ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के पुराने कार्यालय की पुरानी इमारत के दुर्भाग्य के अन्तहीन दौर की शुरूआत ?
Is this the beginning of an endless cycle of misfortune for the old office building of Greater Noida Industrial Development Authority?

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 (ग्रेटर नोएडा) : सरकारी इमारतें भले ही कितनी ही वैभवशाली हो, अन्त में दुगर्ति ही उनके हिस्से में आती है ? हाल ही सेक्टर गामा-दो स्थित ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के चितवन एस्टेट स्थित पूर्व के कार्यालय में जाना हुआ। वर्तमान में इस इमारत में उत्तर प्रदेश भू संपदा विनियामक प्राधिकरण, एडीएम एलए (जेवर एयरपोर्ट से जुड़े मामलों से संबंधित) एवं निबंधन कार्यालय स्थित है। यहां बाकायदा रेरा कोर्ट चलती हैं और कार्यालय में आवश्यक कर्मचारी अधिकारी काम करते हैं। इमारत के परिसर में प्रवेश करते ही इससे जुड़ी स्मृतियां ताजा हो उठी।
एक समय था जब यह इमारत ग्रेटर नोएडा की गतिविधियों का केन्द्र होती थी। उत्तर प्रदेश के नामचीन आईएएस अधिकारियों से लेकर रसूखदार नेताओं और प्रभावशाली लोगों का यहां आना जाना लगा रहता था। बिल्डरों से लेकर किसानोंकी, फ्लैट बायर्स और अलॉटियों की गतिविधियों के केन्द्र में भी यह इमारत रहती थी। वर्तमान में डिफाल्टर बिल्डर एवं होम बायर्स ही यहां अधिक दिखाई देते हैं। इस इमारत की विशेष बनावट, साजसज्जा और साफ सफाई लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी। आज यह इमारत अपना पुराने वाला वैभव खो चुकी है। जिस प्रकार मनुष्य के यौवन के उतार पर बुढ़ापे की परछाई दिखाई देने लगती है, इस इमारत पर चढ़ी मौसम की मार की चढ़ी परत भी कुछ इसी ओर इशारा कर रही है।
अंदर प्रवेश करते ही यहां तैनात अधिकारियों एवं कर्मचारियों में पूर्व जैसी पेशेवरता भी नदारद दिखी। रेरा के डिस्पेच एवं रिसीविंग काउंटर में पहुंचकर जो नजारा देखा, वह इस इमारत के दुर्भाग्य को ही बयां कर रहा था। एक कर्मचारी अपनी सीट पर बैठकर सरकारी होने का आभाषी आनन्द प्राप्त कर रहा था। आने वाले लोगों से पब्लिक सर्वेंट के बजाय किसी रियासत के रियासतदान जैसा आचारण कर रहा था। मुझे लगा हो सकता है कि इनका ह्युमन बिहेवियर ही ऐसा हो। वैसे भी सरकारी कार्यालय की कुर्सी पर बैठने के बाद ह्युमन बिहेवियर को कंट्रोल करना हर किसी के बस की बात कहां होती है ?
इस इमारत के भविष्य को लेकर बड़ा झटका उस समय लगा जब आभाषी रियासत के इस रियासतदान ने अपने ही कार्याय के एक कौने को थूकदान बना दिया। मेरे एक वरिष्ठ साथी से यह सब देखकर रहा नहीं गया और तुरन्त ही अपनी आपत्ति दर्ज कराई। यह देखकर कुर्सी पर बैठे कर्मचारी ने बहाना बनाकर अपने कृत्य को तर्कसंगत ठहराने का प्रयास करते हुए हमारी ओर ऐसे देखा मानो उसके अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप किया गया हो। यह सब देखकर मेरे मन में विचार आया कि व्यक्ति हो या कोई इमारत, सौभाग्य और दुर्भाग्य सभी से जुड़ा होता है। ऐसा लगा मानों कभी ग्रेटर नोएडा में शक्ति और वैभव का केन्द्र रही इस इमारत के दुर्भाग्य का अन्तहीन दौर शुरू हो चुका है।