स्पेशल स्टोरी

गौतम बुद्ध नगर में हो रहा है नए माफिया का उदय, पीडितों को न्‍याय दिलाना व्‍यवस्‍था के लिए चुनौती

A new mafia is emerging in Gautam Buddha Nagar, providing justice to the victims is a challenge for the system

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 : गौतम बुद्ध नगर तेजी से होते विकास के साथ माफियाओं के लिए भी चर्चा में रहा है। यदि कहा जाए कि जिस तरह से से समुन्‍द्र मंथन से निकलने वाले चौदह रत्‍नों के साथ हलाहल विष भी निकला था, उसी प्रकार यहां विकास के साथ विभिन्‍न माफियाओं का भी जन्‍म हुआ है। इस बार हम जिस मफिया की बात कर रहे हैं वह एक अलग तहर का नया माफिया है। इसके निशाने पर मजदूर एवं कॉन्‍ट्रेक्‍ट पर काम करने वाले लोग हैं। कानून और व्‍यवस्‍था की कमजोरियों को यह नया माफिया अपने हथियार के रूप में प्रयोग करता है। जिला प्रशासन, पुलिस और कानून की तय मर्यादाओं के बीच छूटे रिक्‍त स्‍थान का लाभ उठाना उसको अच्‍छी तरह आता है। इनके समूह में कानून के जानकार और पुलिस और प्रशासन में प्रभाव रखने वाले लोग भी शामिल होते हैं। नया माफिया से पीडित लोगों की संख्‍या तेजी से बढ़ रही है। पुलिस और प्रशासन के पास फरियाद लेकर पहुंच रहे ऐसे लोगों की संख्‍या तेजी से बढ़ रह है। यह व्‍यवस्‍था के सामने एक चुनौती बन गया है।

दरअसल, इस नए माफिया समूह में बिल्‍डर, कंस्‍ट्रक्‍टर और कंस्‍ट्रक्‍शन पेशे से जुड़े लोग शामिल हैं। इनके द्वारा निर्माण कार्य के लिए छोटे-छोटे मेटेरियल सप्‍लायर, ठेकेदारों और मजदूरों को काम दे देते हैं। शुरूआत में किए गए काम का भुगतान भी समय पर किया जाता है। बाद में इन माफियाओं द्वारा भरोसे में लेकर धीरे-धीरे इनसे इनकी क्षमता से अधिक रूपयों का काम करा लिया जाता है। इन छोटे मेटेरियल सप्‍लायारों, ठेकेदारों और मजदूरों को इस तरह भरोसे में लिया जाता है कि कई बार यह अपनी जमा पूंजी, यहां तक कि कर्ज लेकर भी लगा दिया जाता है। नए माफिया का शिकार होने वाले लोगों को अधिकांशत: कानून की बारिकियों का पता नहीं होता है। यदि कभी कभार कोई व्‍यक्ति समझौते को कानूनी रूप देने की बात कहता है अथवा किए गए काम के बिल के लिए कहा जाता है तो उन्‍हें भरोसे की दुहाई देकर चुप करा दिया जाता है। यदि कोई उनकी बात पर भरोसा नहीं करता है तो उन्‍हें काम से हटा दिया जाता है।

नए माफिया के चंगुल में फंस चुके लोगों को जब तक अपने साथ हुई धोखाधड़ी का पता चलता है तब तक उनके हाथों से बाजी निकल चुकी होती हैं। ऐसे में पीडितों का माफियाओं की शर्तों को मानने के अतिरिक्‍त कोई विकल्‍प नहीं होता है। शुरूआत में पीडितों को जल्‍द ही उनकी रकम लौटाने की बात कही जाती है। फिर झूठे आश्‍वासनों का दौर शुरू होता है। नए माफियाओं के चंगुल में फंस चुका पीडित उनके पीछे चक्‍कर लगाते लगाते टूट जाता है तो उसको झूठे आरोप लगाकर थोड़ा बिल की धनराशि की कुछ रकम लेकर शांत बैठने की बात की जाती है। पीडित इस बात को भली भांति जानता है कि नए माफिया के सामने उसके हाथ कट चुके हैं। आरोपी माफिया पीडित की लाचारी भली भांति जानता है।

यदि पीडित नए माफिया के प्रस्‍ताव को नहीं मानता है तो उन्‍हें धमकाया जाता है। कहा जाता है कि वह उनके खिलाफ न्‍यायालय में चला जाए अथवा पुलिस में एफआईआर दर्ज का दे। जिला अधिकारी अपने पास आने वाले ऐसे मामलों को संबंधित थानों के लिए भेज देते हैं। पुलिस अधिकांशत: ऐसे मामलों में पीडित का बहुत अधिक सहयोग नहीं करती है। बहुत अधिक हुआ तो एफआईआर दर्ज कर इतिश्री कर लिया जाता है। हालांकि पुलिस उंगली टेढी करके भी कई बार ऐसे मामलों को हल करती है, लेकिन ऐसी किस्‍मत सभी की नहीं होती है। एक बार न्‍यायालय में पहुंचते ही पीडित की उम्‍मीदों के किसी सागर में डूबने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस तरह पूरी व्‍यवस्‍था एक माफिया के सामने हार जाती है।

क्‍या उस व्‍यक्ति की दशा के बारे में कल्‍पना की जा सकती है जो अपने परिवार को बेहतर भविष्‍य देने का सपना लेकर सपनों के शहर नोएडा और ग्रेटर नोएडा आता है ? क्‍या यह मान लिया जाए कि जिन महंगे शहरों में गरीब बसने का सपना भी नहीं देख सकता है, वहां नए माफियाओं से उसको काम करने का सुरक्षित माहौल भी नहीं मिलेगा ? क्‍या काम शुरू करने से पूर्व उसको नए माफियाओं से सुरक्षा के लिए एक विधि विशेषज्ञ हायर करना होगा ? यदि वह विधि विशेषज्ञ रखने की स्थिति में होता तो वह यहां सैकड़ों मील दूर घर परविार छोड़कर काम करने आता ?

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