ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणस्पेशल स्टोरी

एक चर्चा ऐसी भी पार्ट-2 : आग लगाने का खेल बुरा होता है, पकड़े जाने पर अपना भी हाल बुरा होता है

A discussion like this too Part-2 : The game of setting fire is bad, if you get caught then your condition also becomes bad

Panchayat 24 : विकास परियोजनाओं ने पर्यावरण संरक्षण के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। भ्रष्‍टाचार ने सरकारी प्रयासों पर पलीता ही लगाया है। परिणामस्‍वरूप पर्यावरण संरक्षण के लिए साल 2010 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल (एनजीटी) की स्‍थाना हुई। कुछ लोगों के लिए एजीटी पर्यावरण संरक्षण का हथियार है। वहीं, कुछ लोगों के लिए आपदा में अवसर मुहैया कराने का यंत्र मात्र है।

पिछले कुछ महीने पूर्व दिल्‍ली एनसीआर में बेहद खराब वायु गुणवत्‍ता के चलते एनजीटी सख्‍त रूख अपनाया। ग्रेप सिस्‍टम लागू कर दिया गया। नियम कानूनों का सामाजिक हित में पालन कराने और इसकी निगरानी की हर व्‍यक्ति का दायित्‍व है। समाज में ऐसे लोगों के काम को प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए। लेकिन ग्रेटर नोएडा में कुछ और ही खेल चल रहा था। खुले में कूड़े में आग लगने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही थी। घटनाओं की वीडियो और खबरें लगातार अधिकारियों को भेजी जा रही थी।

प्राधिकरण की ओर ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने के काफी प्रयास किए जा रहे थे। सफलता नहीं मिल रही थी। ऐसी घटनाओं से वरिष्‍ठ अधिकारी नाराज हुए और निगरानी टीमों को फटकारा। निगरानी टीम ने क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी। एक दिन अचानक टीम को एक व्‍यक्ति ग्रेटर नोएडा वेस्‍ट क्षेत्र में कूड़े के ढेर में आग लगाता हुआ दिखाई दिया। फिर उसने आग बुझाने की वीडियो बनाकर प्राधिकरण को भेज दिया।

निगरानी टीम ने सामाजिक सरोकारी योद्धा को मौके पर ही दबो लिया। बताया जाता है कि इस काम के लिए पारितोषित के रूप में पिटाई भी की गई। जानकार बताते हैं कि खुले में कूड़े में आग लगाने की अधिकांश वीडियो इस सामाजिक सरोकारी योद्धा द्वारा ही प्राधिकरण के अधिकारियों को भेजी गई थी। ऐसा निजी हित में दबाव बनाने के लिए किया जा रहा था। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि आग लगाने का खेल बुरा होता हे, पकड़े जाने पर अपना हाल भी बुरा होता है।

Related Articles

Back to top button