स्पेशल स्टोरी

दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री पर हमला : हिंसा असहमति प्रदर्शित करने का आधार बन गई है तो गांधी की हत्‍या जायज कही जाएगी !

Delhi CM slap incident: If violence has become the basis for expressing dissent, then Gandhi's assassination will be justified!

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 : क्‍या भारतीय राजनीति उस दिशा में मुड़ चली है जहां असहमति प्रकट करने के लिए हिंसा का सहारा लिया जाएगा ? ऐसा कई बार हुआ है जब राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन से जुड़े हुए लोगों के ऊपर किसी व्‍यक्ति ने अपनी असहमति अथवा नाराजगी या विरोध स्‍वरूप स्‍याही और जूता उछाले गए हैं। हाल ही में राजनीतिक क्षेत्र में जुड़े लोगों के ऊपर असहमति और वैचारिक मतभेद रखने वाले लोगों ने हमला किया है और थप्‍पड़ तक जड़े हैं।

आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्‍ली के पूर्व मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नाम अहम है। एयरपोर्ट पर एक महिला सुरक्षाकर्मी ने कंगना के विचारों से असहमति और नाराजगी जाहिर करने के लिए थप्‍पड़ मारा था। कांग्रेसी नेता कन्‍हैया कुमार का नाम भी इस सूची में शामिल है। ताजा उदाहरण दिल्‍ली की ही मुख्‍यमंत्री रेखा गुप्‍ता को लेकर सुर्खियों में हैं। रेखा गुप्‍ता जिस समय अपने सिविल लाइन्‍स स्थित मुख्‍यमंत्री आवास में जनसुनवाई कर रही थी तो एक 40 वर्षीय युवक ने उन्‍हें थप्‍पड मारते हुए हमला कर दिया। आरोपी बाद में गिरफ्तार कर लिया गया है।

हालांकि पुलिस मामले की जांच में जुटी है, लेकिन कहा जा रहा है कि वह पशु प्रेमी है और दिल्‍ली सरकार की कुछ नीतियों को लेकर असहमति रखता है। हालांकि अधिकांश राजनीतिक दलों के लोगों ने किन्‍तु और परंतु के साथ घटना की आलोचना की है। सोशल मीडिया पर ऐसे लोग बड़ी संख्‍या में दिखे है जिन्‍होंने बेशर्म शिष्‍टाचार का परिचय देते हुए प्रसन्‍नता का भाव अनुभव करते हुए न्‍याय संगत और तर्कसंगत साबित करने से भी परहेज नहीं किया है। यह इस बात का संकेत है कि राजनीति में असहमति और वैचारिक मतभेदों को प्रकट करने के लिए स्‍थान मिल रहा है अथवा मिलने की संभावनाएं प्रबल हो गई है।

सवाल उठता है कि यदि असहमति के नाम पर जूता उछालने, स्‍याही फैंकने थप्‍पड़ मारने और किसी अन्‍य तरह के प्रतीकात्‍मक हमले समाज से परोक्ष रूप से ही सही, समाज से समर्थन मिलने लगा है तो इसका परिणाम क्‍या होगा ? क्‍या असहमति के नाम पर हिंसा करने की कोई सीमा तय की जा सकती है ? क्‍या यह प्रक्रिया केवल, स्‍याही, जूता ओर थप्‍पड़ तक सीमित होकर रह जाएगी ? क्‍या गांधी के देश में असहमति प्रकट करने वाले उनके तरीके अपनी प्रसांगिकता खो रहे हैं ? वैसे गांधी की हत्‍या भी असहमति और वैचारिक मतभेदों के काराण ही हुई थी। यदि हिंसा को असहमति प्रकट करने का आधार माना ही जाने लगा है तो क्‍या निकट भविष्‍य में महात्‍मा गांधी की हत्‍या को भी जायज ठहराया जाएगा ?

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