता कि विभाग के पास किसी आपात स्थिति का सामना करने के लिए कोई पूर्व योजना थी, क्योंकि जिले के दूसरे हिस्सों में बाधित हुई आपूर्ति चंद घंटों में सुचारु हो चुकी थी। प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए विभाग द्वारा मानवीय संसाधन बढ़ाकर तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए थी। यहां विभागीय अधिकरी मानवीय संसाधनों के अभाव का रोना रो सकते हैं।

जानकारी के अनुसार विभाग द्वारा फील्ड स्टॉफ (लाइन मेन) आउट सोर्सिंग द्वारा रखे जाते हैं। पूर्व मे प्रत्येक बिजली घर पर 16 आउटसोर्सिंग कर्मचारी रखे जा रहे थे। बाद मे विभाग को वित्तीय घाटे की बात कहकर कर्मचारियों की संख्या घटाकर 9 कर दी गई है। जबकि बिजली लोड बढ़कर दो गुना हो चुका है। ऐसे मे आपात स्थिति की बात छो‍डिए, सामान्य दिनों में भी आउटसोर्सिंग कर्मचारी उपभोक्ताओं की समस्याओं का निवारण करने में पर्याप्त और सक्षम नहीं हैं।

उपभोक्तावादी दौर में कम समय और गुणवत्‍ता ही शानदार सेवा का आधार है। दो दिन और दो रातों के बाद बिजली आपूर्ति सुचारु करने पर विद्युत विभाग द्वारा क्षेत्र की जनता पर कोई उपकार किया गया है ? यह दायित्व पूर्ति का विषय है। विभाग का हर संभव प्रयास होना चाहिए कि किस प्रकार उपभोक्ताओं को शीघ्र अतिशीघ्र गुणवत्तापूर्ण सेवा मुहैया कराई जाए।

विद्युत विभाग के  अधिकारियों की कार्यशैली और लगातार बढ़ रहे विभागीय घाटे को देखते हुए प्रदेश सरकार विभाग का निजीकरण करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है। पहले चरण में पूर्वांचल और मध्यांचल विद्युत निगमों के निजीकरण पर विचार किया जा रहा है। अगले चरण में पश्चिमांचल विद्युत निगम के निजीकरण किया जा सकता है। निजीकरण का विरोध विभागीय अधिकारी और कर्मचारियों द्वारा निजी हितों के आधार पर किया जाता है।

उपभोक्ताओं के लिए निजीकरण एक विकल्प है। निजीकरण से उपभोकता बेहतर गुणवत्ता पूर्ण सेवा प्राप्त कर पाते है। अचानक आई आपदा ने दादरी क्षेत्र में विद्युत विभाग की कार्यशैली की पोल खोल दी है। ऐसे में एक बार फिर यही सवाल आकर खड़ा हो गया है क्या निजीकरण वास्तव में विद्युत उपभोक्ताओं के सामने एकमात्र विकल्प है ?

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