गौतम बुद्ध नगर में विकास की भारी कीमत चुका रहा है किसान : किसानों के दर्द को दबाने की नहीं, दवाई की जरूरत है
Farmers are paying a heavy price for development in Gautam Buddha Nagar: Farmers' pain does not need to be suppressed, but medicine is needed

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : गौतम बुद्ध नगर में किसान को लेकर नाटकीय घटनाक्रम घट रहा है। दिल्ली कूच पर अड़े किसानों से दलित प्रेरणास्थल पर वार्ता के बाद 123 किसानों को 3 दिसंबर को पुलिस ने हिरासत में लेकर जेल भेज दिया और धरना समाप्त करा दिया। इस घटना की किसानों की ओर से मुखर प्रतिकिया और जीरो प्वाइंट पर महापंचायत के बाद अगले दिन देर रात सभी 123 किसानों को रिहा कर दिया गया। कुछ ही देर में पुलिस ने एक बार फिर जीरो प्वाइंट पर धरने पर बैठे 34 किसानों को गिरफ्तार कर जेल भेजकर धरना समाप्त करा दिया गया। जिस जीरो पाइंट को लोगों ने केवल सुना था अचानक वहां पुलिस बल की भारी तैयाती कर दी गई। किसान आन्दोलन को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर रहे लोगों को हाऊस अरेस्ट किए जाने की भी खबरें मिली। 5 दिसंबर को दोपहर बाद किसान संगठनों की ओर से एक प्रेस रिलीज और वीडियो जारी कर सूचना दी कि किसानों ने दिल्ली कूच कर रहे 120 किसानों को पुलिस ने जीरो प्वाइंट से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
यह पूरा प्रकरण प्राधिकरण और किसानों के बीच का है। लेकिन मुख्य भूमिका में किसान, पुलिस और शासन दिखाई दे रहा है। सवाल यह उठता है कि किसानों के दर्द को सरकारों ने कितना समझा है ? यदि किसान दर्द की असहनीय पीड़ा से चिल्ला रहा है तो क्या उनका मुंह बंद करा देने से सबकुछ ठीक हो जाएगा ? सरकारें बल प्रयोग का भय दिखाकर किसानों को चुप कराती रहेंगी या फिर उनकी समस्याओं का कोई स्थाई समाधान सरकारों के पास है ? क्या विकास की कीमत किसान को बर्बाद होकर चुकानी पड़ेगी, जबकि विकास प्रक्रिया के दूसरे किरदार दिन दोगुनी और रात चार गुनी तरक्की करेंगे ? कभी गांव और किसानों की बर्बादी के बाद के परिदृश्य पर गंभीरता से विचार किया गया है ? अभी तक का अनुभव सुखद नहीं है। सरकारों का रवैया आज की समस्या को कल पर टालने का अधिक रहा है। परिणामस्वरूप किसानों के बीच निराशा का भाव पैदा हो रहा है। वैसे भी समस्या को टालना कोई समाधान नहीं है। समस्या को जितना टाला जाएगा, उतनी ही विकट होती जाएगी। बेहतर है उसका आज ही समाधान तलाशा जाए।
गौतम बुद्ध नगर में किसानों की समस्याएं जितनी जटिल हैं, उसके लिए प्राधिकरणों में हुआ भ्रष्टाचार की बातें उतनी ही अटल हैं। उत्तर प्राधिकरणों में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं। समय समय पर कुछ अधिकारियों ने किसानों की समस्याओं के प्रति गंभीरता जरूर दिखाई है। ऐसे अधिकारियों को वांछित सहयोग नहीं मिलता है। अधिकांशत: प्राधिकरण के अधिकारियों ने सत्ता में बैठे अपने आकाओं के साथ मिलकर किसानों को दुधारू पशु समझकर दुहा है और जमकर मलाई काटी है। प्राधिकरणों में एक विशेष कार्य संस्कृति ने जन्म ले लिया है। यहां किसानों के नहीं, दलालों के काम आसानी से हो जाते हैं। प्राधिकरणों के भ्रष्टाचार को अंदेखा करके किसानों के दर्द का उपचार नहीं हो सकता। बेहतर हो एक तरफ किसानों की जायज मांगों का ईमानदारी से समाधान हो। वहीं, दूसरी ओर वर्तमान में सेवारत और सेवानिवृत भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई हो। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वसूली मॉडल काफी चर्चा में है। यह मॉडल प्राधिकरणों पर भी लागू होना चाहिए। जांच करानी चाहिए कि किस अधिकारी ने अपने शासनकाल में पद का दुरूपयों करके कितनी लूट की ? निजी हित के लिए नीतियों में किस तरह का बदलाव करके राजस्व को हानि पहुंचाई है ? किस तरह से किसानों की जमीनों को हड़ा गया है ? किस तरह से सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करके भ्रष्टाचार किया गया है ? लूटी गई रकम की वसूली की जानी चाहिए। संलिप्त भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं की संपत्तियां जब्त की जाएं। इनके खिलाफ अपराधिक मुकदमें दर्ज कर जेल भेजना चाहिए।