आंसू रे आंसू तेरा रंग कैसा ? कभी खुशी कभी गम, राजनीति में हार, कभी जीत जैसा
Tears, tears, what is your colour? Sometimes happiness, sometimes sadness, sometimes defeat in politics, sometimes victory

Panchayat 24 : दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व दिल्ली में राजीनति के नए नए रंग देखने को मिल रहे हैं। दक्षिणी दिल्ली से भाजपा के पूर्व सांसद और कालका विधानसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार रमेश विधूड़ी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री और कालकाजी विधानसभा सीट से ही आम आदमी पार्टी उम्मीदवार आतिशी मार्लेना के पिता को लेकर टिप्पणी की है। आम आदमी पार्टी ने इसे मुद्दा बनाया और भाजपा पर राजनीतिक हमला बोला। सोमवार को आतिशी इस घटना का जिक्र करते हुए मीडिया के सामने भावुक हो गई। उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने खुद को संभाला। पानी पिया और फिर बोलना शुरू किया।
आंसुओं की बात करें तो वेदना, पीड़ा और दर्द का भाव स्वत: ही मन में आ जाता है। फिर भी आंसु अत्यधिक खुशी के पल का साक्षी भी बन जाते हैं। राजनीति में भी आंसु महत्वपूर्ण हो गए हैं। यदि मौका मिल जाए तो विरोधी की मजबूत रणनीति को कुछ पल में ही चारों खाने चित कर दें। वैसे तो राजीनति में भावनाओं और आंसुओं के लिए कोई स्थान नहीं होता। फिर भी नेता राजनीति में आंसुओं की कीमत समझते हैं। बात चुनावी राजनीति की हो तो आंसू हारी बाजी जिताने की क्षमता रखते हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना राजनीति में आंसुओं के महत्व से अंजान हो ? वैसे तो राजनीति में आंसुओं के कारण कई लोगों की नईया पार लगी है। इन आंसुओं में कईयों के सिर से जीत का का ताज भी डूब गया होगा।
गौतम बुद्ध नगर में पंचायत चुनाव के दौरान मैं आंसुओं का प्रभाव देख चुका हुं। दरअसल, नरेश भाटी जेल से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे थे। चुनाव धीरे धीरे नरेश भाटी के हाथ से निकल चुका था। अंतिम समय में चुनाव की कमान नरेश भाटी के परिवार की महिलाओं ने संभाली। चुनाव प्रचार में उन्होंने क्षेत्र के लोगों से नरेश भाटी के पक्ष में मतदान करने के लिए भावुक अपील की। चुनाव प्रचार के दौरान उनकी आंखें नम भी हुई। इनकी भावुक अपील और आंखों में आए आंसुओं के प्रभाव से विरोधी धराशाई हो गए। नरेश भाटी भारी मतों से चुनाव जीत गए। बाद में वह जिला पंचायत अध्यक्ष बने। हाल ही के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की प्रेसवार्ता में एक पार्टी के प्रत्याशी आंखों में एक तरल पदार्थ डालकर पहुंचे। पत्रकारों के सामने विरोधियों द्वारा लगाए गए आरोपों का जिक्र करते हुए भावुक हुए और अचानक आंखें आंसुओं से भर आई। मौका पाकर उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को अपनी कौम का अपमान बताना शुरू किया और स्वयं को कौम का सच्चा सिपाही घोषित कर दिया।
यह विचार करना भारी भूल होगी कि आंसु और भावनाएं बड़े मौकों और लोगों पर बेअसर होते हैं। आंसुओं के वशीभूत होकर जनता नेताओं और उनकी नीतियों का समर्थन और विरोध करती है। छोटे और बड़े स्तर की राजनीति कोई मायने नहीं रखती है। कई बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई मौकों पर भावुक हुए और आंखें भी नम हुई। यह दृश्य लोगों के दिल में गहराई कि उतर गया। परिणामस्वरूप मतदाताओं का बड़ा वर्ग नरेन्द्र मोदी के पक्ष में लांमबद हो गया। विरोधियों ने नरेन्द्र मोदी की नीतियों पर लाख आरोप लगाए। आरोप सही थे या गलत, यह अलग बात है। जनता आरोपों को स्वीकार करने के तैयार नहीं थी। परिणामस्वरूप 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत में भावनाएं और आंसू भी एक कारक बनें। अभी तो दिल्ली विधानसभा चुनावों की विधिवत घोषणा भी नहीं हुई है। चुनाव के कई रंग लोगों के सामने आएंगे। संभव है मौके और परिस्थितियों के अनुसार कुछ और राजनीतिक योद्धाओं की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकले। अंतत: आंसुओं की सच्चाई और भाव लोगों को ही तय करना होता है।