मुआवजे की भूख : अधिक मुआवजे के लालच में जीवन से और कितना समझौता ? अवैध निर्माण के लिए कौन है जिम्मेवार ?
The hunger for compensation: How much more will lives be compromised for the sake of greater compensation? Who is responsible for illegal construction?

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : बचपन में एक कहानी पढ़ी थी जमीन की भूख। यह कहानी एक किसान दीना पर केन्द्रित थी। उसके मन में जमीन के प्रति अथाह लालच था। कहानी के अंत में जमीन का यह लालच उसकी मौत का कारण बना। हाल ही में रबूपुरा क्षेत्र के नंगला हुकमसिंह में महावीर सिंह के घर पर घटी एक घटना के बाद यह कहानी फिर से मेरे मन में जीवंत हो उठी। दरअसल, नंगला हुकमसिंह गांव में लेंटर की सटरिंग खोलते समय लेंटर गिरने से तीन मंजिला इमारत ढह गई। हादसे में चार लोगों की दर्दनाक मौत हुई। घटना का दुखद पहलू अधिक मुआवजे का लालच था। यहां न जाने महावीर सिंह जैसे कितने लोग अधिक मुआवजा पाने के लालच में अपने और अपनों की जिंदगी को दांव पर लगाए बैठे हैं।
दरअसल, यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण अधिसूचित जमीन पर रबूपुरा और जेवर क्षेत्र के गांवों की जमीन पर नोएडा अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट का निर्माण हो रहा है। एयपोर्ट विस्तर के लिए दूसरे चरण में नंगला हुकमसिंह गांव का विस्तापन होना है। विस्थापन में जमीन के अतिरिक्त निर्मित मकान का अधिक मुआवजा दिया जाता है। बस, यही लालच लोगों के मन में घर कर चुका है। घटिया गुणवत्ता की निर्माण सामग्री से अंधाधुंध निर्माण कार्य किया जा रहा है। कुछ लोग प्राधिकरण की अधिसूचित एवं अधिग्रहित जमीन पर भी निर्माण कार्य कर रहे हैं। इन निर्माणों की भूकंपरोधकता की तो बात ही क्या करें, तेज हवा के झोंके के दबाव को भी सहन नहीं कर पाएंगे।
जिन गांवों का विस्थापन होना है, वहां बड़ी संख्या में खाली खेतों में और आबादी में अपने निर्मित मकानों पर अतिरिक्त निर्माण करके कमजोर इमारतें खड़ी की जा रही हैं। लोगों का कहना है कि गांव की आबादी में ऐसे निर्माण करके मकान मालिकों ने न केवल अपने परिवार के सदस्यों सिर पर मौत खड़ी कर दी है। बल्कि पड़ोस में रहने वाले लोगों के लिए भी खतरा बढ़ गया है। वहीं, खाली खेतों में बड़ी संख्या में ऐसे कमजोर ढांचे खड़े करके किराएदार बसाए जा रहे हैं। ऐसे में कभी भी नंगला हुकमसिंह जैसा मौत का तांड़व किसी भी गांव में कभी भी हो सकता है।
पड़ताल में पता चला कि विस्तापन के पहले चरण में कुछ प्रभावशाली लोग अतिरिक्त निर्माण करके प्राधिकरण में अपनी सांठगांठ एवं राजनीतिक एवं प्रशासनिक रसूख के कारण अधिक मुआवजा प्राप्त करने में सफल रहे हैं । ऐसे लोग क्षेत्र के किसानों से अनौपचारिक अनुबंध करके 50-50 के अनुपात में और कहीं पर 60-40 के अनुपात की शर्त पर ऐसी इमारतों का निर्माण कर रहे हैं अर्थात किसान की जमीन पर निर्माण करके इस निर्माण का प्राधिकरण की दरों पर जो मुआवजा मिलेगा उसको आपस में तय अनुबंध के आधार पर बांट लिया जाएगा। ऐसे लोगों से प्रभावित होकर ही बड़ी संख्या में ऐसा निर्माण किया जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि केवल रबूपुरा अथवा जेवर में ही अधिक मुआवजे के लालच में अतिरिक्त निर्माण किया जा रहा है। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट हब, मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक हब और डीएमआईसी से प्रभावित बोड़ाकी और पल्ला आदि गांवों में भी इस तरह का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। निर्माण की स्थिति यह है कि दोनों गांवों के बीच की दूरी लगभग समाप्त हो गई है। इतना ही नहीं लोगों ने अपने घरों के ऊपर दो तीन अतिरिक्त मंजिल बना डाली है।
सत्ता पक्ष के एक वरिष्ठ जनप्रतिनिधि का इस बारे में कहना है कि ईंंट, सीमेंट और लोहा आदि कारोबारियों का खूब सामान बिक रहा है। लोगों को रोजगार मिल रहा है। यह लोग भी खुश है कि इन्हें इस निर्माण की एवज में अतिरिक्त मुआवजा मिल जाएगा। इस बात की संभावना पूरी तरह क्षीण हैं कि तय समय सीमा के बाद हुए निर्माण का मुआवजा लोगों को मिलेगा।
वहीं, अपर जिलाधिकारी (एल ए) बच्चु सिंह का कहना है कि धारा-11 के बाद हुए किसी भी निर्माण को विस्थापन नीति के अन्तर्गत कोई लाभ नहीं मिलेगा। पल्ला एवं बोड़ाकी गांवों में मैंने स्वयं सर्वें किया है। वहां पर भी तेजी से अंधाधुंध निर्माण कार्य चल रहा हैं। इन क्षेत्रों की समय समय पर ली गई सभी सेटेलाइट इमेज सुरक्षित हैं। प्रशासन तीन से चार बार सर्वे करा चुका है। इससे पता चलता है कि कब-कब कौनसी इमारत का निर्माण किया गया है। जेवर एवं रबूपुरा में ऐसे निर्माणों का चिन्हिकरण करके मुकदमें दर्ज कराए गए हैं। ऐसे निर्माणों के खिलाफ ध्वस्तिकरण की कार्रवाई की जाएगी।



