नोएडा सेक्टर 135 में यमुना की गोद में करोड़ों की लागत से बना तालाब कितना उपयोगी?
How useful is the pond built at a cost of crores in the lap of Yamuna in Noida Sector 135?

राजेश बैरागी
Panchayat 24 : मेरी यह पोस्ट प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र से इतनी प्रेरित है कि उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के शीर्षक ने मुझे आकर्षित किया। कुछ दिनों पहले मैंने नोएडा सेक्टर 135 में यमुना के बांध के परे बनाए गए एक विशाल तालाब का भ्रमण किया।आठ एकड़ भूमि पर इस तालाब को नोएडा प्राधिकरण ने बनाया है। इसे अमृत सरोवर नाम दिया गया है। इसके चारों ओर लोहे की रेलिंग और तारबंदी की गई है ताकि कोई मनुष्य या जानवर इसमें न घुस पाए परंतु देखभाल के अभाव में यह तालाब आजकल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
इसमें एक कोने पर लगाया गया सोलर पैनल रखरखाव के अभाव में जर्जर हो चुका है।तालाब काफी गहरा बताया जाता है, बीच में लगभग आठ फुट गहरा।इसे निरंतर पानी से भरा जा रहा है। नोएडा प्राधिकरण के जल विभाग के महाप्रबंधक आर पी सिंह बताते हैं कि तालाब को भरने के लिए प्रतिदिन 50 एम एल डी पानी दिया जा रहा है। यह शहर के सीवर का शोधित पानी है जिसे किलोमीटरों लंबी पाइप लाइन बिछाकर यहां तक पहुंचाया गया है। प्राधिकरण के सिविल निर्माण वर्क सर्किल-9 द्वारा इस तालाब का निर्माण कराया गया था। क्या यह तालाब कभी पानी से भर पाएगा?
इस प्रश्न का उत्तर प्राधिकरण के किसी विभाग के पास नहीं है। यमुना के रेतीले खादर में आबादी से दूर इस तालाब को बनाने की आवश्यकता का प्रश्न भी मुंह बाए खड़ा है।शहर और गांवों में आबादी के बीच जल संकायों (वाटर बॉडीज) का संरक्षण और निर्माण मौजूदा समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।जलवायु परिवर्तन, अंधाधुंध भूजल दोहन, बढ़ती आबादी और बहुमंजिला इमारतों के गहरे आधार निर्माण से भूजल के गिरते स्तर को थामने के लिए तालाब जैसे जल संकायों की बड़ी भूमिका हो सकती है। ऐसे जल संकायों के संरक्षण, संवर्धन और नये निर्माण ने कई स्वयंसेवी संगठनों और बहुत से तथाकथित पर्यावरण कार्यकर्ताओं को आमदनी के सुनहरे अवसर प्रदान किए हैं।
यह तालाब कोफोर्जे नामक कंपनी द्वारा वित्त पोषित है।इसे सोशल एक्शन फॉर फोरेस्ट एंड एनवायरमेंट (सेफ) नामक संस्था की पहल पर बनाया गया।यह संस्था ऐसे ही एक तथाकथित पर्यावरण एक्टिविस्ट की है।इसे प्रतिदिन प्राधिकरण के जल विभाग द्वारा दिए जा रहे 50 मिलियन लीटर शोधित पानी को वहां तक पहुंचाने में प्राधिकरण को कितनी ऊर्जा लगानी पड़ती है और कितना इस पर खर्च आता है जबकि यह तालाब बांध के परे आबादी से दूर यमुना के रेतीले खादर में बनाया गया है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट में भी यही संस्था ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से दो तालाब बनवाने की जुगत लगा रही है।
अनुपम मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ में जिन तालाबों का वर्णन किया गया है उनमें से एक भी तालाब ऐसे स्थान पर नहीं है।तो क्या प्राधिकरण ने किसी तथाकथित पर्यावरणविद् को संतुष्ट करने और उसकी नियमित आमदनी के लिए इस तालाब का निर्माण किया है? क्या करोड़ों रुपए खर्च कर बनाए गए तालाब से पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति हो पा रही है? एनजीटी जैसी संस्थाओं और तथाकथित पर्यावरण हितैषियों से अपनी चमड़ी बचाने के लिए प्राधिकरण ऐसे और भी तालाब बना दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।