गौतम बुद्ध नगर : कहीं वन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रास्ते में सबसे मजबूत कड़ी ही कमजोर कड़ी न बन जाए ?
Gautam Buddha Nagar: Will the strongest link in the path of one trillion dollar economy become the weakest link?

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : उत्तर प्रदेश सरकार राज्य को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का सपना देख रही है, जिसके लिए औद्योगिक विकास को रीढ़ माना जा रहा है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) नीति इस दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। सवाल यह है कि क्या केवल नीतियों से यह सपना साकार हो सकता है, जब प्रदेश की औद्योगिक शो विंडो—गौतम बुद्ध नगर— के विकास का भार उठाने वाले औद्योगिक विकास प्राधिकरण स्वयं शासन स्तर पर उपेक्षा का शिकार हो ?
नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं, लेकिन जमीन की उपलब्धता, अवैध कॉलोनियां और कर्मचारियों की भारी कमी जैसी समस्याएं इन प्राधिकरणों की जमीनी हकीकत को उजागर करती हैं। किसानों से उचित दर पर भूमि न मिलने के कारण प्राधिकरणों और ग्रामीणों के बीच तनाव गहराता जा रहा है।
शासन की ओर से नई भूमि दरें तय न करना तनाव को और बढ़ा रहा है। इसका लाभ कॉलोनाइजर, भूमाफिया और निजी बिल्डर उठा रहे हैं, जो 70 लाख से 1.5 करोड़ रुपये प्रति बीघा की दर से जमीनें खरीदकर अवैध कॉलोनियों को बढ़ावा दे रहे हैं। पुलिस-प्राधिकरणों के बीच तालमेल का अभाव में अवैध निर्माण पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।
प्राधिकरणों में कर्मचारियों एवं अधिकारियों की भारी कमी के कारण अतिक्रमण और अवैध निर्माण की समस्या और अधिक गंभीर हो गई है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में ही लगभग 240 स्वीकृत पदों में से केवल 150 पर नियुक्ति है, जबकि 500 से अधिक कर्मचारियों एवं अधिकारियों की जरूरत है। बड़ी संख्या में संविदा और सेवानिवृत लोगों से काम लिया जा रहा है।
लेखपाल, जेई, एसडीएम और अन्य फील्ड स्टाफ की भारी कमी से विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं। लगातार मांग के बावजूद शासन से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। ऐसे हालातों में प्राधिकरणों के सीईओ स्वयं को महाभारत के अभिमन्यु की भूमिका में देख रहे हैं जिन्हें पर्याप्त सेना और सक्षम योद्धाओं के बिना चक्रव्यू भेदने के लिए भेजा गया है।
शासन के उदासीन रवैये के चलते प्राधिकरण काम और अक्षमता के बोझ से दब रहे हैं। यह कुछ के लिए अपदा, कुछ के लिए अवसर जैसी स्थिति है। नागरिकों को अपने छोटे-छोटे कामों के लिए महीनों चक्कर काटने पड़ते हैं। सवाल यह है कि क्या शासन गौतम बुद्ध नगर को केवल राजस्व का स्रोत मानता है ? क्या यह ‘दूध देने वाली गाय’ बनकर रह गया है, जिसकी देखभाल करना जरूरी नहीं समझा जा रहा है ?
यदि उत्तर प्रदेश को वास्तव में एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है, तो गौतम बुद्ध नगर की अनदेखी नहीं की जा सकती। यहां के प्राधिकरणों को सशक्त बनाना, जमीन खरीद की दरों में सुधार और प्राधिकरणों में मानव संसाधन की पूर्ति आवश्यक है। वरना उत्तर प्रदेश की वन ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी ताकत माने जाने वाला यह जिला ही सबसे बड़ी कमजोरी साबित होगा।
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