शर्मिष्ठा पनोली प्रकरण : ममता बनर्जी सरकार और बंगाल पुलिस की मनमानियों का कहीं तो अंत होगा ?
Sharmistha Panoli case: Will there be an end to the arbitrariness of Mamata Banerjee government and Bengal Police?

Panchayat 24 : शर्मिष्ठा पनोली को लेकर देश और दुनिया में बहस शुरू हो गई है। कुछ लोग उसके द्वारा कही गई बातों को आपत्तिजनक एवं भड़काऊ कहकर उसके खिलाफ हुई कार्रवाई को जायज ठहरा रहे हैं। वहीं, कुछ लोग शमिष्ठा के खिलाफ हुई कार्रवाई को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताते हुए एक तरफा कार्रवाई कह रहे हैं। बहरहाल कोर्ट ने शमिष्ठा को 13 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। प्रतीत होता है कि देश में स्वतंत्र का अर्थ परिस्थितिजन्य हो गया है। सरकारों के लिए व्यक्ति विशेष, समुदाय और विचारधारा महत्वपूर्ण हो गए हैं। संविधान और न्यायायलों पर इसका दबाव बढ़ रहा है।
स्वतंत्रता लोकतंत्र की प्राणवायु है। इसके बावजूद स्वतंत्रता की भी सीमाएं होती हैं। स्वतंत्रता का सर्वमान्य सिद्धांंत तो यही है कि कोई भी व्यक्ति वहीं तक अपने अधिकारों का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है जहां तक किसी दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं होता है। इसके बाद स्वतंत्रता के लिए भी सीमाएं हैं। इस मायने से शमिष्ठा ने अपनी अभिव्यकित की स्वतंत्रता का दुरूपयोग किया है। हालांकि उसने अपने कथन पर माफी मांग ली है।
जिस तरह से उसके खिलाफ बंगाल पुलिस ने कार्रवाई की है, उससे बंगाल सरकार की नीयत और बंगाल पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। बंगाल हाईकोर्ट की निगरानी में बनी जांच समिति की रिपोर्ट से बंगाल सरकार और पुलिस को बेनकाब कर दिया है। टीएमसी पार्टी के नेताओं के नेतृत्व में पुलिस की उपस्थिति में बंगाल में हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया। उनकी संपत्तियों को लूटा गया। आग लगा दी गई। महिलाओं पर जुल्म हुए। लोगों को जान बचाकर राहत शिवरों में रहना पड़ा।
वहीं, बंगाल राज्य की सरकार और पुलिस ने अति सक्रियता दिखाते हुए बंगाल से सैकड़ों किमी दूर पहुंचकर शर्मिष्ठा पनोली को हरियाणा के गुरूग्राम से गिरफ्तार कर लिया। हालांकि टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा सनातन आस्था के प्रतीकों पर कई बार आपत्तिजनक टिप्पणी की है। अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। यहां सारा मामला राजनीति से जुड़ा है। ममता बनर्जी को सत्ता चाहिए और समर्थकों को व्यवस्था। सरकार मुस्लिम वोटबैंक के सहारे चल रही है। समर्थक व्यवस्था की मदद से मनमानी कर रहे हैं।
वहीं इसी बंगाल में हिन्दुओं को रामनवमी और दुर्गा पूजा के लिए न्यायालय की मदद लेनी पड़ती है। वोटबैंक को बनाए रखने के लिए तुष्टिकरण को बंगाल सरकार ने सरकारी नीति के रूप में स्वीकार लिया गया है। बस सवाल यही है कि ममता बनर्जी की टीएमसी सरकार और बंगाल पुलिस की मनमानियों का कहीं कोई अंत होगा?