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गौतम बुद्ध नगर में लेखपाल युग : व्‍यवस्‍था की सच्‍चाई बयां करने को सदर तहसील की घटना से बड़ा कोई प्रमाण हो सकता है ?

Lekhpal era in Gautam Buddh Nagar: Can there be any bigger proof than the incident of Sadar Tehsil to tell the truth of the system?

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 : गौतम बुद्ध नगर में लेखपाल युग चल रह है। लेखपालों की भूमिका पर संदेह करने वालों को यर्थाथ का ज्ञान नहीं है।यह विचार करना बेईमानी है कि लेखपालों को क्‍या करना चाहिए। दरअसल, क्‍या करना चाहिए, यह एक आदर्शवादी विचार है। सभी जानते हैं कि यर्थाथ के धरातल पर आदर्शवाद कितनी देर टिक पाता है ? समाज का एक वर्ग लेखपाल युग को स्‍वीकार कर चुका है। फिर भी एक बड़ा वर्ग है जो अपनी परिस्थितियों के चलते चाहकर भी नए युग को स्‍वीकार करने की स्थिति में नहीं है। इसमें लेखपालों की कोई गलती नहीं है। यह लोगों की निजी समस्‍या है।

गौतम बुद्ध नगर में लेखपाल युग का विस्‍तार औद्योगिक विकास के साथ जमीन अधिग्रहण से हुआ है। अब यह जिले की सीमा में पूरी तरह फैल चुका है। तहसील और प्राधिकरण लेखपाल युग के प्रमुख केन्‍द्र बन चुके हैं। जमीन से जुडे विशेष ज्ञान के कारण इनकी इच्‍छा से ही काम अंजाम तक पहुंचता है। अधिकारी चाहकर भी अपनी इच्‍छा से जमीन के रिकार्ड की जानकारी हासिल नहीं कर सकता है। ऐसे में सारा खेल खेल जमीन का है। गौतम बुद्ध नगर की जमीन के प्रति आकर्षण रखने वाले स्‍थानीय एवं बाहरी लोगों के लिए लेखपालों की सेवा हर समय उपलब्‍ध है। बदले में कुछ सुविधा शुल्‍क पाना उनका अधिकार है।

यह बिल्‍कुल मत बोलिएगा कि सरकार लेखपालों को उनके काम की तनख्‍वा भी देती है। यह बात तो प्रेमचंद की नमक का दरोगा नामक रचना में ही सिद्ध हो गई थी जब एक पिता रोजगार की तलाश कर रहे अपने बेटे को समझाते हुए कहता है कि नौकरी पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है। इस कारण उसको पाने वाले की वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है। इसको पाने वाले की खूब बरकत होती है।

गौतम बुद्ध नगर में लेखपालों ने प्रेमचंद की इस रचना को दिल से आत्‍मसात किया हुआ है। कोई लेखपालों के पैमाने पर खरा नहीं उतरता है तो उसमें उनकी क्‍या गलती नहीं है ? भले ही रिश्‍वत मांगने की लाख शिकायतें की गई हो। रिश्‍वत लेते हुए उनके वीडियो वायरल हो गए हो। सुविधा शुल्‍क न देने वाले सालों तक जूते घिस रहे हो। लेखपाल अपने संकल्‍प पर अडिग हैं। कभी कभार वरिष्‍ठ अधिकारी अंर्तात्‍मा के नाम पर कार्रवाई करते रहे हैं। यह कार्रवाई कितनी अंजाम तक पहुंच पाती हैं यह अलग विषय है। हालांकि सुविधा शुल्‍क को रिश्‍वत कहना भी लेखपालों की कर्तव्‍य परायणता का अपमान ही है।

गौतम बुद्ध नगर जिले में 27 मई का दिन लेखपाल युग के संदर्भ में हमेशा याद रखा जाएगा। एक तरफ जहां नोएडा प्राधिकरण में कार्यरत लेखपाल भीम सिंह अमर्यादित आचरण करने एवं दायित्‍वों का निर्वहन नहीं करने के चलते निलंबित कर दिया गया। वहीं, सदर तहसील में अपनी जमीन की पैमाईश के लिए पहुंचे पाली गांव के किसान ललित भाटी, उनके पुत्र राजू और भतीजे को लेखपाल सुनील चौधरी, कानूगो कुंवरपाल और उनके साथियों ने जमकर पीटा। दोनों लेखपालों का मानना है कि वह तो अपना कर्तव्‍यपालन ही कर रहे थे। उन्‍हें साजिशन फंसाया गया है। सदर तहसील में तो अति हो गई जब किसान ने एडीएम से मामले की शिकायत कर दी। बताइए भला मुफ्त में आज के जमाने में कोई काम होता है।

देश में सैनिकों के बाद कोई अपने कर्तव्‍यों का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं, वह लेखपाल ही तो हैं ! अपने साथ हुए अन्‍याय, दुर्व्‍यव्‍यवहार और अत्‍याचार के चलते लेखपाल ने आपा खो दिया और फिर सबकुछ वीडियो में रिकार्ड और वायरल हो गया।  जिला प्रशासन हरकत में आया। लेखपाल को कार्यमुक्‍त कर दिया। किसान परिवार आरोपियों की गिरफ्तारी एवं बर्खास्‍तगी पर अड़ा हुआ है। किसान संगठनों ने घटना के विरोध में जिला मुख्‍यालय का घेराव किया। पुलिस ने 24 घंटे और प्रशासन ने कार्रवाई के लिए चार दिन का समय मांगा है। किसान संगठनों ने मामले में उचित कार्रवाई नहीं होने पर बड़े आन्‍दोलन की चेतावनी दी है।

पाली गांव के  किसान परिवार के साथ वाकई में बहुत बुरा हुआ। इसके बावजूद वह बधाई के पात्र है कि उनके माध्‍यम से जिले की तहसीलों में मची  लूट की स्‍याह सच्‍चाई खुलकर सबके सामने आई है। इस घटना के बाद किसी तरह की कोई गुंजाइश शेष नहीं रह गई है। सच्‍चाई तो यह है कि लोग अपने काम के लिए सरकारी कार्यालयों, विशेषकर प्रशासन ( तहसील) और प्राधिकरण आने में डरते हैं। उन्‍हें अघोषित लूट का भय सताता है। यदि लूट से बचने का प्रयास करने की गलती कर दी तो काम को भूल जाइए। लूट की इस व्‍यवस्‍था में लेखपाल एक किरदार मात्र है। पूरे खेल में कौनसा शिकारी कहां जाल बिछाए बैठा है ? किसी को नहीं पता ? लूट की इस व्‍यवस्‍था पर अब कड़े प्रहार की जरूरत है। अन्‍यथा लूट की व्‍यवस्‍था में पिसकर लोगों का वर्तमान और आने वाली पीढियों का भविष्‍य बर्बाद होना तय है।

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