स्पेशल स्टोरी

युवाओं के लिए नया करियर-किसान नेताजी, न भारी भरकम फीस की चिंता, न सालों की पढ़ाई की टेंशन, भविष्‍य में काफी स्‍कोप है

New career for youth- Kisan Netaji, no huge fees, no years of study, there is a lot of scope in the future

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 : गिरधारी चाचा के घर का माहौल आज सुबह से ही भारी तनाव में डूबा हुआ था। कारण था उनके  बेटे डब्ल्यू का हाई स्कूल का परीक्षा परिणाम, जो कुछ ही देर में घोषित होने वाला था। परिवार के सभी सदस्य ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि इस बार डब्ल्यू किसी तरह पास हो जाए। हालांकि दिल के किसी कोने में सबको परिणाम का आभास था, फिर भी अंतिम क्षण तक उम्मीद का दामन थामे हुए थे। डब्ल्यू की लापरवाही और बेफिक्री सबको हैरान कर रही थी। यह आत्मविश्वास था या हठधर्मिता, कोई नहीं समझ पा रहा था। तभी गिरधारी चाचा ने संयमित स्वर में उससे पूछा, “अरे डब्ल्यू, आज तेरा रिजल्ट है, इस बार पास हो जाएगा न?”

डब्ल्यू ने बड़ी सहजता से जवाब दिया, “हो भी गया तो क्या?” इस जवाब ने जैसे पूरे घर को 440 वोल्ट का झटका दे दिया। गिरधारी चाचा का पारा चढ़ गया, पर बोलने से पहले ही शारदा चाची ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “बेटा, दो साल से फेल हो रहा है। तेरे साथ के सब बच्चे अब बड़ी कक्षाओं में पढ़ रहे हैं।” डब्ल्यू ने नपे-तुले शब्दों में जवाब दिया, “वो सब बड़ी कक्षाओं में पढ़कर क्या कर लेंगे?” गिरधारी चाचा ने झल्लाते हुए कहा, “हाँ-हाँ, सब बेकार ही होंगे और तू अफसरों के साथ उठे-बैठेगा। कुछ दिन बाद गाय-भैंस ही चराएगा। मेरा तो जीवन कट ही रहा है, लेकिन तेरे कारण चैन की सांस नहीं मिलती।”

इस वाद-विवाद के बीच शारदा चाची कुछ कहना चाहती थीं, पर चाचा के गुस्से से डरकर चुप रह गईं। तभी डब्ल्यू ने घोषणा कर दी, “मैं किसान नेता बनूंगा। बहुत स्कोप है इसमें। बल्लू चाचा का लड़का लब्बू देखा है? आठवीं पास है, लेकिन आज जिलाध्यक्ष है। बाबू लोग कुर्सी छोड़ देते हैं उसके लिए।” चाचा ने माथा पकड़ लिया, “अरे करम जले, वो लब्बू कितनी बार जेल गया है, उसके बाप ने कितने पापड़ बेले हैं जमानत कराने में।” डब्ल्यू ने तपाक से जवाब दिया, “बिना जेल गए कौन नेता बनता है बाबा?

अब किसान नेता ही बनूंगा, राजनीतिक दलों के नेता तो अपनी सरकार में ही काम के होते हैं, किसान नेता हर सरकार में चलते हैं।”  गिरधारी चाचा की आंखों के सामने डब्‍ल्‍यू को डॉक्‍टर, इंजीनियर या टीचर बनाने का उनका सपना टूटकर बिखर रह था। उन्होंने आखिरी कोशिश करते हुए पूछा, “पर तूने कभी किसानी की भी नहीं, किसान नेता कैसे बनेगा?” डब्ल्यू मुस्कराया, “किसान नेता बनने के लिए किसानी थोड़ी आनी चाहिए? बस सिर पर हरी या लाल टोपी चाहिए, वही पहचान है।” अब घर में परिणाम की चिंता खत्म हो चुकी थी, क्योंकि यह तय था कि डब्ल्यू अब डॉक्टर या इंजीनियर नहीं, किसान नेता बनेगा। हालांकि परिणाम अभी आया नहीं था, लेकिन अब किसी को फर्क नहीं पड़ रहा था।

गौतम बुद्ध नगर जैसे जिलों में आज डब्ल्यू जैसे अनेक युवक हैं, जो खेती-किसानी से दूर हैं, पर खुद को वरिष्ठ किसान नेता कहलाते हैं। इनके आदर्श वे लोग हैं जिन्होंने कभी किसानों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई, लेकिन समय के साथ इनकी पकड़ अफसरशाही में इतनी मजबूत हो गई कि प्राधिकरणों में इनकी पर्चियां चलने लगीं। किसानों के नाम पर खड़े किए गए संगठन अब सड़क पर लगने वाली ठेलियों से लेकर सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण तक के समर्थन में खड़े होने लगे हैं। जिले में 50 से अधिक किसान संगठन हैं, जिनमें कई ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’ भी यहीं से हैं। बहुत सार नेताओं का संघर्ष अब जमीन और रोजगार से हटकर खुद के प्रभाव, लाभ और प्राधिकरणों तथा सरकारी कार्यालयों की परिक्रमा तक सीमित हो गया है।

भट्टा पारसौल और घोड़ी बछेड़ा जैसे आंदोलनों की यादें ताजा हैं, जिनके नतीजे आज भी लोगों के जहन में हैं। ऐसे में अफसर और सरकारें इन नेताओं से टकराने से कतराती हैं। वैसे भी हजारों किसानों को साधने से चंद किसान नेताओं को साधना ही बेहतर है, वरना विपक्ष भी बिना सच-झूठ देखे उनके साथ खड़ा हो जाता है। जन प्रतिनिधि भी इन नेताओं से खुश रहते हैं, क्योंकि ज़रूरत पड़ने पर ‘किसान नेता’ प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष उनका समर्थन भी कर ही देते हैं। डब्ल्यू जैसे युवाओं को यह सब आकर्षित करता है। अब उन्हें न शिक्षा की जरूरत लगती है, न खेती की समझ की। बस टोपी होनी चाहिए – हरी या लाल – और पहचान बन गए किसान नेता जी। गौतम बुद्ध नगर में भी डब्ल्यू जैसे नवयुवकों की भीड़ है जो उस रास्ते पर निकल पड़ा, जहाँ किसान का मतलब मंच, माइक और मीडिया बन गया है – हल, खेत और फसल नहीं।

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