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सरदार वल्‍लभभाई पटेल की जयंती पर विशेष : भारत की राष्‍ट्रीय एकता के शिल्‍पकार सरदार वल्‍लभभाई पटेल

Special on the birth anniversary of Sardar Vallabhbhai Patel: Sardar Vallabhbhai Patel, the architect of India's national unity

Panchayat 24 : सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे। उन्‍होंने स्वतंत्रता के बाद भारत के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी दृढ, इच्छाशक्ति, प्रशासनिक योग्यता और अद्वितीय त्याग ने उन्हें ‘लौह पुरुष’ का सम्मान दिलाया। उनके संघर्ष और संकल्प के परिणामस्वरूप आज का भारत एक एकीकृत राष्ट्र है। इस लेख में हम उनकी जयंती के विशेष अवसर पर उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं, आंदोलनों और उनके राष्ट्रनिर्माण के योगदान पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

वल्‍लभभाई पटेल का जन्‍म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ। उनका जीवन प्रारंभ से ही संघर्षपूर्ण था। उनका जन्‍म एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उन्‍होंने परिवार में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण की। अपने मजबूत आत्मबल के साथ उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने कानून की पढाई की।

बड़े भाई विट्ठलभाई को विदेश भेजने का निर्णय

वल्लभभाई पटेल ने इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई करने का निश्‍चय किया। इसके लिए उन्होने अपनी वकालत से पैसे इक्कठे लिए। उनके बडे भाई विट्ठलभाई पटेल ने उनसे पहले बैरिस्टर बनने की जिद की और समाज में उनके प्रति सम्मान को देखते हुए और परिवार के कहने पर वल्लभभाई ने यह धन अपने भाई को इंग्लैंड भेजने में दे दिया। बाद में, उन्होंने स्वयं भी 1909 में इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की और 1913 में भारत लौटे। बाद में उनके बडे़ भाई विट्ठलभाई पटेल, प्रतिष्ठित बैरिस्टर बने और 1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधीजी के आहवान पर सरकारी अदालतों को बहिष्कार करने वाले प्रतिष्ठित वकीलों में से एक थें । यह उनका अपने बडे़ भाई के प्रति प्रेम एवं समर्पण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है ।

अहमदाबाद में वकालत और राजनीतिक जीवन की शुरुआत

अहमदाबाद में वकालत की प्रैक्टिस करते हुए उन्होंने अपनी अद्भुत वकालत क्षमता के बल पर समाज में अलग पहचान बनाई। इस दौरान महात्मा गांधी के संपर्क में आने से उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। गांधीजी के नेतृत्व में वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और असहयोग आंदोलन का सक्रिय हिस्सा बने।

अहमदाबाद के मेयर के रूप में योगदान

साल 1924 में पटेल अहमदाबाद नगर के मेयर बने। इस पद पर रहते हुए उन्होंने नगर के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उनकी सोच थी कि प्रशासनिक सुधारों के साथ-साथ सामाजिक सुधार भी आवश्यक हैं। मेयर के पद पर रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्य किये लेकिन शहर की सफाई एवं नगरवासियों के लिए पानी की व्यवस्था उनमें से प्रमुख थे। वह कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे थे। इनमें अहमदाबाद नगर निगम के मेयर, बॉम्बे प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, बारदोली सत्याग्रह के नेता, भारतीय संविधान सभा के सदस्य और मौलिक अधिकार समिति के अध्यक्ष, भारत के प्रथम गृहमंत्री और भारत के उप प्रधानमंत्री आदि। उनका कहना था कि        देश में राजनीति को ठीक करने से बेहतर है कि नगर की शहर की नालियों की सफाई की जाए। यह कथन उनके सेवा के प्रति समर्पण को दर्शाता है। इससे यह प्रतीत होता है कि देश की राजनीतिक सुचिता उनमें पहले से ही विद्वमान है ।

खेड़ा आंदोलन : किसानों के अधिकारों की रक्षा

खेड़ा आंदोलन 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में सूखे और फसल की बर्बादी के कारण किसानों पर ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए करों के खिलाफ था। सरदार पटेल ने किसानों की स्थिति को समझा और गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन का संचालन किया। उन्होंने किसानों से कर न देने की अपील की और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। इस आंदोलन में पटेल ने किसानों को एकजुट किया और ब्रिटिश सरकार को कर माफ करने पर मजबूर कर दिया। यह उनकी पहली बड़ी सफलता थी, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

बारडोली सत्याग्रह और ‘सरदार’ की उपाधि

’बारडोली आंदोलन’ 1928 में गुजरात के बारडोली क्षेत्र में हुआ एक महत्वपूर्ण किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया। ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानो पर 28 प्रतिशत कर लगा दिये गये थे यह आन्दोलन किसानो पर लगाये गये करों के खिलाफ था, जिसने किसानों की आर्थिक स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया। बारडोली गुजरात का एक प्रमुख कृषक क्षेत्र था, जहां मुख्यतः छोटे और मंझोले किसान रहते थे। 1927 में खराब फसल के कारण किसान पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रहे थे। ऐसे में ब्रिटिश सरकार द्वारा लगान में भारी वृद्धि करना उनके लिए असहनीय हो गया। बारडोली के किसानों की अपील पर पटेल ने इस आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया। उन्होंने आंदोलन को अहिंसक तरीके से चलाने का संकल्प लिया।

लेखक – भूपेन्‍द्र कुमार

उन्होंने गांव-गांव जाकर किसानों को संगठित किया और उन्हें बताया कि वे अपने करों का भुगतान नहीं करेंगे, जब तक कि सरकार इसे घटाने पर सहमत न हो जाए। सरदार पटेल ने किसानों से अपील का प्रभाव यह हुआ कि जो किसान कर देने में सक्षम थे, उनकी अपील पर उन्होनें भी कर देने से मना कर दिया । इस आन्‍दोलन में महिलाओं की भूमिका बहुत अहम रही। इस आंदोलन की सफलता के बाद, बारडोली की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी, इसके उपरान्त ही वल्लभभाई पटेल, सरदार वल्लभभाई पटेल कहलाये गये। इस उपाधि ने वल्लभभाई पटेल को एक राष्ट्रीय पहचान दिलाई। आन्‍दोलन के दौरान जब सरदार वल्‍लभभाई पटेल को लगा कि अब सरकार उन्हें गिरफ्तार कर लेगी तो उन्होंने से महात्मा गांधी को संदेश भेजा कि यदि सरकार ने मुझे गिरफ्तार कर लिया तो आप इस आन्दोलन का नेतृत्व स्वीकार कर लेना। इस आन्दोलन की सफलता के बाद गांधीजी ने कहा था यदि यह आन्दोलन सफल नहीं होता तो मै मानता की कोई भी नेता, मै भी इस आन्दोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व नहीं कर सकता था। बारडोली आंदोलन’ सरदार वल्लभभाई पटेल के दृढ़ नेतृत्व और साहस का प्रतीक था, जिसने उन्हें ‘लौह पुरुष’ के रूप में स्थापित किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता बना दिया।

संविधान सभा में महत्वपूर्ण भूमिका और धारा 370 पर विचार

सरदार पटेल संविधान सभा में मौलिक अधिकार समिति के अध्यक्ष थे। उनके विचार संविधान के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण थे। वह धारा 370 के खिलाफ थे, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देती थी। जम्मू-कश्मीर का अपना सवंधिान था, और भारतीय संविधान के कुछ ही अनुच्छेद इस पर लागू होते थे । भारत सरकार के पास इन अनुच्छेदों में केवल रक्षा, विदेश मामलें एवं संचार पर ही अधिकार था । भारतीय संसद द्वारा बनाये गये कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते थे, उन कानूनों पर राज्य सरकार की स्वीकृति जरूरी थी। इस अलावा कुछ विशेष अधिकार थे, जैसे जम्मू-कश्मीर का स्थाई निवासी ही वहां जमीन खरीद सकता था ओर केवल वहां के निवासियों को ही सरकारी नौकरी का अधिकार था और जम्मू-कश्मीर के बाहर के व्यक्तियों को नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था नहीं थी । पटेल का मानना था कि भारत की एकता के लिए सभी राज्यों का समान अधिकार होना चाहिए। हालांकि, जवाहरलाल नेहरू के समर्थन से यह धारा संविधान में शामिल की गई।

अनुच्छेद 370 में संशोधन को लेकर भारतीय संविधान सभा में 100 से अधिक आपत्तियां प्राप्त हुई थी, जिनका जबाब देने की जिम्मेदारी पहले सरदार वल्लभभाई पटेल को सोंपी गयी, लेकिन पटेल अनुच्छेद 370 का विरोध कर रहे थे, इसलिए उन्होनें इसके जवाब देने से मना कर दिया । इसके बाद डॉ0 बी0आर0 अम्बेडकर को इन आपत्तियों का जबाब देने के लिए उत्तरदायित्व दिया गया। डॉ. बी.आर. अंबेडकर भी इसके खिलाफ़ थे। अंततः एन. गोपालस्वामी आयंगर, जो जम्मू-कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ थे और ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य थे, ने धारा 370 की आपत्तियों का उत्तर दिया।

भारतीय प्रशासनिक सेवा की स्थापना

भारत की स्वतंत्रता के बाद पटेल ने ICS (भारतीय सिविल सेवा) को IAS (भारतीय प्रशासनिक सेवा) में बदल दिया। उनका उद्देश्य था कि भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों में राष्ट्रसेवा का भाव हो। उन्होंने मसूरी में IAS अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए संस्थान की स्थापना की, जहाँ से प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाता है। आज IAS को भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए सबसे प्रमुख सेवा मानी जाती है।

भारतीय रियासतों का एकीकरण

देश की आजादी के बाद, ’भारत का एकीकरण’ एक अत्यंत महत्वपूर्ण और जटिल कार्य था, जिसमें 560 से अधिक रियासतों को स्वतंत्र भारत में शामिल करना शामिल था। इस चुनौतीपूर्ण कार्य का नेतृत्व ’सरदार वल्लभभाई पटेल’ ने किया। सरदार पटेल ने यह कार्य कूटनीति, कुशल प्रशासनिक क्षमता, दूरदर्शिता, और कभी-कभी सख्ती से किया। उन्होंने रियासतों के शासकों से बातचीत की और उन्हें यह समझाने का प्रयास किया कि उनके राज्य का भारत में विलय ही उनकी और उनकी जनता की भलाई के लिए सही है। अधिकतर रियासतों ने सहजता से भारत में शामिल होने की सहमति दी, लेकिन कुछ रियासतों ने विरोध किया।

’जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी थी, लेकिन वहां की जनता भारत में शामिल होना चाहती थी। भौगोलिक दृष्टिकोण से भी जूनागढ़ भारत में था और उसकी सीमांए पाकिस्तान से जुडी हुई नहीं थी, इसलिए वहां की जनता भारत में शामिल होना चाहती थी, दुसरा कारण था कि जूनागढ़ हिन्दु बहुसंख्यक था, लेकिन वहां के नवाब मुस्लिम थे, इसलिए वह जूनागढ़ को पाकिस्तान में सम्मिलित करना चाहते थे । सरदार पटेल ने हल्के सैन्य बल का प्रयोग किया और नवाब पाकिस्तान भाग गये । फिर पटेल ने जनमत संग्रह कराया, जिसमें जनता ने भारत में शामिल होने का समर्थन किया, और अंततः जूनागढ़ का भारत में विलय हुआ।

हैदराबाद देश की सबसे बड़ी एवं सम्पन्न रियासतों में से एक थी । इसके शासक निजाम, मीर उस्मान अली खान थे, जिन्होनें हैदराबाद को एक स्वतन्त्र राज्य बनाये रखने का फैसला किया था। वह न तो भारत और न ही पाकिस्तान में सम्मिलित होना चाहते थे। हैदराबाद भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत के मध्य में है, इसलिए इसको स्वतंत्र रखने में भारत की एकता एवं अखण्डता तथा सुरक्षा को खतरा था । सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कूटनीति एवं बातचीत से समाधान का प्रयास किया, लेकिन जब समस्त प्रयास विफल हो गये तो सैन्य बल का प्रयोग किया, जिसे ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया। हैदराबाद की सेना ने आत्मसर्मपण कर दिया और आखिरकार हैदराबाद भी भारत का अभिन्न अंग हो गया।

जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय स्वत्रन्ता के बाद सबसे जटिल एवं सवेदनशीन मुद्दों में से एक था। जम्‍मु कश्‍मीर तथा उससे जुड़े मामले तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पास थे। ऐसे में उन पर सरदार पटेल बहुत कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थे। जम्‍मु एवं कश्‍मीर पर पंडित जवाहर लाल नेहरू के दृष्टिकोण से सरदार पटेल सहमत नहीं थे। कई मामलों में उन्‍होंने खुलकर असहमति भी जताई थी। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान द्वारा किए गए हमले के बाद उन्होंने भारत में विलय का निर्णय लिया। कश्‍मीर पर पाकिस्‍तान के कबाइली हमले के बावजूद जवाहर लाल नेहरू के उदासीन रवैये के कारण सरदार पटेल खासे नाराज थे। बाद में उनके ही प्रयास से कश्‍मीर में भारतीय सेना भेजी गई जिसके परिणामस्‍वरूप वर्तमान कश्‍मीर बच सका। सरदार पटेल के विरोध के बावजूद पंडित नेहरू कश्‍मीर मामले को यूएनओ में ले गए। कश्‍मीर समस्‍या हमेशा सरदार पटेल को चुभती रही। वह राष्‍ट्रीय एकता के लिए अविभाज्‍य जम्‍मु एवं कश्‍मीर का पूरी तरह से भारत में विलय चाहते थे।

देश की 560 से अधिक रियासतों को भारत में विलय के लिए ही सरदार पटेल को ’‘लौह पुरुष’’ के रूप में सम्मानित किया गया, क्योंकि उन्होंने न केवल भारत के क्षेत्रीय एकीकरण को संभव बनाया, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप को एक सशक्त राष्ट्र के रूप में खडा किया। उनके दृढ निश्चय और कुशल कूटनीति के कारण, लगभग सभी रियासतों का भारत में सफलतापूर्वक विलय हो गया, जिससे एक ’सशक्त, संगठित और अखंड भारत’ का निर्माण हुआ। उनकी इस उपलब्धि के कारण उन्हें ‘लौह पुरुष’ की उपाधि दी गई। लॉर्ड माउंटबेटन ने भी कहा था कि यदि रियासतों को एकीकरण में जऱा सी भी चूक को जाती तो इसके दुष्परिणामों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। देश में यदि पटेल न होते तो भारत का एकीकरण संभव नहीं होता।

प्रधानमंत्री पद की दौड़ और गांधीजी का हस्तक्षेप

स्वतंत्रता के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए पटेल का समर्थन सबसे अधिक था, परंतु महात्मा गांधी के हस्तक्षेप से जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया गया। पटेल ने राष्ट्रहित में नेहरू का समर्थन किया और उप प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री का पद स्वीकार किया। भारत की संविधान सभा में भी सरदार वल्‍लभभाई पटेल एक महत्‍वपूर्ण स्‍तंभ थे। संविधान सभा में अधिकांश मामलों पर पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदरर वल्‍लभभाई पटेल का ही प्रभाव था। सरदार वल्‍लभ भाई पटेल की असहमति को अनदेखा करना असंभव था। कई बार पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी असहम‍त होने के बावजूद उनके विचार को स्‍वीकार करना पड़ा थाद्य

मरणोपरांत सम्मान और ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’

सरदार पटेल का निधन 15 दिसंबर 1950 को हुआ। उनकी सेवाओं के सम्मान में उन्हें 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 2018 में उनके सम्मान में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण किया गया, जो विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा है। यह प्रतिमा उनके भारत की एकता के प्रति समर्पण की प्रतीक है। सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन साहस, संकल्प और राष्ट्र के प्रति समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने भारतीय एकता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और स्वतंत्रता के बाद भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनका मानना था कि एक सशक्त और एकीकृत भारत ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल की महानता और उनके योगदान को याद करते हुए, हमें उनके बताये गये मार्ग पर चलना चाहिए। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

लेखक सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों पर एक स्‍वतंत्र टिप्‍पणीकार है। 

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