हरियाणा चुनाव : सत्य खड़ा चौराहे पर दिख रहा लाचार, कांग्रेस आंखें मूंद रही भाजपा का भी मौन विचार
Haryana elections: Truth stands helpless at the crossroads, Congress is turning a blind eye and BJP is also silent

Panchayat 24 : देश में जम्मु-कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा होने जा रहे हैं। दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनाव अपने अपने संदर्भ में काफी अहम है। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा के सामने सत्ता बचाने का दबाव है। वहीं, कांग्रेस के सामने लगातार दो बार से सत्ता से बाहर रहने के बाद सत्ता हासिल करने की चुनौती है। दोनों ही दल चुनावी रणनीति में जुटे हुए हैं। हरियाणा के चुनावी दंगल में महिला पहलवान और किसान किसी दूसरे मुद्दे से कहीं अधिक धारदार दिखाई दे रहे हैं। परिस्थितियां ऐसी बन गई है कि दोनों ही मुद्दे भाजपा के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़े हो गए हैं। भाजपा इनकी काट तलाश रही है। वहीं, कांग्रेस इन्हें धार दे रही है। इसके लिए कांग्रेस किसी भी मौके को नहीं छोड़ रही है। भले ही कांग्रेस को इसके लिए झूठ बोलना पड रहा हो। वहीं, भाजपा इन दोनों मुद्दों, विशेषकर किसानों के मामलों को लेकर पूरी तरह से रक्षात्मक मुद्रा में हैं। इस मुद्दे पर पार्टी पूरी ने खामोशी की चादर ओढ ली है। यहां तक कि इस मुद्दे पर भाजपा को अपनी महिला सांसद कांगना रानौत द्वारा कही गई सत्य बातें भी पसंद नहीं आ रही है। जबकि कांग्रेस कंगना रानौत की बातों को भावनात्मक रंग देने में जुटी है। कंगना रानौत की बातों को किसान विरोधी बता रही है। कांग्रेस को भी सत्यता का पूरी तरह से आभाष है, लेकिन उसको झूछ को शोर मचाकर बोलने से चुनावी दौड़ में लाभ दिखाई दे रहा है। वहीं, भाजपा की लाचारी कुछ ऐसी है कि सबकुछ जानती भी है, मानती भी है लेकिन कुछ बोलती नहीं।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, तीन कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने एक साल से भी अधिक समय तक चलाए गए आन्दोलन के दौरान देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं को पूरी तरह से जाम रखा था। किसान दिल्ली के टीकरी बॉर्डर, संधु बार्डर और गाजीपुर बॉर्डर को पूरी तरह कब्जा करके दिल्ली को बंधक बना दिया था। इस किसान आन्दोलन के दौरान रह-रहकर देश विरोधी गतिविधियों और असामाजिक तत्वों के सक्रिय होने की खबरें सामने आई थी। टीकरी बॉर्डर पर निहंगों द्वारा एक व्यक्ति की हत्या कर कंटीले तारों पर टांगे जाने की खबर के बाद किसान आन्दोलन पर कई तरह के सवाल भी उठे थे। वहीं, किसान आन्दोलन में शामिल लोगों द्वारा एक महिला से बलात्कार की खबरें भी मीडिया में आई थी। इसके बाद जिस तरह से 26 जनवरी के दिन पूरे देश ने देखा कि किस तरह से आन्दोलन में शामिल किसानों ने ट्रेक्टर पर सवार होकर दिल्ली में आतंक मचाया था। दिल्ली पुलिस के जवानों पर हमला किया गया था। लाल किले पर भारतीय ध्वज का अपमान किया था। इसके बाद किसान आन्दोलन में देश विरोधी ताकतों के सक्रिय होने की पुष्टि हो गई थी। बता दें कि किसान आन्दोलन के दौरान लगातार इंटेजीजेंस इनपुट में अलगावदी खालिस्तानी संगठनों और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका की बातें भी सामने आई थी। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री ने किसान आन्दोलन के कारण तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया था जिसके बाद यह आन्दोलन समाप्त हुआ था। इसके बावजूद किसान संगठनों और भाजपा के बीच संबंध सामान्य नहीं हो सके हैं। इसका पता लोकसभा चुनाव परिणाम से भी चलता है।
कंगना रानौत ने ऐसा क्या कहा जिस पर मच गया बवाल ?
दरअसल, एक पत्रकार को दिए गए इंटरव्यू में भाजपा की महिला सांसद कंगना रनौत ने कहा कि जो बांग्लादेश में हुआ ऐसा भारत में भी होने में देर नहीं लगती। यदि भारत का नेतृत्व सशक्त नहीं होता। यहां पर जो किसान आन्दोलन हुआ, वहां पर लाशें लटकी हुई थी। वहां पर रेप हो रहे थे। जब किसानों के हितकारी तीन कृषि कानून वापस हुए थे तो पूरा देश चौंक गया था। वो किसान आज भी वहां बैठे हुए हैं। उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था कि तीन कृषि कानून वापस होंगे। वह बड़ी लंबी प्लांनिग में थे, जैसा आज बांग्लादेश में हुआ है। इस तरह के षडयंत्र हो रहे हैं। कंगना ने इस पूरे प्रकरण में चीन और अमेरिका और अन्य विदेशी ताकतों के सक्रिय होने की बात कही। उन्होने कहा कि और इन लोगों को लगता है कि इनकी दुकान चलती रहेगी। देश चाहे भाड़ में जाए। उन्होंने देश हित से खिलवाड़ करने वालों को चेतावनी देते हुए कहा यदि देश भाड़ में जाएगा तो ये भी भाड़ में जाएगा। खैर जितनी इनकी बुद्धि है, उतनी इनकी करतूतें भी हैं। कंगना के बयान को भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के बयान से भी बल मिलता है। राकेश टिकैत ने अपने बयान में पश्चिम बंगाल में महिकला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और निर्मम हत्या के विरोध हो हो रहे आन्दोलन और विरोध प्रदर्शन को राजनीति से प्रेरित बताया। भारत में बांग्लादेश जैसे हालात पैदा होने की बात कही। वहीं, तीन किसान आन्दोलन के दौरान जो कुछ दिल्ली के बॉर्डर और दिल्ली के अंदर हुआ, उसको न केवल सही ठहराया बल्कि इस बात पर अफसोस भी जाहिर करते हुए कहा कि जो कुछ लालकिले पर हुआ, वह संसद भवन में होना चाहिए था। उन्हें एक बार फिर ऐसा ही आन्दोलन शुरू होने की बात कही।
कंगना रानौत के बयान से कन्नी काटना भाजपा की रणनीति का हिस्सा
पूरा देश इस बात को जानता है कि किसान आन्दोलन के बारे में कंगना रानौत ने वहीं बात कही है जो दो तीन साल पूर्व हुआ था। कांग्रेस ने इसको मुद्दा बना लिया है। हरियाणा चुनाव से पहले कांग्रेस भाजपा और किसानों के बीच की खाई को अधिक गहरा करने में जुटी है। कांग्रेस पूरे हरियाणा में महिला पहलवानों के सहारे भाजपा के खिलाफ महिला विरोधी और इससे भी आगे बढ़कर जाट विरोधी और कंगना के बयान के सहारे किसान विरोधी माहौल बनाने में जुटी हुई है। वह कंगना के बयान को किसान विरोधी बताकर भाजपा पर निशाना साध रही है। वहीं, भाजपा ने भी पीठ दिखाते हुए एक प्रेस नोट जारी करते हुए कंगना के बयान से पल्ला झाड़ते हुए मौन साध लिया है। वहीं पार्टी नेतृत्व की ओर से कंगना को चुप रहने की हिदायत भी दी गई है। राजनीति के जानकार इस बात को मान रहे हैं कि भाजपा जानती है कि उसकी महिला सांसद कंगना रनौत सही बोल रही है, लेकिन हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के विरोधी दलों ने किसान विरोधी छवि जनता के सामने पेश की है। भाजपा ने काफी प्रयास किया लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि भाजपा विपक्षी दलों द्वारा गढ़ी गई किसान विरोधी छवि से भाजपा पार नहीं पा सकी है। लोकसभा चुनाव के तुरन्त बाद हो रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक बार फिर वही यक्ष प्रश्न उनके सामने खड़ा है, जिसका सटीक जवाब अभी तक उनके पास नहीं है। ऐसे में इस मामले पर चुप रहना ही भाजपा ने सही समझा है। भाजपा जानती है कि कंगना की बात में सच्चाई है, लेकिन बयान की टाइमिंग गलत है। ऐसे लोग भाजपा के कदम को सही मान रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा में बैकफुट पर खड़ी भाजपा कंगना रानौत के बयान के बाद डर गई है
वहीं, राजनीति के कुछ जानकार भाजपा द्वारा कंगना रानौत के पक्ष में खड़े होने के बजाय उनके बयान से कन्नी काटे जाने को भाजपा का डर बता रहे हैं। दरअसल, लोकसभा चुनाव में हरियाणा में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में हरियाणा में भाजपा बैकफुट पर है। चुनाव से पूर्व मजबूत दिख रही भाजपा वर्तमान में हरियाणा में कोई रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है। वर्तमान में हरियाणा चुनाव में भाजपा के सामने चुनौतियां जरूर है। कंगना रानौत के बयान से पल्ला झाड़ने के बाद ऐसा कतई प्रतीत नहीं हो रहा है कि किसानों के मुद्दे पर भाजपा का विरोध कर रहे लोग भाजपा का अचानक से समर्थन करना शुरू कर देंगे। हां, इससे भाजपा के कार्यकर्ता का मनोबल जरूर चुनाव में कमजोर पड़ने का खतरा पैदा हो गया है। भाजपा के इस कदम से पार्टी का आम कार्यकर्ता इस बात पर जरूर विचार करेगा कि जब भी पार्टी कार्यकर्ता को पार्टी के समर्थन और सहयोग की जरूरत होती है, पार्टी साथ छोड़कर एक तरफ हो जाती है। नुपुर शर्मा के बाद कंगना रनौत दो बड़े ऐसे उदाहरण कार्यकर्ताओं के सामने हैं। पार्टी कार्यकर्ता के मन में यह विचार भी आएगा कि जब नुपुर शर्मा और सांसद कंगना रनौत का जरूरत पड़े पर पार्टी साथ छोड़ सकतीहै तो आम कार्यकर्ता पार्टी से क्या उम्मीद करेगा ? बता दें कि चुनावी जीत में पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी अहम होता है। वहीं, भाजपा द्वारा कंगना रनौत के बयान से पीछा छुडाने के बाद विरोधी दल, विशेषकर कांग्रेस कहीं अधिक तीव्रता से मुद्दे को चुनाव में उठाएगी।
कंगना रानौत के बयान को हथियार बनाने से चूक गई भाजपा
राजनीति अनिश्चितताओं से भरी हुई है। जरूरी नहीं जिस मुद्दों को निर्णायक माना जा रहा हो, अंत में वह निर्णायक ही साबित हो। ऐसे में भाजपा का कंगना रनौत के बयान से पल्ला झाड़ना इस मुद्दे को लेकर अतिवादी नजरिया भी हो सकता है जिसके चलते कंगना रानौत को इसकी कीमत चुकानी पड़ी है और भाजपा पर भी यह भारी पड़ सकता है ? बेहतर होता भाजपा कंगना रानौत के बयान के पक्ष में खड़ी होती और लोगों को यह समझाती कि यह बयान किसान आन्दोलन में सक्रिय देश विरोधी ताकतों और असामाजिक तत्वों के बारे में था। किसानों के विरोध में नहीं। इन लोगों के कारण ही किसान आन्दोलन पर सवाल उठे थे। बता दें कि इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है किसान आन्दोलन में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो देश, समाज और किसान आन्दोलन के पक्ष कतई नहीं था। तीन कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुए किसान आन्दोलन के दौरान घटी घटनाओं के बाद पूरा देश किसानों और उनकी समस्याओं को लेकर जरूर संवेदनशील है, लेकिन जिस तरह से किसान आन्दोलन को आगे बढ़ाया गया और जो घटनाएं घटी, उससे लोग को काफी पीड़ा हुई थी।