स्पेशल स्टोरी

भारत का सच्‍चा धुरंधर : कहानी भारत के ऐसे जासूस की जिसने पाकिस्‍तान के पैरों तले से खींच ली थी जमीन

India's true hero: The story of an Indian spy who pulled the rug out from under Pakistan's feet.

Panchayat 24 विशेष

Panchayat 24 (ग्रेटर नोएडा) : हाल ही में बनी बॉलीवुड फिल्‍म धुरंधर भारतीय जासूसों की गुमनाम जिंदगी को उजागर किया है। यह फिल्‍म कई कारणों से   चर्चा में है। जब बात पाकिस्‍तान में भारतीय जासूसों की बात आती है तो एकदम से उस भारतीय जासूस का नाम मस्तिष्‍क में कौंधने लगता है। इस जासूस का नाम था रविन्‍द्र कौशिक।

राजस्थान के एक साधारण परिवार में जन्मे रविंद्र कौशिक का जीवन सामान्य युवाओं से बिल्कुल अलग राह पर आगे बढ़ा। बचपन से ही रंगमंच और अभिनय के प्रति उनका झुकाव था। मंच पर निभाए गए उनके किरदार इतने प्रभावशाली होते थे कि एक थिएटर प्रस्तुति के दौरान खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) की नजर उन पर टिक गई। यही पल उनके जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ।

बताया जाता है कि एक थिएटर प्रस्तुति के दौरान रविंद्र की अभिनय प्रतिभा पर भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (R&AW) की नजर पड़ी। अपने एकल नाटक में उन्होंने भारतीय सेना के एक अधिकारी की भूमिका निभाई थी, जिसे दुश्मन देश की सेना पकड़ लेती है, लेकिन वह किसी भी परिस्थिति में देश से जुड़ी गोपनीय जानकारी देने से इनकार कर देता है। उनकी सशक्त प्रस्तुति से प्रभावित होकर रॉ अधिकारियों ने उन्हें गुप्त सेवाओं के लिए उपयुक्त माना।

चयन के बाद रविंद्र कौशिक को लगभग दो वर्षों तक कड़ी और गोपनीय प्रशिक्षण प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।इस्लामी परंपराओं और सामाजिक व्यवहार की सूक्ष्म जानकारी दी गई। उर्दू से पहले से परिचित होने के कारण उन्होंने नई भाषाएं और संस्कृति बेहद तेजी से आत्मसात कर लीं।इसके पश्चात उन्हें विभिन्न देशों में गुप्त अभियानों पर भेजा गया, जहां उन्होंने सौंपे गए प्रत्येक दायित्व को कुशलता और निष्ठा से निभाया।

उनकी सफलता को देखते हुए एजेंसी ने उन्हें पाकिस्तान में स्थायी मिशन पर तैनात करने का निर्णय लिया।   वर्ष 1975 में उन्हें एक अति संवेदनशील मिशन के तहत पाकिस्तान भेजा गया। इस मिशन का उद्देश्य छद्म पहचान के साथ पाकिस्तान में रहकर भारत को अहम सैन्य और रणनीतिक सूचनाएं उपलब्ध कराना था। रॉ ने उन्हें ‘नबी अहमद शाकिर’ नाम से नई पहचान दी।

सत्तर के दशक के मध्य में रविंद्र को नई पाकिस्तानी पहचान के साथ सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराए गए। जन्म प्रमाणपत्र से लेकर शैक्षणिक प्रमाण-पत्र और पासपोर्ट तक, हर कागज़ात पूरी तरह वैध रूप में तैयार किए गए। इसी पहचान के तहत वह इस्लामाबाद निवासी नबी अहमद के रूप में जाने जाने लगे।

पाकिस्तान पहुंचने के बाद उन्होंने कराची की एक लॉ यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर कानून की पढ़ाई पूरी की। स्नातक होने के पश्चात उन्हें पाकिस्तानी सेना में कमीशन मिला और बाद में उन्हें मेजर के पद तक पदोन्नति भी प्राप्त हुई। इस दौरान रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तान में एक स्थानीय महिला से विवाह किया और एक बेटी के पिता बने। वर्ष 1979 से 1983 के बीच उन्होंने लगातार पाकिस्तान से भारत को महत्वपूर्ण जानकारियां भेजीं, जिससे भारतीय रक्षा रणनीति को मजबूती मिली।

रविन्‍द्र के परिजनों को भी उनके जासूस होने की भनक तक नहीं थी। उन्‍होंने परिजनों को बताया था कि वह दुबई में कारोबार करते हैं। एक अवसर पर उन्हें अत्यंत गोपनीय ढंग से कुछ समय के लिए भारत आने की अनुमति दी गई। वे अपने साथ उपहार लाए, लेकिन अपने मिशन का रहस्य किसी के सामने उजागर नहीं किया। परिवार की ओर से विवाह को लेकर दबाव बढ़ने पर उन्होंने दुबई में शादी होने की बात कहकर स्थिति संभाली।

हालांकि, वर्ष 1983 में परिस्थितियां अचानक बदल गईं। सीमा पार करते समय भारतीय जासूस इनायत मसीहा की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में रविंद्र कौशिक की पहचान उजागर हो गई। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर मुल्तान की जेल में डाल दिया गया।जासूसी के आरोप में उन्हें पहले फांसी की सजा सुनाई गई, जिसे बाद में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया। जेल में लंबे समय तक खराब स्वास्थ्य और कठिन हालात झेलने के बाद वर्ष 2001 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

देश के लिए जीवन न्योछावर करने वाला यह सपूत गुमनामी में दुनिया से विदा हो गया। उनकी अद्वितीय सेवाओं के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें “ब्लैक टाइगर” की उपाधि दी गई थी, लेकिन उनकी वीरता और बलिदान को वह सार्वजनिक सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वे वास्तविक हकदार थे।

विभिन्‍न सोर्स से पता चलता है कि रविन्‍द्र कौशिक ने जेल से लिखे गए पत्रों का जिक्र करते हुए उनके भाई ने कहा था कि रविंद्र ने लिखा था “क्या एक बड़े देश के लिए बलिदान देने वालों को यही मिलता है?” परिजनों का आरोप है कि उनकी रिहाई के लिए भारत सरकार की ओर से कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए।

Related Articles

Back to top button