ग्रेटर नोएडा वेस्ट की दास्तां : भ्रष्टाचार के धरातल पर टिकी है शहर की नींव, आम आदमी पर बढ़ रहा समस्याओं का बोझ, उपचार करो सरकार
The story of Greater Noida West: The foundation of the city rests on the foundation of corruption, the burden of problems is increasing on the common man, government should remedy it.

Panchayat 24 : देश की राजधानी दिल्ली से सटे हुए नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बीचों बीच बसा हुआ है लोगों के सपनों का सहर ग्रेटर नोएडा वेस्ट। देश के अलग अलग हिस्सों से आकर लोगों ने यहां अपने सपनों का घर बसाने का सपना देखा। इस घर से लोगों बातें जुड़ी हुई थी। किराए के मकान के लिए दिए जाने वाले हर महीने के किराए से छुटकारा मिल जाएगा। इस लिए बैंकों भारी भरकम लोन भी लोगों ने लिया। दिल्ली एनसीआर में रहकर बच्चों की पढ़ाई के बेहतर विकल्प होंगे। बच्चों के भविष्य के लिए माता पिता ने अपने वर्तमान को दांव पर लगा दिया। इनमें अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवार ही शामिल हैं। लेकिन ग्रेटर नोएडा वेस्ट में अपना घर बसाने की ख्वाहिश रखने वाले परिवारों को नहीं पता था कि जिस शहर के स्वर्ग से सुन्दर होने के सपने उन्हें दिखाए जा रहे हैं, उसकी नींव भ्रष्टाचार के धरातल पर रखी गई है। सत्ता, शासन, प्राधिकरण और बिल्डरों की मिलीभगत ने लाखों परिवारों को कर्ज की उस भट्टी में झौंक दिया जिसकी लपटें उनके बच्चों को भी झुलसा रही हैं।

कैसे शुरू हुआ ग्रेटर नोएडा की लूट का किस्सा
दरअसल, साल 2008 में तत्कालीन मायावती सरकार ने नोएडा से सटे हुए शाहबेरी, बिसरख, पतवाड़ी, खैरपुर गूर्जर, इटेड़ा मिलक लच्छी, एमनाबाद, सैनी, सुनपुरा, तुस्याना और रोजा जलालपुर आदि गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया गाय। जमीन अधिग्रहण में कानून की तय प्रक्रिया की भी अनदेखी की गई। इस जमीन का अधिग्रहण औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए किया गया था। जानकारों की माने तो दिल्ली एनसीआर में उस समय रियल स्टेट तेजी से पांव पसार रहा था। देश भर के बिल्डरों ने नोएडा का रूख किया था जिससे वहां की जमीन की कीमतें तेजी से बढ़ने लगी थी। ऐसे में बिल्डरों की नजर नोएडा से सटे हुए ग्रेटर नोएडा के इस पश्चिमी हिस्से पर पड़ी। बिल्डरों ने तत्कालीन सरकार में बैठे बड़े चेहरों, नौकरशाहों और प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ मिलकर भ्रष्टाचार ऐसा गठजोड़ बनाया जिसने इस क्षेत्र की सूरत ही बदल दी। औद्योगिक विकास के लिए चिन्हित इस क्षेत्र की लगभग 89 लाख वर्ग मीटर जमीन का रातों रात लैंडयूज चैंज कर आवासीय बना दिया गया दिया गया। कानूनों को ठेंगा दिखाकर जमीन को कौडियों के भाव ग्रुप हाऊसिंग स्कीमों के लिए बिल्डरों के हाथों में सौंप दिया। जानकारों की माने तो इसकी एवज में सत्ता के बड़े चेहरों, नौकरशाहों और प्राधिकरण के अधिकारियों की जेब खूब गर्म हुई। यह वही दौर था जब ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में खूली लूट मचनी शुरू हो गई थी।
बिल्डरों ने फ्लैट बायर्स को धोखे से अपने जाल में फंसाया
यह पूरा क्षेत्र ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अंतर्गत आता है। लेकिन बिल्डरों ने उस समय अपने प्रोजेक्ट को बेचने के लिए इस क्षेत्र का नाम नोएडा एक्सटेंशन दिया। चूंकि उस समय रियल स्टेट बाजार में नोएडा का नाम तेजी से उभर रहा था। लोग नोएडा में घर लेना चाहते थे। बिल्डरों ने नोएडा एक्सटेंशन के नाम का प्रचार करके लोगों को यह संदेश पहुंचा दिया कि यह क्षेत्र नोएडा का ही एक हिस्सा है। हालांकि लोकेशन के आधार पर दोनों के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं है। लेकिन प्रशासनिक आधार पर बड़ा अंतर है। बिल्डरों ने तत्कालीन सरकार और ग्रेटर नोएडा के अधिकारियों के साथ मिलकर कई बड़े बड़े प्रोजेक्टस की घोषणाएं कराई। इन घोषणाओं के नाम पर बिल्डरों ने फ्लैट बायर्स को अपने मकड़जाल में फंसाया। इसका परिणाम भी सामने आया। लाखों लोगों ने कागजों पर ही अपने घर इस क्षेत्र में बनने वाले ग्रुप हाऊसिंग प्रोजेक्ट्स में जीवन की गाढ़ी कमाई लगाकर बुक कर दिए। लोगों के भ्रम को दूर करने के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने साल 2012 में नोएडा एक्सटेंशन का नाम बदलकर ग्रेटर नोएडा वेस्ट कर दिया।
किसानों ने हुआ ठगी का आभास, न्यायालय की शरण ली, लोगों के सपनों के घर की उम्मीद को लगा झटका
सरकार, सत्ता, नौकरशाह, बिल्डर और प्राधिकरण का लूट खसौट का यह खुला खेल चल रहा था, किसान इसको ठगा हुआ चुपचाप देख रहा था। किसानों को जल्द ही आभाष हो गया कि इस भ्रष्टाचार के पूरे खेल में उसको ठगा गया है। किसानों को महज 800 रूपये प्रति वर्गमीटर की दर से मुआवजा देकर बिल्डरों को लगभग दस हजार रूपये प्रति वर्गमीटर की दर से जमीन बेची गई। किसानों को महसूस होने लगा कि मुआवजे की बड़ी धनराशि खर्च करके भी वह अपनी ही जमीन पर बसाए जा रहे शहर में अपने लिए एक घर भी नहीं खरीद सकते। दूसरी और उनकी पुश्तैनी सम्पत्ति भी छिन गई जिसके सहारे उनकी पीढियां गुजर बसर कर सकती थी। किसानों ने न्यायालय की शरण ली। लगभग साल 2011 के बाद हाईकोर्ट ने किसानों के पक्ष में फैसला देते हुए एक के बाद एक करके शाहबेरी, पतवाड़ी, गुलिस्तानपुर सहित कई गांवों के जमीन अधिग्रहण को रद्द कर दिया। बिल्डरों के प्रोजेक्ट अधर में लटक गए। इसके बाद लंबी कानूनी प्रक्रिया चली। सरकार, नौकरशाह, प्राधिकरण और बिल्डर एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण करते रहे, लेकिन फ्लैट बायर्स पूरी प्रक्रिया में पिसने लगा। इनके ऊपर दोहरी मार पड़ने लगी। एक तरफ किराए के मकान का अभी भी किराया देना पड़ रहा था, दूसरी ओर बैंक की ईएमआई भी लगातार चुकानी पड़ रही थी। कोर्ट के आदेश के बाद किसानों को बढ़ा हुआ मुआवजा दिया गया। प्राधिकरण ने बिल्डरों पर इसका भार डाला दिया। बिल्डरों ने बड़ी चालाकी से इस भार को फ्लैट बायर्स पर डालकर उनकी कमर तोड़ दी। इस पूरी उठा पटक में कई लोग अपने घर का सपना लिए ही दुनिया से विदा हो गए। सरकार, बिल्डर, प्राधिकरण के गठजोड़ से पैदा हुआ समस्या रूपी दानव आज भी फ्लैट बायर्स की रजिस्ट्री को लेकर बिल्डर-बायर्स, बिल्डर-प्राधिकरण, बायर्स-प्राधिकरण और किसान-प्राधिकरण के विवाद सुलझ नहीं पा रहे हैं।
लूट के चक्कर में हुई बड़ी चूक, बन गई ग्रेटर नोएडा वेस्ट के लिए जंजाल
मायावती सरकार में ग्रेटर नोएडा वेस्ट में कानूनी प्रक्रिया को ताक पर रखकर रातों रात बड़े पैमाने पर जमीन का लैंड यूज औद्योगिक से बदलकर आवासीय करके बिल्डरों को ग्रुप हाऊसिंग स्कीमों के लिए कौडि़यों के भाव बेच दिया गया। यहीं से ग्रेटर नोएडा वेस्ट के भविष्य की बर्बादी की कहानी लिखनी शुरू हो गई। दरअसल, शुरूआत में इस क्षेत्र का लैंडयूज औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए था। इसके आधार पर यहां की सड़के, सर्विस रोड़, पार्किंग, पार्क एवं अन्य गतिविधियों को प्लान किया गया। लेकिन इसका लैंडयूज चैंज करके आवासीय करते समय भ्रष्टाचार में डूबे प्राधिकरण के अधिकारियों को इस बात का ख्यान नहीं रहा कि भविष्य में यहां पर तेजी से आबादी का विस्तार होगा। यहां बनने वाली ग्रुप हाऊसिंग सोसायटियों में बड़े पैमाने पर लोग आकर रहेंगे। वाणिज्यिक गतिविधियां भी शुरू होंगे। स्कूल बनेंगे। इन सब गतिविधियों से यहां पर ट्रेफिक तेजी से बढ़ेगा जिसके लिए चौड़ी सड़के, वैकल्पिक मार्ग तथा कई प्रकार की जरूरतें होंगी। वर्तमान में ग्रेटर नोएडा में सामने आ रही ट्रेफिक की समस्या भूतकाल में हुई इसी चूक एवं भ्रष्टाचार का परिणाम है।
मूलभूत सुविधाएं भी मुहैया नहीं, तरस रहे लोग
ग्रेटर नोएडा वेस्ट का वर्तमान अतीत की हुई गलतियों का खामिजा भुगत रहा है। शहर में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इसका भुगतान लोगों को करना पड़ रहा है। शहर की सड़कों पर लगने वाले जाम के कारण लोगों का कीमत समय जाम में बीत रहा है। शहर में अभी तक मेट्रो नहीं आ सकी है। सर्वाजनिक यातायात की सुविधा नदारद है। लोगों को छोटी सी दूरी के लिए ऑटो या कैब में कई गुना भाड़ा चुकाना पड़ता है। शहर के गलत नियोजन के कारण शहर की तेजी से बढ़ती आबादी भी एक प्रमुख समस्या है जिसका असर, स्कूल, चिकित्सा, यातायात और कई तरह की गतिविधियों में देखा जा सकता है। ग्रेटर नोएडा में सरकारी स्कूल, सारी सुविधाओं से लैस सरकारी अस्पताल, स्टेडियम एवं खेल का मैदान, पार्क, केन्द्रीय विद्यालय की मांग लोग लंबे समय से कर रहे हैं। शहरवासियों को गंगाजल की सप्लाई का वायदा किया जा रहा है लेकिन अभी तक सप्लाई शुरू नहीं हो सकी है। आए दिन सोसायटियों में लिफ्ट में लोगों के फंसने की समस्याएं सुनने में आती है। चौड़ी सड़के और अण्डरपास के अभाव में ट्रेफिक बढ़ रहा है। शाहबेरी में दो इमारतों के गिरने की घटनाओं के बाद शहर के हाऊसिंग प्रोजेक्टस के सिक्योरिटी ऑडिट की मांग लगातार उठ रही है। इस प्रकार की कई मूलभूत मांगे भी है जिनसे ग्रेटर नोएडा वेस्ट के लोग मेहरूम हैं। इनकी मांग को लेकर ग्रेटर नोएडा के लोग धरना प्रदर्शन करते रहते हैं।
सरकारों का रहा उदासीन रूख, वर्तमान सरकार से लोगों को उम्मीद
ग्रेटर नोएडा वेस्ट की समस्या का जन्म भले ही मायावती की सरकार में हुआ हो। लेकिन आगे आने वाली सरकारों ने भी ग्रेटर नोएडा वेस्ट के लोगों की समस्याओं के प्रति उदासीन रूख ही अपनाया है। समस्या समाधान के नाम पर औपचारिकताएं ही पूरी की गई हैं। वर्तमान सरकार ने चुनावों से पूर्व ग्रेटर नोएडा वेस्ट की फ्लैट बायर्स एवं बिल्डर समस्या समाधान का वायदा किया था। सरकार बनने के बाद इसके लिए कई बार बैठकों का दौर चला। कुछ प्रयास भी शुरू किए गए। इस दिशा में आंशिक सफलता भी मिली। इस सरकार की ओर ग्रेेटर नोएडा वेस्ट के लोग उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। यदि यह सरकार भी इन लोगों की समस्याओं के समाधान में चूक गई तो सपनों का शहर कहलाने वाला ग्रेटर नोएडा वेस्ट केवल समस्याओं का शहर बनकर रह जाएगा। इसके बाद ग्रेटर नोएडा वेस्ट के लोगों के मुद्दे समाधान के लिए नहीं, राजनीतिक वोटबैंक को साधने के लिए उठाए जाएंगे। इन मुद्दों का शोर केवल चुनाव में ही सुनाई देगा। ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकार को इस शहर की समस्या समाधान के लिए सार्थक प्रयास करने होंगे।