एलजी गोलचक्कर को नॉलेज पार्क से जोड़ने वाली सड़क के निर्माण पर फंसा पेंच : ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, टी-सीरीज कंपनी और किसानों के बीच फंसी जमीन
There is a problem in the construction of the road connecting LG roundabout to Knowledge Park: Land is stuck between Greater Noida Authority, T-Series Company and farmers

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : हिन्दी फिल्म जगत में 1960 के दशक में प्रेम त्रिकोण पर बनी सुपरहिट फिल्म एक फूल दो माली की तर्ज पर ग्रेटर नोएडा में एक जमीन तीन मालिक जैसी किसी फिल्म की कहानी चल रही है। प्राइम लोकेशन पर स्थित लगभग 300 एकड़ जमीन के तीन चाहने वाले एक दूसरे के सामने आकर खड़े हो गए हैं। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण, टी-सीरीज कंपनी और किसानों जमीन पर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। तीनों ही स्वयं को जमीन का असली मालिक बता रहे हैं।
दरअसल, इस 300 एकड़ जमीन के दावेदारों की खींचतान में ग्रेटर नोएडा के विकास को ग्रहण लग रहा है। तीन मालिकों के बीच फंसी जमीन विवाद का केन्द्र बन गई है। इतना तय है जब तक जमीन का असली मालिक तय होगा, ग्रेटर नोएडा को जाम मुक्त शहर बनाने का सपना एक सपना ही बना रहेगा। ग्रेटर नोएडा स्थित परी चौक पर ग्रेटर नोएडा,-कासना सड़क मार्ग, नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे और सूरजपुर-परी चौक सड़क मार्ग से भारी संख्या में वाहन परी चौक पर पहुंचते हैं।
इसके अतिरिक्त 130 मीटर सड़क मार्ग और ग्रेटर नोएडा शहर का ट्रेफिक भी 105 मीटर सड़क मार्ग से होते हुए यहां आता है। इससे यहां भारी ट्रेफिक जाम की समस्या लगातार बनी रहती है। समस्या समाधान के लिए ट्रेफिक पुलिस और ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण की ओर से कई बार प्रयास किए गए, लेकिन सफलता नहीं मिली। प्राधिकरण के सीईओ के पद का कार्यभार संभालने के बाद एनजी रवि कुमार ने शहर की सड़कों की दशा सुधारने और सड़कों को जाम मुक्त बनाने की दिशा में तेजी से प्रयास किए हैं। वर्तमान में सड़कों का चौड़ीकरण एवं ग्रेटर नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट में नई सड़कों का निर्माण ऐसे ही प्रयासों का परिणाम हैं।
सीईओ ने शहर के सबसे चर्चित परी चौक चौराहे को जाम मुक्त बनाने के प्रयास शुरू किए। उन्होंने एलजी चौक से नॉलेज पार्क होते हुए परी चौक, नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे तथा हिन्डन पुश्ता को पार करके नोएडा के सेक्टर 146 एवं 147 को 60 मीटर सड़क मार्ग से जोड़ने की दिशा में प्रयास शुरू किए। इस 60 मीटर प्रस्तावित सड़क मार्ग को निमोली गांव की जमीन से होकर गुजरना है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण इस जमीन को प्राधिकरण के मास्टर प्लान का अहम हिस्सा बताता है। लगभग 1.5 किमी लंबी सड़क पर विवाद है। हालांकि इस सड़क का आधा हिस्सा ( सिंगल लेन) बना हुआ है।
बीती 26 फरवरी को टी-सीरीज कंपनी प्रबंधन ने एक प्रेस वार्ता कर इस जमीन पर साल 1987 से ही अपने मालिकाना हक का दावा किया था। कंपनी ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सामने स्पष्ट कर दिया कि बिना शर्त वह प्राधिकरण को जमीन नहीं देगी। प्राधिकरण द्वारा कंपनी को जमीन के बदले उतनी ही जमीन उसी क्षेत्र में उपलब्ध करानी होगी। सड़क बनाने के लिए केवल 10 हेक्टेयर जमीन का ही अधिग्रहण किया जाएगा। शेष जमीन पर कंपनी की विकास योजनाओं को प्राधिकरण को स्वीकृति देनी होगी। टी-सीरीज के अनुसार कंपनी के मालिक गुलनशन कुमार ने स्थानीय किसानों से इस जमीन को खरीदा था। यहां कंपनी की 15 इकाइयां संचालित थी। बाद में डीएफसीसी के लिए भूमि अधिग्रहण के बाद यह इकाइयां बंद हो गई। वर्तमान में भी जमीन पर गुलशन कुमार के परिजनों का ही अधिकार है।
वहीं, इस जमीन पर टी-सीरीज कंपनी के दावे के एक दिन बाद ही कुछ स्थानीय किसानों ने भी प्रेस वार्ता कर जमीन पर अपने मालिकाना हक का दावा किया है। किसानों के अनुसार देश की आजादी के पूर्व से ही इस जमीन पर उनके पूर्वजों का अधिकार था। हालांकि साल 1987 में हुई चकबंदी के दौरान राजस्व विभाग की गलती से यह जमीन कुछ बाहरी लोगों के नाम पर राजस्व दस्तावेजों में दर्ज हो गई। बाद में इन लोगों ने टी-सीरीज कंपनी को यह जमीन बेच दी। किसानों का दावा है कि गलत तरीके से रेलवे द्वारा अधिग्रहण की गई जमीन का मुआवजा भी टी-सीरीज कंपनी ने उठा लिया। इसके खिलाफ जिलाधिकारी के यहां वाद दायर किया गया। इसका फैसला किसानों के पक्ष में आया। बाद में मामला मेरठ कमिश्नरी पहुंचा जहां वाद खारिज हो गया। वर्तमान में मामला साल 2017 से इलाहबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है। किसान खुद को जमीन का असली मालिक बताते हैं।
टी-सीरीज कंपनी प्रबंधन और किसानों ने प्रेस वार्ता के दौरान एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए हैं। दोनों के दावों के बीच कई गंभीर सवाल भी पैदा होते हैं। यदि मामला हाईकोर्ट में लंबित है तो टी-सीरीज कंपनी किस आधार पर किसानों के दावे को खारिज कर रही है ? प्रेस वार्ता के दौरान टी-सीरीज कंपनी प्रबंधन ने सड़क बनाने के लिए जमीन देने की बात कहकर यह साबित करने का प्रयास किया है कि वह सड़क बनाने का विरोध नहीं कर रही है। दूसरी ओर सड़क बनाने के लिए अधिग्रहित जमीन के बदले जमीन और शेष जमीन को कंपनी की विकास योजना के लिए छोड़ने की शर्त लगाकर योजनाबद्ध तरीके से गेंद को पूरी तरह से प्राधिकरण के पाले में डाल दिया है।
सड़क निर्माण को लेकर प्राधिकरण पर दबाव है। कंपनी प्रबंधन ने अपनी शर्तों को पुख्ता करने के लिए कहा कि यदि प्राधिकरण उनकी बातों को मान लेता है तो यह कोई नई बात नहीं होगी। ग्रेटर नोएडा में ऐसा पूर्व में भी होता रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि प्राधिकरण इस समस्या से किस तरह से निपेटता है ? क्या हाईकोर्ट में किसानों के पक्ष में फैसला आएगा ? क्या टी-सीरीज कंपनी प्राधिकरण और कोर्ट में अपने मालिकाना हक को साबित कर पाएगी ? अभी इन सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में हैं।
जानकारों की माने तो पूर्व में प्राधिकरण में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ऐसे फैसले लिए गए हैं जिनका व्यक्ति विशेष अथवा संस्था को लाभ हुआ। ऐसे फैसले ही अब प्राधिकरण के लिए समस्या पैदा करते हैं। लोग इन फैसलों की दुहाई देकर एक बार फिर परिस्थितियों को अपने पक्ष में करना चाहते हैं। कुछ ऐसे ही पूवर्ती फैसलों को आधार बनाकर टी-सीरीज कंपनी प्रबंधन भी प्राधिकरण से अपनी शर्तों को मनवाना चाहता है। वहीं, वर्तमान में प्राधिकरण ऐसी शर्तों को अव्यवहारिक एवं नियम विरूद्ध मानता है।
वर्तमान हालात में प्राधिकरण ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी कीमत पर पूर्व की गलतियों को आधार बनाकर वर्तमान की समस्याओं का समाधान करके भविष्य के लिए बड़ी समस्याएं पैदा करना नहीं चाहता है। अधिकांश प्रकरणों में जमीन अधिग्रहण के मामले में प्राधिकरण का रवैया किसानों के प्रति सख्त रहा है। निमोली प्रकरण में एक पूंजीपति के सामने आकर खड़ा होने पर सभी लोगों की निगाहें प्राधिकरण पर टिक गई हैं। पूरे प्रकरण में लोगों के मन में एक अहम सवाल उठ रहा है, क्या प्राधिकरण एक पूंजीपति के सामने उस दमदार तरीके से खड़ा रह पाएगा जितनी मजबूती से एक किसान के मामले में दिखाई देता है ?