लोकसभा चुनाव करीब आते ही लिखी जा रही है जातीय तनाव की पठकथा ? गौतम बुद्ध नगर ने चुकाई है इसकी बड़ी कीमत
As Lok Sabha elections approach, the script of caste tension is being written? Gautam Buddha Nagar has paid a big price for this

Panchayat 24 : गौतम बुद्ध नगर की राजनीति साल 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से जातिवाद के जहरीले दलदल में धंसती जा रही है। राजनीति और राजनीति के माध्यम से क्षणिक और तात्कालिक लाभ प्राप्त करने वाले लोग बड़ी ही चालाकी से इस जिले में जातीवाद का रणनीतिक प्रयोग करने लगे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के करीब आते ही ऐसा प्रतीत होने लगा है कि गौतम बुद्ध नगर की राजनीति में एक बार फिर जातीय तनाव पैदा करने की पटकथा लिखी जा रही है। पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर चल रही खबरें भी इस दिशा में इशारा कर रही हैं।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, सोशल मीडिया पर चल रही खबरों के केन्द्र में ग्रेटर नोएडा के खैरपुर गांव में दो पक्षों के बीच हुआ विवाद है। एक ईंट विक्रेता से रूपयों के लेनदेन में अभद्रता एवं मारपीट की थी। पीडित ने पुलिस से मामले की शिकायत की थी। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए आरोपियों को गिरफ्तार किया था। दो पक्षों के बीच हुए इस विवाद को दो जातियों के बीच का विवाद बताकर प्रचारित किया जा रहा है। कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इस खबर को गुर्जर बनाम ब्राह्मण का रूप देकर अपनी जाति के पक्ष में समर्थन खड़े होने की बात कही हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है जो इस घटना का राजनीतिकरण किए जाने की बात कहकर लोगों से प्रोपेगेंडा से बचने की भी अपील कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो में एक बुलडोजर एक कमरे को गिरा रहा है। साथ ही एक युवक खुद को सांसद डॉ महेश शर्मा का समर्थक बताते हुए कह रहा है, यदि सांसद चाहते तो इस कार्रवाई को रोका जा सकता था। इस वीडियो को आधार बनाकर एक बार फिर सोशल मीडिया पर जातिवाद का जहर फैलाने की कुछ लोगों द्वारा कोशिश की गई है। हालांकि इस युवक द्वारा अपनी बातों का खंडन करते हुए अपने फेसबुक अकाउंट पर एक पोस्ट में लिखा है कि कुछ अराजक तत्व मेरी कुछ वीडियो को वायरल कर अफवाह फैलाई जा रहे हैं। मेरा समाज के लोगों से अनुरोध है कि अफवाहों पर ध्यान न दें।
लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से जुड़ा है सारा मामला
पिछले कुछ समय से जिले में छोटी छोटी घटनाओं को जातीय तनाव से जोड़े जाने की खबरों के बारे में जानकारों का कहना है कि यह सब कुछ आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से भाजपा का टिकट प्राप्त करने अथवा कटवाने के लिए किया जा रहा है। भाजपा के वर्तमान स्थानीय सांसद डॉ महेश शर्मा आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में भी पार्टी के टिकट के सबसे प्रबल दावेदार हैं। लेकिन भाजपा का ही एक धड़ा और इस धड़े के समर्थक डॉ महेश शर्मा का किसी भी हाल में टिकट कटवाना चाहते हैं। ब्राह्मण बनाम गुर्जर का भ्रामक विवाद भी इसी का एक हिस्सा है। दरअसल, भाजपा में जातिवाद का जहर पहली बार साल 2009 के लोकसभा चुनाव में घुलना शुरू हुआ था। इसकी गाज तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी डॉ महेश शर्मा पर गिरी और वह चुनाव हार गए थे। चौदह साल बाद एक बार फिर जिले में स्थानीय सांसद के खिलाफ तात्कालिक लाभ के लिए जातीय तनाव पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जानकार इसके पीछे भाजपा की गुटबाजी को मान रहे हैं। जिले में राजनीतिक लाभ के लिए फैलाए गए जातीय तनाव के कारण समाज में लोगों के एक दूसरे के प्रति नजरिए में भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष बदलाव आया है।
गौतम बुद्ध नगर ने जातीय तनाव की बड़ी कीमत चुकाई है
राजनीतिक लाभ के लिए राजनीति में जातिवाद समाज के लिए कतई भी हितकारी नहीं होता है। इसका असर समाज के तानेबाने पर पड़ता है। गौतम बुद्ध नगर इसकी जीती जागती मिसाल है। यहां के समाज ने इसकी भारी कीमत चुकाई है। गौतम बुद्ध नगर की राजनीति में जातीय तनाव की शुरूआत साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव से हुई। नए परिसीमन के बाद खुर्जा लोकसभा सीट का नाम बदलकर गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट हो गया। साल 2009 में पहली बार इस सीट पर सामान्य वर्ग और पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे।
भाजपा का टिकट पाने के लिए बड़ी संख्या में ब्राह्मण, गुर्जर, वैश्य और राजपूत समाज के लोगों ने प्रयास किए। पार्टी ने डॉ महेश शर्मा पर भरोसा जताते हुए उम्मीदवार बनाया। भाजपा के गैर ब्राह्मण समर्थकों के एक गुट ( विशेषरूप से गुर्जर समाज के कुछ नेता) ने इसका विरोध किया और चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम किया। इस गुट का कहना था कि गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट गुर्जर बाहुल्य है। यहां से गुर्जर प्रत्याशी को ही भाजपा को अपना उम्मीदवार बनाना चाहिए। चुनाव में बसपा प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नागर (वर्तमान में भाजपा के राज्यसभा सांसद) ने चुनाव में विजय प्राप्त की। वर्तमान में भाजपा के अन्दर मजबूत हो चुकी गुटबाजी की शुरूआत भी इसी चुनाव से हुई। डॉ महेश शर्मा साल 2012 में नोएडा विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए। इस बार भी उन्होंने विरोध के बावजूद पार्टी का टिकट हासिल किया। शुरूआत में भाजपा की इस गुटबाजी को गुर्जर बनाम गैर गुर्जर और गुर्जर बनाम ब्राह्मण का नाम दिया गया। इसके कारण जिले में जातीय तनाव पैदा होने लगा। अभी तक जातीयता से अछूत ग्रामीण आंचल पर भी इस हत्याकांड़ की काली छाया पड़ गई।
रविन्द्र शर्मा हत्याकांड़
राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग किए गए जातीय तनाव का दुष्परिणाम दादरी नगर में 9 सितंबर 2012 को सामने आया। युवाओं के दो पक्षों के बीच मामूली बात को लेकर शुरू हुए विवाद में रविन्द्र शर्मा नामक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस प्रकारण में जातीय आधार पर एक पक्ष का जुड़ाव तत्कालीन सांसद सुरेन्द्र सिंह नागर से रहा तो दूसरे पक्ष का जुड़ाव तत्कालीन नोएडा विधायक डॉ महेश शर्मा से देखा गया। इस घटना के बाद क्षेत्र में जातीयता का घृणित चेहरा समाज के सामने आया।
विजय पंडित हत्याकांड़
इतना ही नहीं साल 2014 का लोकसभा चुनाव भी इस जातिवादी जहर के असर से नहीं बच सका। लोकसभा चुनाव आते आते लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष छोटी छोटी घटनाओं को जातीयता के पैमाने पर परखने लगे। जिले में जातिवाद का सबसे भयानक रूप 7 जून 2014 को सामने आया जब दादरी चैयरमेन गीता पंडित के पति और भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय पंडित की बीच बाजार गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस घटना ने न केवल जिले के सामाजिक तानेबाने को बुरी तरह प्रभावित कर दिया, बल्कि इसके निशान अभी भी अलग अलग रूप में समाज में देखने को मिल जाते हैं।
गुर्जर बनाम राजपूत
जिले में गुर्जर बनाम राजपूत का विवाद भी कई बार सामने आ चुका है। इसके केन्द्र में एनटीपीसी तथा आसपास का क्षेत्र रहा है। लेकिन पिछले दो साल एक मामूली सी घटना को दो पक्ष आपस में टकरा गए। कई लोगों को गंभीर चोटें आई। इस घटना को लेकर गुर्जर और राजपूत समाज आमने सामने आ गए। हालात को देखते हुए पुलिस एवं प्रशासन के भी हाथ पैर फूल गए। क्षेत्र में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया। हालांकि तत्कालीन कुछ पुलिस अधिकारियों और क्षेत्र के संभ्रांत लोगों के प्रयासों से दोनों समाजों के बीच सौहार्द कायम हो सका।
सम्राट मिहिर भोज प्रकरण
जिले में साल 2022 के विधानसभा चुनावों से पूर्व मिहिर भोज प्रकरण ने गुर्जर और राजपूत समाज के बीच जिस विषय ने वैमन्स्य सबसे अधिक पैदा किया। यह सबकुछ तत्कालीन मुख्यमंत्री की दादरी के मिहिर भोज डिग्री कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के अनावरण से ठीक पहले हुआ। इस प्रकरण की गर्मी देश के अलग अलग हिस्सों में आज भी महसूस की जाती है। वैसे इसको पैदा करने में भी भाजपा की गुटबाजी ही जिम्मेवार बताई जाती है।
वैश्य बनाम त्यागी
दरअसल, इस विवाद की शुरूआत नोएडा की एक हाऊसिंग सोसायटी से हुई। यहां पर सोसायटी में अतिक्रमण को लेकर वैश्य समाज की एक महिला और त्यागी समाज के व्यक्ति श्रीकांत त्यागी के बीच कहासुनी हुई। श्रीकांत त्यागी को भाजपा नेता बताया गया। उसने महिला से अभद्रता की। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो गया। वैश्य समाज ने घटना के खिलाफ पुलिस एवं प्रशासन को ज्ञापन सौंपे एंव आरोपी के खिलाफ कार्रवई की मांग की।
ब्राह्मण बनाम त्यागी
नोएडा में श्रीकांत त्यागी प्रकरण को लेकर त्यागी बनाम ब्राह्मण समाजों के बीच तनाव पैदा हो गया। दरअसल, श्रीकांत त्यागी के खिलाफ प्रशासन द्वारा कार्रवाई के विरोध में कुछ लोग सोसायटी में घुस आए और जमकर उत्पात मचाया। पीडित महिला ने अपनी एवं परिवार के सदस्यों की जान को खतरा बताया। इस घटना का भी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। श्रीकांत त्यागी प्रकरण में पुलिस प्रशासन की इस तरह की विफलता पर स्थानीय सांसद डॉ महेश शर्मा ने नाराजगी जाहिर की और रात को ही सोसायटी पहुंच गए। उन्होंने पुलिस की कार्रशैली को इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेवार ठहराया। मामले ने लखनऊ दरबार में भी दस्तक दे दी। पुलिस ने श्रीकांत त्यागी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। यह पहला विवाद था जिसमें पुलिस प्रशासन की प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर संलिप्तता देखी गई। जानकारों की माने तो भाजपा की गुटबाजी ने राजनीतिक लाभ के लिए इस विवाद को जमकर हवा दी।
इसके अतिरिक्त जिले में गुर्जर बनाम दलित, दलित बनाम राजपूत, ब्राह्मण बनाम राजपूत जैसी छोटी घटनाओं को हवा देने के प्रयास किए गए, लेकिन प्रशासन और समाज के लोगों ने समय रहते इन्हें काबू कर लिया।
संदेश
पंचायत 24 इस खबर के माध्यम से क्षेत्र के लोगों से अपील करना चाहता है कि सोशल मीडिया पर चल रही खबरों पर आंख मूंदकर विश्वास न करें। ऐसी खबरें तात्कालिक राजनीतिक एवं आर्थिक लाभ के लिए प्रोपेगेंडा के रूप में प्रयोग की जाती है। इससे समाज का बहुत अधिक नुकसान होता है। चुनाव आते जाते रहेंगे। चुनाव के लिए समाज की जड़ों को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। जातियां समाज की जड़ें हैं। इनमें जहर घोलने से समाज का स्वरूप बदरंग होने का खतरा बढ़ जाता है। जाति का प्रयोग समाज को मजबूत करने के लिए होना चाहिए, कमजोर करने के लिए नहीं। चुनावी मौसम आ गया है। नेता और उनके समर्थक राजनीतिक नफा नुकसान के लिए जाति का कार्ड खेलेंगे। समाज को सतर्क रहना है।