न मान न सम्मान, मर्यादाएं तार-तार् : गौतम बुद्ध बार एसोशिएसन चुनाव में यह क्या हो रहा है ?
No respect, no dignity, all boundaries shattered: What is happening in the Gautam Buddha Bar Association elections?

डॉ देवेंद्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 (ग्रेटर नोएडा) : गौतम बुद्ध नगर जिला न्यायालय में दीवानी एवं फौजदारी बार एसोसिएशन का चुनाव अपने अंतिम पड़ाव में प्रवेश कर चुका है। चुनाव को लेकर बार में माहौल पूरी तरह गरमाया हुआ है। चुनाव में साजिश है, राजनीति है, आरोप प्रतारोप हैं, शक्ति प्रदर्शन है और एक दूसरे पर श्रेष्ठता सिद्ध करने के साथ प्रतिद्वन्दी को कमतर बताने की होड़ मची है। न्यायालय के इस गरिमामयी पूरे चुनाव मे यदि कुछ नदारद है तो वह है चुनावी प्रक्रिया का लोकतान्त्रिक भाव और पेशे की गरिमा बनाए रखने वाली नैतिकता।
दरअसल, गौतम बुद्ध नगर बार एसोशिएसन चुनाव में मनोज भाटी और योगेंद्र भाटी के बीच सीधा मुकाबला होना तय हो चुका है। 24 दिसंबर को मतदान होना है। दोनों ही उम्मीदवार पूर्व में बार अध्यक्ष रह चुके है। मनोज भाटी की शैली आक्रामक है। अपनी शैली के कारण उन्होंने बहुत कम समय में (बार के बड़े बड़े अनुभवी अधिवक्ताओं के बीच ) एक सक्रिय अधिवक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई है। युवा अधिवक्ताओं के बीच उनकी पैठ है। हालांकि उनकी शैली ही उनके विरोध का कारण भी बन रही है। वहीं, योगेंद्र भाटी एक अनुभवी और मँझे हुए अधिवक्ता है। उनकी शैली शांत एवं सौम्य है। बार के पुराने अधिवक्ताओं का उन्हें समर्थन है। पिछले कुछ सालों में मनोज भाटी के विरोधी उनके ऊपर कई तरह के आरोप लगते रहे है। ऐसे में उनके विरोधी भी विकल्प के तौर पर योगेंद्र भाटी के पाले में लाम्बंद हो रहे है।
चुनाव में जातिवाद एक अहम कारक है। दोनों उम्मीदवारों के सजातीय होने के कारण गुर्जर मतदाता कम ज्यादा दोनों के बीच बंट रहे है। लेकिन गैर गुर्जर मतदाताओं का झुकाव मनोज भाटी के पक्ष में है। क्षेत्र के कद्दावर नेता नरेंद्र भाटी की सक्रियता चुनाव को निर्णायक चरण की ओर मोड़ रही है। यह विरोध मनोज भाटी के लिए बड़ी चुनौती है।
गौतम बुद्ध नगर बार एसोशिएसन के चुनाव में आकूत धन खर्च हो रहा है। यह खर्च साल दर साल लगातार बढ़ रहा है। न्याय के मंदिर में शराब का खुला वितरण हो रहा है। न्यायालय परिसर में लगे भव्य पंडाल ऐसा अहसास करा रहे हैं मानो राजाधिराज का कोई भव्य आयोजन हो रहा है और जनता के लिए खुला भोज आयोजित किया गया हो।
सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार के साथ एक दूसरे के प्रति शब्दों की मर्यादाएं टूट रही हैं। गाली गलोच तक हो रही हैं। एक ऐसा ऑडियो भी सामने आया है जिसमें एक जूनियर अधिवक्ता अपने सीनियर अधिवक्ता से अपना वोट काटे जाने का जिक्र करते हुए पुनः चुनाव के लिए वोट बनाने का आग्रह कर रहा है। वहीं, सीनियर अधिवक्ता ने वोट बनाने के लिए अपनी मर्जी के प्रत्याशी को वोट देने की शर्त रखी। ऐसा नहीं करने पर सीनियर अधिवक्ता ने स्पष्ट तौर पर जूनियर अधिवक्ता से उसकी वोट बनाए जाने से इंकार कर दिया गया गया है। यह घटना बयान करती है कि बार चुनाव में विरोधी पक्ष के समर्थकों की वोट काटे जाने और अपने समर्थकों की वोट बनाये जा रहे हैं।
ऐसे में भद्रजनों एवं पेशेवरों के इस चुनाव पर कई तरह के सवाल स्वतः उठ खड़े हो रहे हैं। क्या नैतिकता की कीमत पर चुनाव जीतना ही बार चुनाव का लक्ष्य हो चुका है ? क्या बार चुनाव से पूर्व दोनों पक्षों के बीच हो रहे अमर्यादित और अशोभनीय आरोप प्रत्यारोप अधिवक्ताओं के बीच वैमनस्य के बीज नहीं बो रहे है ? शब्दों की मर्यादा और गरिमा चुनाव में बईमानी हो गई है ? बार चुनाव में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष राजनितिक व्यक्तियों और दलों का दखल चुनाव के मूल उद्देश्य वं भाव के विपरीत नहीं है ? जिस तरह बार चुनाव में धनबल और शराब का वितरण हो रहा है क्या यह चुनाव की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया की भावना एवं नैतिक मापदंडों के अनुरूप है ? और सबसे बड़ा सवाल है यदि न्याय के मंदिर में चुनाव जितने के प्रति ऐसा नजरिया अपनाया जा रहा है तो क्या आम आदमी के लिए न्याय की उपलब्धता कितनी सुलभता कठिन और उपलब्धता लगातार दूर हो रही है ? साथ ही एक आम आदमी के मन में अधिवक्ता पेशे के प्रति इन परिस्थितियों में क्या तस्वीर बनेगी ?



