युद्ध का हाईब्रिड मॉडल है लेबनान में संचार माध्यमों में हो रहे धमाके, दुनिया सहित भारत के लिए चिंता का है बड़ा कारण
The explosions in communication media in Lebanon are a hybrid model of war, a big cause of concern for India and the world

Panchayat 24 : युद्ध एक विभिषिका है। इसके बावजूद यह मानव सभ्यता के विकास का हिस्सा रहा है। कालांतर में युद्ध के तौर तरीके बदलते रहे हैं। कभी तीर, तलवार और परंपरागत हथियारों के बल पर लड़ा जाने वाला युद्ध आधुनिक काल में परमाणु बम जैसे महाविनाशक हथियारों तक आ चुका है। दूसरे विश्व युद्ध में पूरी दुनिया ने जापान के हीरोशिमा और नागाशाकी में इन हथियारों की महाविनाशक विभिषिका को देखा है। इसके बाद दुनिया ने परमाणु हथिारों के प्रयोग न किए जाने को लेकर सहमति जताई है। हालांकि समय समय पर दुनिया भर के देशों ने इन हथियारों का न केवल प्रदर्शन किया है, बल्कि उत्पादन भी किया जा रहा है। वर्तमान में रूस-यूक्रेन और इजरायल-फिलीस्तीन युद्ध दुनिया के सामने बड़ा संकट है। इन युद्धों में अभी तक परमाणु युद्ध का प्रयोग नहीं हुआ है, लेकिन परमाणु युद्ध शुरू नहीं होगा, यह भी नहीं कहा जा सकता। इजरायल-फिलीस्तीन युद्ध ने मीडिल ईस्ट में युद्ध के बादल उडा दिए हैं। दहशतगर्द तंजीमें भी इसमें खुलकर कूद गई हैं।
इजरायल-फिलीस्तीन युद्ध के दौरान लेबनान में 17 सितंबर को पेजर में हुए सीरियल धमाकों से लेबनान पर नई आफत टूट पड़ी है। सीरिया में भी धमाकों के चलते अफरातफरी का माहौल बना हुआ है। लेबनान में हुए इन धमाकों में पहले दिन कई लोगों की मौत हुई जबकि 27 सौ लोग इन धमाकों में गंभीर रूप से घायल हो गए। दूसरे दिन भी लेबनान में वाकी टॉकी और सोलर पैनल आदि उपकरणों में भी धमाकों की सूचना आ रही है। इस तकनीकी वारफेयर ने मिडिल ईस्ट में तानव पैदा कर दिया है। लेबनान का बैरूत इन पेजर एवं इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में हुए धमाकों से दहल गया। बैरूत के दाहिया, बेक्का, नाबातिया, बिंत जबैल, दक्षिणी बैरूत और दक्षिणी लेबनान के इलाकों में एक के बाद एक धमाके हुए हैं। धमाकों में हिजबुल्ला के सांसद अली अम्मार के बेटे की मौत हो गई है। वहीं, लेबनान में ईरानी राजदूत मोत्जबा अमानी भी घायल हुए हैं। उनकी आंखों पर चोट आई है। बताया जा रहा है कि उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो गई है। इसके बाद से लेबनान सरकार ने पेजरों के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी है।
दरअसल, हिजबुल्ला प्रमुख नसरल्ला ने वीडियो जारी कर अपने लड़ाकों को हिदायद दी थी कि वह मोबाइल फोन का प्रयोग न करें। इजरायल उनकी लोकेशन की जानकारी कर बड़ा नुकसान पहुंचा सकता था। हिजबुल्ला ने अपने लड़ाकों को पेजर का इस्तेजामल करने की सलाह दी थी। हिजबुल्ला ने बड़ी संख्या में पेजर मंगवाए थे। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इन विस्फोटों के पीछे कौन हैं ? मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश न्यूज एजेंसी ने दावा किया है कि इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ने हिजबुल्ला के 5 हजार पेजरों में विस्फोट किया है। वर्तमान परिदृय भी इन धमाकों के लिए इजरायल की ओर ही इशारा कर रहा है। हिजबुल्ला भी इन धमाकों के लिए इजरायल को ही जिम्मेवार मानता है। उसने इसका बदला लेने की भी धमकी दी है। हालांकि इजरायल इस पर चुप्पी साधे हुए हैं।
यहां सवाल केवल इतना भर नहीं है कि हिजबुल्ला के लड़ाकों के द्वारा प्रयोग किए जा रहे पेजरों में धमके किसने कराए ? बड़ा सवाल यह है कि मिडिल ईस्ट में शुरू हुआ यह इलैक्ट्रॉनिक्स वारफेयर भविष्य में किस हद तक जा सकता है ? यह तकनीक दुनिया भर के दहशतगर्दों के लिए दुनिया में तबाही मचाने का माध्यम बन जाएगी। इसके करण आतंकवाद के खिलाफ दुनिया की लड़ाई में आतंकवादियों के हाथ में पड़कर यह तकनीक बड़ा हथियार बन जाएगी। यदि दैनिक उपयोग के इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में धमका करने की यह तकनीक दूसरे देशों तक पहुंच गई तो इसके परिणाम बहुत ही विनाशकारी होंगे। इसको लेकर पूरी दुनिया चिंतित है। वर्तमान में हर देश एक दूसरे पर निर्भर है। अपनी जरूरत का सामान एक देश दूसरे देश से मंगवा सकता है। ऐसे में दुनिया भर के देशों की चिंता का साया अन्तर्राष्ट्रीय आयात एवं निर्यात पर भी पडेगा। इससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भी प्रभावित हो सकता है।
भारत के लिए लेबनान में हुए पेजर दोहरी चिंता का कारण हैं। दरअसल, भारत आतंकवाद से पीडित देश है। आतंकवादियों की मनशा देश में छोटे धमाके करके बड़ा नुकसान पहुंचाने की रही है। ऐसे में लेबनानी तकनीक यदि आतंकवादियों तक पहुंच गई तो इससे आतंकवादियों को ताकत मिलेगी। देश भर में आतंकवाद एक बार फिर सिर उठाने की पूरी कोशिश कर सकता है। वहीं, भारत का दुनिया भर के देशों के साथ व्यापार होता है। पड़ोसी देश चीन के साथ दशकों पुरानी दुश्मनी है। दोनों देशों के बीच युद्ध भी हो चुका है। सीमा पर दोनों देशों के बीच हिंसक झड़पे भी होती रहती हैं। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच बड़ी मात्रा में व्यापार होता है। भारत का बाजार चीन के इलैक्ट्रानिक उपकरणों से पटा हुआ है। भारत मे शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां चीन द्वारा निर्मित उपकरणों का प्रयोग नहीं किया जाता हो। भविष्य में भारत और चीन के बीच की यह दुश्मनी यदि अपने चरम पर पहुंची तो चीन भारत में इन उपकराणों की मदद से बड़ी तबाही मचा सकता है। हालांकि वर्तमान दौर में ऐसा संभव नहीं है कि इस नए इलैक्ट्रानिक वारफेयर के डर से दुनिया एक दूसरे से वस्तुओं का आदान प्रदान छोड़ दे। भारत में स्वदेशी उत्पाद को प्रमुखता देकर और उपभोक्ताओं द्वारा स्वदेशी अपनाकर इस खतरे से बहुत हद तक बचा जा सकता है। इसके लिए सरकार को चीन के उत्पादों का विकल्प उपभोक्ताओं के लिए सरल और सुलभ तरीके से मुहैया कराने होंगे। भारत सरकार ने मेड इन इंडिया का अभियान शुरू अवश्य किया है, लेकिन चीन के उत्पादों की आपूर्ति चैन का विकल्प बन सका है, यह कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी।