नोएडा प्राधिकरणस्पेशल स्टोरी

नोएडा में बदहाल दो सौ सार्वजनिक शौचालयों के रख रखाव की एवज में बड़े खेल की तैयारी , विज्ञापन एजेंसी और अधिकारिक गठजोड़ की चर्चा

Big game in the making for the maintenance of 200 dilapidated public toilets in Noida, with discussions about a tie-up between an advertising agency and the government.

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 (नोएडा) : नोएडा में साफ सफाई को लेकर  नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण को भले ही राष्‍ट्रीय स्‍तर पर स्‍वच्‍छता पुरस्‍कार मिल चुका हो, लेकिन शहर के 195 शौचालय अपनी दुर्दशा पर पिछले छ: महीनों से आंसू बहा रहे हैं। इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बताया जा रहा है कि इनके रख रखाव के लिए प्राधिकरण को करोड़ के भारी भरकम बजट की व्‍यवस्‍था करनी पड़ेगी जिसका विचार ही आला अधिकारियों को परेशान कर रहा है। हालांकि इन शौचालयों की दशा सुधारने के लिए कागजी प्रयास कई बार हुए लेकिन परिणाम शून्‍य ही रहा है। ऐसे में सवाल उठता है क्‍या प्राधिकरण के पास इन शौचालयों की दशा सुधारने के लिए नीति का अभाव है अथवा जानबूझकर इन्‍हें नजर अंदाज किया जा रहा है ?

दरअसल, इन सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण की तत्‍कालीन सीईओ ऋतु महेश्‍वरी के समय में हुआ था। जानकारी के अनुसार देखरेख के लिए इन शौचालयों को उतने ही जोन में बांटा गया था जितने नोएडा में जोन बनाए गए हैं। हर जोन में साफ सफाई का कामकाज देखने वाले ठेकेदारों पर इनकी देखरेख एवं साफ सफाई का जिम्‍मा भी था। लगभग छ: महीने पूर्व इन ठेकेदारों की समय अवधि पूरी हो चुकी है।

नए ठेकेदार अतिरिक्‍त भार के रूप में इन शौचालयों की देखरेख एवं सफाई व्‍यवस्‍था का बोझ उठाने को तैयार नहीं है। इन छ: महीनों में शौचालयों की हालत जर्जर हो चुकी है। यूरिन पोट टूटे पड़े हैं। अंदर गंदगी भरी हुई है। पानी के नल खराब अथवा टूटे हुए हैं। ये सभी शौचालय अपनी हालत में सुधार की बाट देख रहे हैं। इनके रख रखाव तथा यहां तैनात लगभग तीन सौ से लेकर छ: सफाई कर्मचारियों के वेतन आदि पर लगभग तीस करोड़ का बजट खर्च होने का अनुमान है। ऐसे में संभवत: प्राधिकरण इन शौचालयों को सफेद हाथी मान बैठा है।

सूत्रों की माने तो इन शौचालयों की दशा सुधारने के लिए प्राधिकरण के सामने कई प्रस्‍ताव रखे जा चुके हैं। एक विचार था कि इन सभी शौचालयों को विज्ञापन लगाने के लिए विज्ञापन एजेंसियों को दे दिया जाए। उनसे इसकी एवज में कोई शुल्‍क न लिया जाए। वह केवल शौचालयों के रख रखाव एवं साफ सफाई को प्राधिकरण के तय मानकों के अनुसार दुरूस्‍त रखें। लेकिन इस प्रस्‍ताव को भी किन्‍हीं कारणों से अस्‍वीकार कर दिया गया। बाद में एक विचार यह भी आया कि शौचालयों के रखरखाव की जिम्‍मेवारी स्‍वयं प्राधिकरण उठाएगा, लेकिन इसके लिए इसके लिए आवश्‍यक 30 करोड़ के बजट की व्‍यवस्‍था पर बात नहीं बनी।

जानकारी मिल रही है कि एक बार फिर प्राधिकरण इन सभी शौचालयों को एक विज्ञापन चर्चित एजेंसी को सौंपने पर विचार कर रहा है। इस विज्ञापन एजेंसी शौचालयों के रख रखाव एवं साफ सफाई की एवज में बड़ी शर्त रखी है। एजेंसी चाहती है कि उसको नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्‍सप्रेस-वे पर पसंदीदा स्‍थानों पर एक शौचालय की एवज में दो यूनिपोल अर्थात चार सौ यूनिपोल लगाने की अनुमति दी जाए। सूत्रों की माने तो विज्ञापन एजेंसी को प्राधिकरण के ही एक अधिकारी का आशीर्वाद प्राप्‍त है। यह अधिकारी विज्ञापन एजेंसी के पक्ष में प्राधिकरण में माहौल भी बना रहा है। हालांकि मामला प्राधिकरण के राजस्‍व से जुड़ा है। ऐसे में शौचालयों की हालत सुधार के लिए कोई अभी तक ठोस नीति नहीं बन सकी है। देखना होगा कि विज्ञापन एजेंसी और अधिकारी का गठजोड़ क्‍या गुल खिलाता है ?

जब बाग का रखवाला ही पतझड उगाने लगे, खुशबुओं का हक भी कांटों को दिलाने लगे।

किससे कहें कि ये कैसा इंसाफ है खुदा, अब तो माली ही गुलों को मुरझााने लगे।।

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