स्पेशल स्टोरी

धुरंधर : सिनेमा के बदलते नजरिए के साथ भारत की सॉफ्ट पावर का प्रदर्शन, बेवजह विरोध उचित नहीं

Dhurandhar: India's soft power is on display with a changing perspective; unnecessary opposition is not appropriate.

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 (स्‍पेशल स्‍टोरी) : सोशल मीडिया पर आदित्‍य धर की हिन्‍दी फिल्‍म धुरंधर की काफी चर्चा थी। मन में फिल्‍म देखने की जिज्ञासा हुई। वरिष्‍ठ पत्रकार साथी के साथ फिल्‍म को आखिरकार देख ही डाला। हर फिल्‍म की तरह धुरंधर के भी अपने सकारात्‍मक और नकारात्‍मक पहलू हैं। फिल्‍म तीन घंटों से अधिक लंबी है फिर भी बोफिल नहीं है और पैसा वसूलन मनोरंजन है। फिल्‍म के संवादों में गाली गलौच एवं हिंंसा प्रचूर मात्रा में है। शायद यह फिल्‍म की पृष्‍ठभूमि और स्‍टोरी की मांग है। वैसे भी धुरंधर ऐसी पहली फिल्‍म नहीं है जिसके संवाद गाली गलौच और दृष्‍य हिंसा से भरे हुए हैं।

फिल्‍म का आधार पाकिस्‍तानी आतंकवादी हमलों को बनाया गया। इसमे पाकिस्तानी माफिया गैंगवार और आईएसआई द्वारा माफिया मी मदद से भारत के खिलाफ हवाला और हथियारों की तस्करी तथा आतंकवादी हमलों की साजिश को दिखाया है। । फिल्‍म में एक रॉ एजेंट के रूप में रणवीर सिंह का काम बहुत ही शानदार है। भारतीय जासूस पाकिस्‍तान के कराची शहर के ल्‍यारी इलाके के माफिया में पैठ बनाकर अपनी लक्ष्‍य को हासिल करता है। फिल्‍म में एक निर्मम पुलिस अधिकारी चौधरी (संजय दत्‍ता) और एंजल ऑफ डेथ के नाम से मशहूर आईएसआई अधिकारी के रूप में अर्जुन रामपाल का दमदार किरदार निभाया है। वहीं, एक धुर्त पॉलिटिशियन के रूप में राकेश बेदी का काम भी शानदार रहा है। लेकिन पूरी फिल्‍म में कराची के ल्‍यारी माफिया रहमान डकैत के रूप में अक्षय खन्‍ना से सबसे अधिक प्रभावित किया।

कंधार विमान अपहरण से लेकर देश में लगातार हो रहे आतंकवादी हमलों पर काबू पाने के लिए भारतीय अंडरकवर एजेंट के रूप में हमजा को एक बलोच नागरिक बनाकर कराची के ल्‍यारी में भेजा जाता है। हमजा ल्‍यारी के माफिया रहमान डकैत गिरोह का सदस्‍य बनता है। पूरे गिरोह का विश्‍वास जीतकर वह भारत विरोधी गतिविधयों में संलिप्‍त आईएसआई तक अपनी पहुंच बनाकर भारत को अहम जानकारियां भेजता है। मौका मिलते ही भारत विरोधी गतिविधियों में आईएसआई की मदद करने वाले और बलोच लोगों का कत्‍लेआम करने वाली पाकिस्‍तानी खूफिया एजेंसी आईएसआई के मददगार ल्‍यारी माफिया का अंत करता है।

दरअसल, सिनेमा किसी भी देख की सॉफ्ट पावर होती है। यह किसी भी देश की संस्‍कृतिक प्रचार एवं प्रसार का बड़ा माध्‍यम है। यह फिल्‍म भारतीय सिनेमा के बदलते नजरिए को बयां करती है। कुछ लोगों को भारतीय सिनेमा का यह बदलता नजरिया पसंद नहीं आ रहा है। कुछ लोग इस फिल्‍म को एंटी पाकिस्‍तान एवं एजेंडाधारी बताकर आलोचना कर रहे हैं। धुरंधर कोई पहली भारतीय फिल्‍म नहीं है जो पाकिस्‍तान के केन्‍द्र में रखकर बनाई गई है। यदि पाकिस्‍तानी इस फिल्‍म की आलोचना करे तो समझ में आता है, लेकिन कुछ भारतीय, विशेष तौर पर वामपंथी प्रो पाकिस्‍तानी होने के चलते इस फिल्‍म की आलोचना कर रहे हैं। यह समझ से परे है।

एक वरिष्‍ठ महिला पत्रकार आरफाखानम शेरवानी ने इस फिल्‍म को मुस्लिम विरोधी तक कहा है। यदि पत्रकार के नजरिए को स्‍वीकार किया जाए तो भारत में पिछले कई दशकों से भारतीय सिनेमा हिन्‍दू विरोधी फिल्‍में बना रहा है। इसके बाजूद कभी धर्म के आधार पर फिल्‍मों का विरोध नहीं किया गया। पत्रकार कहती है कि फिल्‍म में मुसलमानों की नकारात्‍मक छवि पेश की गई है। लेकिन फिल्‍म का 95 प्रतिशत पाकिस्‍तान पर आधारित है। शेष फिल्‍म में किसी भी भारतीय मुसलमान को न कहीं दिखाया गया है और न ही उनके बारे में कुछ बोला गया है। क्‍या पत्रकार पाकिस्‍तानी मुसलमानों के प्रति हमदर्दी दिखा रही है ? यदि ऐसा है तो यह पत्रकार की हमदर्दी पर ही सवाल उठाता है। वैसे भी पाकिस्‍तानी माफिया और आईएसआई पृष्‍ठभूमि वाली फिल्‍म में पाकिस्‍तानी मुस्लिम ही दिखाई देंगे, कोई अन्‍य नहीं।

धुरंधर फिल्‍म में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्‍तान को पूरी तरह नंगा किया है। वहीं, बलोचिस्‍तान में पाकिस्‍तानी सेना और आईएसआई द्वारा किए जा रहे नरसंहार के विषय को भी उठाया है। इस बात ने पाकिस्‍तानियों को अधिक दर्द पहुंचाया है। हालांकि पाकिस्‍तान के बड़े शहर कराची में माफियाराज के चलते वहां की लकवाग्रस्‍त कानून व्‍यवस्‍था और राजनीति तथा माफिया के गठजोड़ को जितने सुंदर तरीके से फिल्‍म में दिखाया गया है, उसके बाद भारतीय लोग इंटरनेट पर कराची के ल्‍यारी और रहमान डकैत को सर्च कर रहे हैं। वहीं, पाकिस्‍तानी भी दर्शक मान रहे हैं कि जिस विषय पर पाकिस्‍तान में फिल्‍म बननी चाहिए थी, उस विषय पर भारत में फिल्‍म बन रही है।

फिल्‍म में कुछ ऐसे संवाद भी है जिनमें पूर्व की सरकारों को कमजोर और आतंकवादियों से लड़ने में कमजोर सिद्ध करते हैं। फिल्‍म में कुछ वरिष्‍ठ अधिकारी इस बात को फिल्‍म में स्‍वीकार भी करते हैं। फिल्‍म में अंंत में कहा गया है कि ”यह नया हिन्‍दूस्‍तान है, अब यह घर में घुसकर मारता है” कुछ लोग इस आधार पर फिल्‍म को पूर्व की गैर भाजपाई, विशेष तौर पर कांग्रेसी सरकारों, के प्रति भाजपा सरकार समर्थक एजेंडा बता रहे हैं। हो सकता है इसके पीछे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के प्रति तत्‍कालीन सरकारों का रवैया रहा हो। प्रतीत होता है कुछ लोग फिल्‍म की समीक्षा के नाम पर राजनीतिक, विचारधारा और निजी मतभेदों के चलते फिल्‍म के खिलाफ एजेंडा चला रहे हैं।

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