स्पेशल स्टोरी

आखिर क्यों औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों का स्‍वास्‍थ्‍य हो जाता है खराब ?

Do the officers and employees of the Industrial Development Authority feel uneasy after hearing the order to take action against encroachment?

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 (ग्रेटर नोएडा) : क्‍या प्राधिकरणों में अधिकारियों और कर्मचारियों में काम से बचने के लिए बहाने बनाने की प्रवृति जन्‍म ले रही है ? क्‍या अतिक्रमण पर कार्रवाई में सहयोग करने की अपेक्षा ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अधिकारी एवं कर्मचारी बीमार होने का बहाना बनाने लगे हैं ? क्‍या अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई वाकई इतनी दबावपूर्ण अथवा भयभीत करने वाली है कि संबंधित अधिकारी और कर्मचारी कार्रवाई से पूर्व ज्‍वर (बुखार) का शिकार हो जा रहे हैं ? दरअसल, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्‍स्‍प्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण भी अतिक्रमण की समस्‍या से जूझ रहे हैं। उत्‍तर प्रदेश सरकार वन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था के सपने को साकार करने में तीनों प्राधिकरणों को अहम भूमिका में देखा रही है। पूंजी निवेश के लिए उत्‍तर प्रदेश को गुजरात, महाराष्‍ट्र, हरियाणा एवं दूसरे राज्‍यों से प्रतिस्‍पर्धा करनी पड़ रही है।

तीनों औद्योगिक विकास प्राधिकरणों को सरकार का सीधा निर्देश है कि निवेशकों का आने का इंतजार न करें। निवेशकों के पास पहुंचकर उन्‍हें अपने अधिसूचित क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रेरित करें। तीनों ही प्राधिकरणों में अतिक्रमण की समस्‍या सरकार की मंशा के आड़े आ रही है। स्थिति यह है कि निवेशकों को औद्योगिक विकास का मूल तत्‍व जमीन ही मुहैया कराने में प्राधिकरणों के पसीने छूट रहे हैं। औद्योगिक विकास के लिए प्राधिकरण जहां किसानों से जमीन प्राप्‍त करने में असफल साबित विफल हो रहे हैं। वहीं उनकी अधिसूचित जमीन पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्‍जा, अतिक्रमण और बड़े पैमाने पर अनाधिकृत कॉलोनियां बसाई जा चुकी हैं। अतिक्रमण की यह प्रक्रिया अनवरत जारी है। ग्रेटर औद्योगिक विकास प्राधिकरण के वरिष्‍ठ अधिकारी से अनौपचारिक संवाद का अवसर मिला तो उनके अधिसूचित क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमण पर बातचीत की। उन्‍होंने गंभीरतापूर्वक हमारी बातों के जवाब दिए। उन्‍होंने माना कि अतिक्रमण के कारण प्राधिकरण का उद्देश्‍य बाधित हो रहा है।

हमने पूछा क्‍या अतिक्रमण को लेकर प्राधिकरण के पास नीतियों का अभाव है जिसके चलते प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही है ? उन्‍होंने असहमति व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि ऐसा नहीं है, लेकिन अतिक्रमण को लेकर प्राधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों का रवैया सहयोगात्‍मक नहीं है जिसके कारण कई बार नीतियों को वास्‍तविक रूप में जमीन पर उतारने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अधिकारियों और कर्मचारियों से अतिक्रमण पर कार्रवाई के लिए कहा जाता है तो इनका स्‍वास्‍थ्‍य खराब हो जाता है। किसी को बुखार आ जाता है तो किसी के परिवार का कोई अन्‍य सदस्‍य बीमार हो जाता है। अधिकारी की बात सुनकर हम कुछ पूछते उससे पहले ही अधिकारी एकदम चुप हो गए। उन्‍होंने हमारी ओर देखा और अपने अन्‍य काम को करने में जुट गए। उनके चेहरे पर एक तरह की विवश्‍ता का भाव था।

हम भी समझ गए कि हमारे कुछ कहने से पूर्व उन्‍होंने हमारे सवाल को समझ लिया है। उनका कुछ समय के लिए मौन हमारे सवाल को बिना कुछ कहे ही पुष्‍ट कर रहा था। अर्थात प्राधिकरण के अधिकारी एवं कर्मचारी अतिक्रमण के गोरखधंधे के खेल से अपने निजी हितों को गहराई तक जोड़ चुके हैं। अतिक्रमण पर कार्रवाई करने के नाम पर अपने कर्तव्‍यों तक से समझौता कर चुके हैं। यही कारण है कि अतिक्रमण विरोधी कार्रवाईयों में प्राधिकरण के वरिष्‍ठ अधिकारियों को अपने ही अधिनस्‍थ अधिकारियों और कर्मचारियों से मन वांछित सहयोग प्राप्‍त नहीं हो पा रहा है। कमोबेश यह स्थित तीनों ही औद्योगिक विकास प्राधिकरणों की भी बनी हुई है। ऐसे में सवाल उठता है क्‍या प्राधिकरणों के अधिकारियों और कर्मचारियों का विशेष प्रकार का यह ज्‍वर लाइलाज हो चुका है ? यदि नहीं तो बेहतर होगा प्राधिकरणों को जल्‍द से जल्‍द इस ज्‍वर का उपचार शुरू कर देना चाहिए। शासन और सरकार को भी उपचार में प्राधिकरण का सहयोग करना चाहिए। अन्‍यथा काफी देर हो चुकी होगी।

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