मेरी मथुरा-वृंदावन यात्रा भाग एक : आस्था, आध्यात्म और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत संगम है मथुरा-वृंदावन
My Mathura-Vrindavan Journey Part One: Mathura-Vrindavan is a wonderful confluence of faith, spirituality and cultural heritage.

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 (मथुरा) : दिल्ली-एनसीआर के दमघोंटू वातावरण के बीच मेरी मथुर-वृंदावन की दो दिन की यात्रा निर्धारित थी। इस यात्रा को लेकर मन में विशेष उत्साह था। लगभग 125 किमी की यात्रा के बाद सूर्योदय के मनोहर और मनमोहक दृश्य ने यात्रा को सुखद अनुभवों से भर दिया। लंबे समय बाद उगते सूरज का ऐसा सुरम्य रूप देखने को मिला। यह यात्रा मेरे लिए धार्मिक यात्रा से अधिक एक स्टडी टूर थी, हालांकि धर्म और आध्यात्म ही इसके केंद्र में रहे।
यात्रा का पहला पड़ाव वृंदावन स्थित विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर था। मैं और मेरे साथी सुबह लगभग 9 बजे मंदिर पहुंचे, लेकिन वहां प्रातःकाल से ही भक्तों और दर्शनार्थियों की भारी भीड़ मौजूद थी। मंदिर तक जाने वाली तंग गलियां श्रद्धालुओं से खचाखच भरी थीं। भीड़ के कारण आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा था तथा गलियों में लगी दुकानें लोगों के लिए अतिरिक्त परेशानी उत्पन्न कर रही थीं। इसके बावजूद भक्तों में बिहारी जी के दर्शन की अद्भुत ललक देखने को मिली।
लोग अपनी क्षमता के अनुसार प्रसाद, फूलमाला और दान अर्पित कर रहे थे। ऐसा ही दृश्य ब्रज क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर देखने को मिला। यह स्पष्ट संकेत है कि धर्म और आध्यात्म मानव जीवन के मूल तत्व हैं। धर्म से आस्था का जन्म होता है और आस्था से श्रद्धा का भाव। यही श्रद्धा आगे चलकर एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था को जन्म देती है जिससे हजारों लोगों की जीविका चलती है।
बांके बिहारी मंदिर में लगातार बढ़ रही भक्तों की संख्या को देखते हुए यह स्पष्ट है कि वर्तमान मार्ग और मंदिर परिसर अपर्याप्त हैं। वाराणसी, महाकाल और अन्य प्रमुख मंदिरों की तरह यहां भी मंदिर कॉरिडोर और विस्तृत परिसर का निर्माण आवश्यक है। हालांकि कुछ स्थानीय लोग और गोस्वामी समाज इसके लिए असहमति जता रहे हैं, परंतु बांके बिहारी जी पूरे देश के सनातन भक्तों की आस्था का केंद्र हैं। ऐसे में निजी हितों और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बनाते हुए समाधान निकलना चाहिए।
वृंदावन स्थित प्रेम मंदिर अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए अद्वितीय है। यहां राधा-कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का अत्यंत आकर्षक चित्रण किया गया है। वृंदावन आने वाला हर कृष्णभक्त प्रेम मंदिर अवश्य जाता है। दिन में सफेद संगमरमर की चमक जहां अनोखी छवि प्रस्तुत करती है, वहीं शाम को रंगीन रोशनी में मंदिर का सौंदर्य और भी मनमोहक हो जाता है।
हालांकि वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर के रास्ते में बंदरों और कुछ स्वयंभू ‘दर्शन कराने वाले एजेंटों’ से सतर्क रहना आवश्यक है। दोनों ही ‘‘आंखों का काजल’’ चुराने में दक्ष माने जाते हैं। इसके बावजूद यहां की माटी में भक्ति की ऐसी अनोखी खुशबू रची-बसी है कि यहां आने वाले हर व्यक्ति को उसकी अनुभूति अवश्य होती है। यहां भक्त के लिए मंदिर दर्शन, पर्यटक के लिए ब्रज की संस्कृति और साधक के लिए आध्यात्म का मार्ग खुला है।



