राष्ट्रीय

चीफ जस्टिस ऑफ इण्डिया का बयान राजनीतिक दलों को आईना दिखाता है, हार-जीत राजनीतिक दलों के कर्मों का फल है

The statement of the Chief Justice of India shows the mirror to the political parties, victory and defeat are the result of the actions of the political parties

Panchayat 24 : भारत के मुख्‍य न्‍यायधीश डीवाई चन्‍द्रचूड का एक बयान काफी सुर्खियों में है। उनके बयान में एक पीडा का अनुभव होता है। पीडा का कारण है राजनीतिक प्रणाली द्वारा देश की न्‍यायव्‍यवस्‍था को अपने राजनीतिक लाभ हानि के दृष्टिकोण से देखा जाना है। उनका बयान राजनीतिक दलों, विशेषकर विपक्ष को आईना दिखाने वाला है। उनके कहने का स्‍पष्‍ट तात्‍पर्य है कि भले ही राजनीति में लाभ और हानि का दृष्टिकोण से विषय को देखा जाता हो, लेकिन देश की सर्वोच्‍च अदालत में ऐसा नहीं होता है। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट तौर पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्‍च अदालत है, इसके मायने यह कतई नहीं है कि वह विपक्ष की भूमिका निभाए।

क्‍या है पूरा मामला ?

दरअसल, देश में पिछले कुछ सालों से देश में, विशेष रूप से विपक्षी दलों की ओर से, देश की न्‍याय व्‍यवस्‍था को लेकर एक परिपाटी शुरू हुई है। विपक्षी दलों द्वारा देश की सर्वोच्‍च अदालत के फैसलों को एक विशेष नजरिए से देखा जा रहा है। यदि सुप्रीम कोर्ट के फैसले राजनीतिक दलों के अनूकूल होते है तो उन्‍हें संविधान की रक्षा करने वाला कहा जाता है। वहीं, कोई फैसला राजनीतिक दलों, विशेष तौर पर विपक्षी दलों के प्रतिकूल होता है तो उसको लेकर देश की न्‍याय प्रणाली और न्‍यायधीशों पर सत्‍ता के प्रभाव तक का प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष आरोप तक लगाया जाता है। ऐसी स्थिति को लेकर देश के मुख्‍य न्‍यायधीश डीवाई चन्‍द्रचूड ने देश के न्‍यायधीशों की भावनाओं को ही एक तरफ से व्‍यक्‍त किया है। देश के मुख्‍य न्‍यायधीश के इस बयान को देश की राजीनति में पैदा होने वाली उन परिस्थितियों से जोड़कर देखा जा रहा है जब विपक्षी दलों द्वारा सरकार की नीतियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और उन्‍हें वहां पर भी मन मुताबिक सफलता नहीं मिली है।

देश के मुख्‍य न्‍यायधीश ने क्‍या कहा ?

पणजी में बीते सप्‍ताह देश के मुख्‍य न्‍यायधीध डीवाई चन्‍द्रचूड रिकार्ड एसोसिएशन के पहले अन्‍तर्राष्‍ट्रीय कानून सम्‍मेलन में बोलते हुए कहा कि न्‍यायालयों के फैसलों और गलत नीतियों की लोग आलोचना कर सकते हैं। इन्‍हें मापने का आधार सार्वजनिक हित होना चाहिए, निजी हित नहीं। लेकिन लोग न्‍यायालयों के निर्णयों को इस आधार पर परखते हैं कि वह उनके पक्ष में है अथवा विपक्ष में। आजकल एक चलन चल पड़ा है। लोग न्‍यायालयों की तारीफ उस समय करते हैं जब निर्णय उनके पक्ष में होता है। उस समय सुप्रीम कोर्ट एक अदभुद संस्‍था है। निर्णय विरोध में होने पर आलोचना करते हैं। सुप्रीम कोर्ट को बदनाम संस्‍था बताते हैं। उन्‍होंने कहा कि यह सोच बहुत खतरनाक है। इससे देश के 75 सालों में देश की सर्वोच्‍च न्‍यायपालिका द्वारा निष्‍पक्ष रहकर जो न्‍याय की छवि बनाई है, उसको नुकसान पहुंचता है। ऐसी बातें सर्वोच्‍च न्‍यायपालकिा की निष्‍पक्ष भूमिका को धूमिल करता है।

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