कर्तव्यपालन बनाम सुविधा : एसआईआर अभियान की प्रक्रिया दोषपूर्ण या उत्तरदायित्व से पलायन ?
Duty vs. Convenience: Is the SIR Campaign Process Faulty or an Abandonment of Responsibility?

Panchayat 24 (ग्रेटर नोएडा) : क्या सीमा पर खड़े सिपाही पर ही राष्ट्र के प्रति कर्तव्यपालन की सारी जिम्मेवारी है ? देश के आम नागरिक का राष्ट्र के प्रति कोई जिम्मेवारी नहीं होती ? यदि हर नागरिक पर राष्ट्र के प्रति कर्तव्यपालन की जिम्मेवारी होती है तो फिर व्यवहार में इसकी छवि धूमिल क्यों हो जाती है ? यह चर्चा इस लिए कर रहा हूं कि देश भर में राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रम विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण से जुड़े कर्मचारियों एवं अधिकारियों से जोड़कर कई तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं।
हाल ही में नोएडा औघोगिक विकास प्राधिकरण के भी दो अधिकारियों को मुख्य कार्यपालक अधिकारी लोकेश एम ने राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रम विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण कार्यक्रम में लापरवाही एवं अनुशासनहीता बरतने के चलते निलंबित कर दिया गया है। यह कार्रवाई सहायक निवाचक रजिस्ट्रार अधिकारी एवं तहसीलदार दाररी की रिपोर्ट पर की गई है। आरोप है कि उनका कार्य असंतोषजनक था जिससे शासकीय कार्य में बाधा उत्पन्न हुई है।
ऐसा पहली बार नहीं है जब गौतम बुद्ध नगर में एसआईआर से जुड़े अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कार्रवाई हुई है। पिछले एक महीने में जिला निर्वाचन अधिकारी मेधा रूपम के आदेश पर नोएडा विधानसभा में एसआईआर के कार्य में लापरवाही, उदासीनता एवं उच्च अधिकारियों के निर्देशों की अवहेलना करने वाले 11 बीएलओ व 6 सुपरवाइजर पर दादरी कोतवाली में, दादरी विधानसभा में 32 बीएलओ व 1 सुपरवाइजर पर ईकोटेक तृतीय कोतवाली में, और जेवर विधानसभा में 17 बीएलओ के विरूद्ध जेवर कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया गया है।
इतना ही नहीं, कर्तव्यपालन में शिथिलता बरतने वाले 181 आंगनबाड़ी कार्यकत्री के विरुद्ध सेवा समाप्ति के नोटिस तथा सभी सीडीपीओ को प्रतिकूल प्रविष्टि एवं विभागीय कार्रवाई के नोटिस जारी किए गए हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा बेसिक शिक्षा अधिकारी को 191 सहायक अध्यापक एवं 113 शिक्षामित्रों के विरुद्ध कठोर विभागीय कार्रवाई के निर्देश दिये है। वहीं, दो शिक्षिकाओं द्वारा त्यागपत्र दिए जाने की चर्चा है। आरोप है कि उन्हें एसआईआर के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
इस पूरे मामले में कई सवाल उठते हैं। क्या एसआईआर के लिए अधिकारियों एवं कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है ? क्या वाकई में पूरी प्रक्रिया इतनी दबावपूर्ण है कि कर्मचारी एवं अधिकारी आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं अथवा उनकी मौत हो रही है ? सवाल यह भी उठता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि एसआईआर की प्रक्रिया में जुटे कर्मचारी एवं अधिकारी सुविधाभोगी नौकरी करते हुए इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि एसआईआर के रूप में राष्ट्रहित जैसा कार्य कराए जाना इन्हेा दबाव एवं तनाव के समान प्रतीत हो रहा है ?
यदि ऐसा है तो यह स्थिति चिंताजनक है। एसआईआर प्रक्रिया में जुटे लोगों को यह विचार करना होगा कि क्या उन्हें बॉर्डर पर खड़े जवान, खेत में हल चलाते किसान, सड़क पर तैनात सिपाही और हर रोज मेहनत मजदूरी करके देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने वालों साधारण नागरिक से भी अधिक विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है ? यदि नहीं तो क्या इनका देश भक्ति का जज्बा महज दिखावा है ? ऐसे लोगों को, देश ने हमें क्या दिया से पहले हमने देश को क्या दिया के कथन पर, अवश्य विचार करना चाहिए।
वहीं, शासन एवं प्रशासन को भी यह समझना होगा कि किसी भी बड़े अभियान की सफलता के लिए कठोर अभियान के साथ संवेदनशील व्यवस्थापन भी आवश्यक होता है। कर्मचारियों को प्रशिक्षण, तकनीकी संसाधन और समयबद्ध सहयोग मुहैया कराना चाहिए, जिससे वे बिना किसी तनाव और शिकायत के काम कर सके। साथ ही यह भी स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि कर्तव्य से विमुखता किसी भी स्तर पर स्वकार्य नहीं है।


