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चुनावी लड़ाई में कितना है दम ? : भाजपा के अश्‍वमेघ रूपी हिन्‍दुत्‍व के सामने समाजवादी पार्टी का अमोघ हथियार पीडीए !

How strong is the electoral challenge? : The Samajwadi Party's invincible weapon, PDA, against the BJP's Ashwamedha-like Hindutva!

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24  (ग्रेटर नोएडा) : देश की राजनीति से विकास के मुद्दे प्राय गोण हो चुके हैं। राजनीतिक दल समाज में तोड़, फोड़ और जोड़ के नित नए प्रयोग कर सत्‍ता की लड़ाई जीतने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। देश की आजादी के बाद से ही मुस्लिम समाज बतौर वोटबैंक चुनावी राजनीति के केन्‍द्र में रहा है। कांग्रेस एवं विभिन्‍न राज्‍यों के क्षेत्रीय दल मुस्लिम तथा राज्‍यों की प्रभावशाली जातियों के साथ गठजोड़ करके केन्‍द्र और राज्‍य की सत्‍ता की कुर्सी पर काबिज होते रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने हिन्‍दुत्‍व की राजनीति को मजबूत करने के लिए लंबा सफर तय किया है। बिखरी हुई जातियां भाजपा के लिए बड़ी चुनौती रही हैं।

साल 2014 में भाजपा ने जातियों को एक सूत्र में बांधकर हिन्‍दुत्‍व को राजनीतिक रूप से खड़ा करने में सफलता प्राप्‍त की है। परिणामस्‍वरूप केन्‍द्र में नरेन्‍द्र मोदी सत्‍ता पर काबिज हुए। भाजपा ने राज्‍यों में भी जाति से बड़ा धर्म के सहारे हिन्‍दुत्‍व के कार्ड को खेला और एक के बाद एक कई राज्‍यों की सत्‍ता पर कब्‍जा कर लिया। वर्तमान में देश के 21 राज्‍यों में भाजपा एवं भाजपा समर्थक एनडीए की सरकार हैं। देश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों के उदय ने कांग्रेस के लिए चिंता बढ़ा दी थी।

लेकिन राजनीति में भाजपा के हिन्‍दुत्‍व कार्ड ने जिस तरह से जाति पर प्रहार किया है, क्षेत्रीय दल भी अपने वजूद की लड़ाई लड रहे हैं। कांग्रेस और गैर भाजपाई दलों पर भाजपा का हिन्‍दुत्‍व इस कदर हावी है कि कई बार धुर वैचारिक मतभेदों के बावजूद भाजपा को हराने के लिए बेमेल गठबंधन बनाने को भी मजबूर हुए हैं। लेकिन कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली है। बिहार और उत्‍तर प्रदेश में सत्‍ता की चाबी माने जाने वाला एमवाई (मुस्लिम यादव) फार्मूला भी फेल हो चुका है।

हालांकि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में हिन्‍दुत्‍व की पराजित करने के लिए उत्‍तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम के साथ जाति के स्‍थान पर वर्ग को जोड़कर नया प्रयोग किया गया। इस बार पिछड़ा, दलित एवं अल्‍पसंख्‍यक (पीडीए) का दांव चला गया। मुख्‍यरूप से उत्‍तार प्रदेश में भाजपा की ओर से मोर्चे पर योगी एवं मोदी डटे हुए थे, जबकि सपा की ओर से अखिलेश यादव और ओबीसी तथा दलित नेता मैदान में थे। योगी और मोदी ने पूरी तरह चुनाव को हिन्‍दुत्‍व के ईद गिर्द रखा।

वहीं, अखिलेश एवं उनकी पार्टी के नेताओं ने लड़ाई को 85-15 (सवर्ण बनाम सम्‍पूर्ण) बनाने की हर संभव कोशिश की। इस दौरान हिन्‍दुओं के पवित्र श्रीरामचरित मानस पर लगातार हमले किए गए। बसपा छोड़कर भाजपा में अपनी जमीन तलाशने में नाकाम रहे स्‍वामी प्रसाद मौर्य विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के ब्राण्‍ड एम्‍बेसडर बन गए। उन्‍होंने हिन्‍दुत्‍व, सवर्ण और रामचरित्र मानस पर विवादस्‍पद बयान दिए। उनके समर्थकों ने लखनऊ में रामचरित्र मानस की प्रतियां जलाई गई। चुनाव परिणामों में भाजपा के हिन्‍दुत्‍व पर समाजवादी पार्टी का पीडीए भारी पड़ा।

लोकसभा चुनाव 2024 में उत्‍तर प्रदेश में भाजपा की बड़ी हार ने विरोधियों के लिए उम्‍मीद की किरण जगी है। भाजपा के हिन्‍दुत्‍व की काट के लिए विरोधी समाजवादी पार्टी के पीडीए के फार्मूले का प्रयोग में जुटे हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव 2024 के तुरन्‍त बाद हुए हरियाणा और महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा विरोधियों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि दिल्‍ली में भी आम आदमी पार्टी को हराकर भाजपा 27 सालों बाद दिल्‍ली की सत्‍ता पर काबिज हुई है। इन चुनावों में स्‍थानीय मुद्दों, नरेन्‍द्र मोदी सरकार की उपलब्धियों के साथ हिन्‍दुत्‍व का ट्रेडमार्क भी जीत का आधार बना है।

यह बात भी उतनी ही सत्‍य है कि महाराष्‍ट्र, हरियाणा और दिल्‍ली विधानसभा चुनावों की प्रकृति उत्‍तर प्रदेश चुनावों से बहुत अलग है। मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने 2022 में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में सफलता पाई है, लेकिन मुख्‍य विपक्षी दल लोकसभा चुनाव के बाद पीडीए फार्मूले को लेकर उत्‍साहित है। स्‍पष्‍ट है कि विकास के मुद्दों से हटकर उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव एक बार फिर भाजपा का हिन्‍दुत्‍व बनाम समाजवादी पार्टी के पीडीए के बीच ही होगा। हालांकि योगी आदित्‍यनाथ कानून व्‍यवस्‍था, प्रदेश के विकास और महिला सशक्तिकरण को चुनाव में ब्राण्‍ड बनाएंगे, जबकि मुख्‍य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी इनके विरूद्ध लाइन खीचने की कोशिश करेगी।

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