उत्तर प्रदेश

भारत की धरती से गजवा-ए-हिन्‍द का फतवा, होगी कार्रवाई, जानिए क्‍या है पूरा मामला ?

Fatwa of Ghazwa-e-Hind issued from Indian soil, action will be taken, know what is the whole matter?

Panchayat 24 : उत्‍तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद कस्‍बे में स्थित इस्‍लामिक शिक्षा के विश्‍व विख्‍यात केन्‍द्र दारूल उलूम का एक विवादित फतवा विवाद के केन्‍द्र में आ गया है। दारूल उलूम ने अपनी वेबसाइट पर दिए गए फतवे में गजवा-ए-हिन्‍द को इस्‍लामिक दृष्टिकोण से वैध एवंं मान्‍य करार दिया है। मामले का संज्ञान लेते हुए राष्‍ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एबीआरसी) ने उत्‍तर प्रदेश सरकार को मामले में मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। आयोग ने तीन दिन में इस मामले में रिपोर्ट मांगी है।

क्‍या है पूरा मामला ?

दरअसल, राष्‍ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एबीआरसी) के अध्‍यक्ष प्रियंक कानूगो ने सहारनपुर जिले के वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक को लिखे पत्र में कहा है कि दारूल उलूम की वेबसाइट पर आपत्तिजनक सामग्री मौजूद है। इसमें छपे एक फतवे में गजवा-ए‍-हिन्‍द का जिक्र है। गजवा-ए-हिन्‍द का सिद्धांत भारत पर हमले का समर्थन करता है। गजवा-ए-हिन्‍द में मारे गए लोगों का महिमामंडन करता है। बता दें कि दारूल उलूम में एक फतवा विभाग है। यहां से हर साल लगभग 8 हजार फतवे जारी किए जाते हैं। इन फतवों से दुनिया भर के मुसलमान खुद को इस्‍लाम की छत्र छाया में इस्‍लामिक मान्‍यताओं एवं परंपराओं के अनुसार आचरण करने वाला मानता है।

बच्‍चों के मन में कट्टरता की भावना पैदा करके हानि पहुंचा रहा है

एनबीआरसी की ओर से कहा गया है कि दारूल उलूम में बच्‍चे बड़ी संख्‍या में इस्‍लामिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। बच्‍चों का हृदय कोमल होता है। ऐसे में गजवाा-ए-हिन्‍द का फतवा बच्‍चों के मन में द्वेष पैदा करके कट्टरता को बढ़ाता है। नफरत की भावना बच्‍चों में भरकर उनके मानसिक एवं शारारिक विकास को हानि पहुंचाता है।

दारूल उलूम की स्‍थापना का उद्देश्‍य क्‍या है ?

दारूल उलूम एक अरबी शब्‍द है। इसका अर्थ होता है ज्ञान का घर। इससे साफ हो जाता है कि दारूल उलूम की स्‍थाना इस्‍लाम के ज्ञान के प्रसार एवं प्रसार के लिए की गई थी। इसकी स्‍थापना 30 मई 1866 को देवबंद में हुई थी। यहां दुनिया भर के मुस्लिम छात्र इस्‍लाम की शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं।

गजवा-ए-हिन्‍द क्‍या है ?

दरअसल, गजवा-ए-हिन्‍द इराक एवं सीरिया में सक्रिय आईएसआईएस के द्वारा इस्‍लाम के नाम पर किए जा रहे खून खराबे के बीच तेजी से सुर्खियों में आया है। कुछ कट्टरपंथी विचारधारा वाले आतंकवादी संगठन भारत तथा आसपास के देशों को मिलाकर एक इस्‍लामिक सत्‍ता कायम करने का सपना देखते हैं। गजवा-ए-हिन्‍द का अर्थ इस्‍लाम को फैलाने के लिए की जाने वाली हिंसा से हैं। इस कट्टरपंथी सिद्धांत के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में इस्‍लाम का परचम फहराना है। यहां रहने वाले सभी गैर मुस्‍लमान काफिर हैं। इन्‍हें युद्ध में हराकर मुसलमान बनाना है। इसको ऐसे भी कहा जा सकता है कि गजवा-ए-हिन्‍द हथियारों की नोंक पर भारत सहित पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का इस्‍लामिकरण करना है। दरअसल, कट्टरपंथी सोच वाले लोगों का कहना है कि भारतीय उपमहाद्वीप में दारूल हर्ब (गैर इस्‍लामिक शासन सत्‍ता) है। यहां दारूल इस्‍लाम ( इस्‍लाम का शासन) कायम करना है।

दारूल उलूम के फतवे पर विश्‍व हिन्‍दू परिषद ने जताई आपत्ति

विश्‍व हिन्‍दू परिषद के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता विनोद बंसलने दारूल उलूम के फतवे पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्‍होंने कहा है कि इस्लामी जिहादी आतंकवाद की जननी दारुल उलूम देवबंद द्वारा आतंकियों को मदद व उनकी पैरवी के किस्से तो बहुत सुने होंगे लेकिन, अब उसने अपने एक फतवे के द्वारा खुले में गजवा-ए-हिन्‍द को उचित ठहराया है। भारतीय संविधान और सरकार को कड़ी चुनौती दे दी है। इसके अनुसार जो मुसलमान गजवा-ए-हिन्‍द के लिए शहीद होगा वो सबसे बड़ा गाज़ी कहलाएगा। उनको जन्नत मिलेगी। इस तरह वह भारत के ही नहीं, भारत के बाहर बसे हुए मुसलमानों को भी भारत के विरुद्ध युद्ध के लिए उकसा रहा है। सरकार को इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। 

उन्‍होंने कहा कि यह एक मात्र एक बड़ा मदरसा नहीं है बल्कि इसकी प्रेरणा से लाखों मदरसे न सिर्फ भारत, अपितु, पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश जैसे अनेक देशों में चल रहे हैं। जिस सिद्धांत को दुनियाभर के दर्जनों इस्लामिक देश खारिज कर चुके हैं, आखिर उस सिद्धांत को भारत में स्थापित करने का प्रयास क्यों किया जा रहा है ? विनोद बंसल ने इस्लामिक जगत के विद्वानों, बुद्धिजीवियों और मुस्लिम उलेमाओं से पूछा है कि यदि वाकई इस्लाम में ऐसा लिखा गया है तो उन्हें बताना चाहिए कि भारत में संविधान का राज चलेगा या फिर इस तरह की फतवाई मानिसकता का राज चलेगा। उन्होंने सरकार से भी इस मानसिकता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है।

विश्‍व हिन्‍दू परिषद के एक अन्‍य प्रवक्‍ता विजय शंकर तिवारी का कहना है कि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की देवबंद ने मान्यता दे दी।’गजवा ए हिंद’ का फ़तवा घोषित कर दिया ह। अब यह राष्ट्रद्रोह ही तो है। संविधान विरोधी फ़तवा स्वयं प्रमाण है कि देश और संविधान को बचाने के लिए देवबंद को प्रतिबंधित करना ज़रूरी है।

दारूल उलूम ने कानूनी कार्रवाई की निंदा की

आजतक के अनुसार दारूल उलूम का इस पूरे प्रकरण पर अपना पक्ष रखा है। दारूल उलू ने कानूनी कार्रवाई की निंदा की है। उनका कहना है कि यह साल 2008 की जानकारी है। सवाल उठाते हुए कहा है कि कार्रवाई की मांग करने वाले आज अचानक क्‍यों जाग गए हैं ? अब चुनाव से ठीक पहले उन्‍होंने इसके बारे में क्‍यों सोचा ?

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