स्पेशल स्टोरी

यूपी सरकार के आदेश पर मचा संग्राम : नाम ही तो पूछा है फिर हंगामा क्‍यों बरपा है ? हर पहलू को बयां करती इनसाइड स्‍टोरी

Battle over UP government's order: Only the name has been asked, then why the uproar? Inside story tells every aspect

Panchayat 24 : ( डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा ) देश की राजनीति में उत्‍तर प्रदेश सरकार द्वारा दुकानदारों एवं होटल और ढाबा संचालकों द्वारा अपने नाम की नेम प्‍लेट चस्‍पा करने के फैसले को लेकर हंगामा मचा हुआ है। कुछ लोग योगी आदित्‍यनाथ की सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले के कारण केन्‍द्र की नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व वाली एनडीए सरकार के अस्तित्‍व पर भी संकट के बादल मंडराने की बात कह रहे हैं। इस फैसले को लेकर जमकर सियासत हो रही है। कोई इसका समर्थन कर रहा है तो कोई इसका विरोध कर रहा है। समर्थकों और विरोधियों के अपने अपने तर्क है। इस स्‍टोरी में हम इस मामले के हर पहलू को छूने का प्रयास करेंगे।

क्‍या है पूरा मामला ?

दरअसल, सावन के महीने में कांवड़ यात्रा शुरू होती है। यह महीना सनातन धर्म के लोगों के लिए बहुत पवित्र माना जाता है। लोग अपनी आस्‍था के अनुसार विभिन्‍न स्‍थानों से कावड़ में पवित्र जल लाकर शिव रात्रि के दिन शिवालयों में चढ़ाते हैं। पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में लाखों श्रद्धालु हरिद्वार से गंगाजल लेकर जाते हैं। उत्‍तर प्रदेश में योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्‍व में भाजपा की सरकार बनने के बाद कांवड़ यात्रा को लेकर विशेष ध्‍यान दिया जा रहा है। हर साल श्रद्धालुओं और कांवडियों की सुविधाओं के लिए विशेष बंदोबस्‍त किए जाते हैं। चिकित्‍सा, सुरक्षा, विश्राम से लेकर आवागमन वाले मार्ग पर विशेष ध्‍यान दिया जाता है। कांवड़ रूट की सुरक्षा के लिए विशेष व्‍यवस्‍था की जाती है। कांवड़ की पविद्धता को बनाए रखने के लिए कांवड़ यात्रा के पूरे रूट पर पड़ने वाली मीट की दुकानों को भी बंद करा दिया जाता है। हेलीकॉप्‍टर से कांवडियों पर पुष्‍प वर्षा भी की जाती रही है। यह बात सही है कि जिस प्रकार की सहुलियतें योगी सरकार ने उत्‍तर प्रदेश में कांवडियों और श्रद्धालुओं के लिए की है, ऐसी पूर्व की सरकारों द्वारा कभी नहीं की गई। यहां तक की विरोधियों द्वारा योगी आदित्‍यनाथ की सरकार पर कांवडियों यात्रा के दौरान कांवडियों को सुविधा मुहैया कराए जाने के नाम पर हिन्‍दुत्‍व का एजेंडा चलाने का आरोप भी लगाया जाता रहा है।

इस साल सावन का महीना शुरू होने से पूर्व योगी आदित्‍यनाथ की सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि कांवड़ यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले हर व्‍यापारी, कारोबारी, होटल, दुकान एवं ढाबा संचालक को अपने संस्‍थान के बाहर अपना नाम स्‍पष्‍ट शब्‍दों में अंकित करना होगा। प्रशासन ने कड़ाई से इस निर्णय को लागू कराना शुरू कर दिया। देश की राजनीति में इस फैसले के बाद बवाल मच गया है। विरोधी दलों ने उत्‍तर प्रदेश सरकार के इस निर्णय को साम्‍प्रदायिक, विभाजनकारी एवं समाज को बांटने वाला करा देते हुए विरोध शुरू कर दिया। विरोध में कहा जा रहा है कि इस फैसले में धर्म विशेष के लोगों का आर्थिक बहिष्‍कार का उद्देश्‍य छिपा है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस, और देश के कई दूसरे राजनीतिक दल भी इस आदेश की आलोचना कर रहे हैं। यहां तक की केन्‍द्र की एनडीए सरकार में भाजपा के सहयोगी दल आरएलडी और जेडीयू इस आदेश की आलोचना कर रहे हैं। वहीं, इस फैसले का समर्थन करने वालों की भी कमी नहीं है।

फैसले का कानूनी पहलू

दरअसल, खाद्य एवं सुरक्षा मानक कानून को साल 2006 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा बनाया गया था। साल 2011 में इस कानून को लागू किया गया था। इस कानून के अनुसार हर कारोबारी को अपने संस्‍थान पर अपना नाम, संस्‍था का नाम और लाइसेंस नंबर लिखना आवश्‍यक होगा। ऐसे में उत्‍तर प्रदेश सरकार एवं भाजपा का कहना है कि यह फैसला धार्मिक आधार पर कतई नहीं लिया गया है। वहीं, भाजपा का कहना है कि राजनीति एवं वोटबैंक के लिए एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण के लिए हर संसद से पारित कानूनों का भी विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं।

फैसले का धार्मिक पहलू

दरअसल, सावन का महीना सनातन धर्म के लोगों के लिए बेहद पवित्र माना जाता है। कांवडि़यों को कांवड़ यात्रा पूर्ण होने तक कुछ बेहद कठोर और सख्‍त धार्मिक नियम, रीति रिवाजों और परंपराओं का पालन करना होता है। ऐसे में कांवडियों को कांवड़ यात्रा की पवित्रता एवं सुचिता को बनाए रखना बेहद आवश्‍यक होता है। पिछले कुछ सालों में ऐसी घटनाएं सामने आती रही है कि गलत तरीके से छूकर कांवड़ की पवित्रता भंग की गई। शुद्ध शाकाहारी एवं सनातन इष्‍ट एवं प्रतीकों के नाम के होटलों एवं ढाबों में कांवडि़यों के होटलों में खाने को भ्रष्‍ट किया गया अर्थात शाकाहारी भोजन में मांसाहार के अवशेष पाए गए। जांच में पता चला कि जिस होटल को शाकाहारी प्रदर्शित किया गया था, वहां पर मांसाहार भी परोसा जाता है। सरकार के फैसले के समर्थकों का तर्क है कि कांवड़ यात्रियों की आस्‍था का भी सम्‍मान होना चाहिए। कांवड़ की पवित्रता एवं सुचिता के लिए हर कांवडियों को पता होना चाहिए कि जिस होटल, ढाबे अथवा दुकान को वह शाकाहारी समझकर भोजन करने के लिए रूका है, वहां वास्‍तव में शाकाहार ही परोसा जाता है। इससे उनकी धार्मिक आस्‍था प्रभावित नहीं होगी।

फैसले का प्रशासनिक पहलू 

कई बार कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ एवं कांवडियों की पवित्रता को भंग किए जाने पर हंगामा हो जाता है। इससे पुलिस एवं प्रशासन को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार की घटनाओं पर स्‍थानीय प्रशासन पर आरोप लगता है कि समय रहते हुए इससे निपटने के लिए बंदोबस्‍त नहीं किए गए हैं।

नैतिक पहलू

योगी आदित्‍यनाथ के इस फैसले का समर्थन करने वाले लोगों का यह भी कहना है कि जब कोई व्‍यक्ति अपने नाम से कारोबार कर रहा है तो फिर अपनी पहचान छिपाने की जरूरत क्‍या है ? इसके अतिरिक्‍त ऐसे लोग सवाल भी उठाते हैं कि यदि कोई व्‍यक्ति अपनी पहचान छिपाकर कोई कारोबार कर रहा है तो समझिए कि उसकी नियत में खोट हैं। जब हर व्‍यक्ति को अपनी पहचान पर गर्व होता है तो फिर लोगों का नैतिक दायित्‍व भी है कि वह अपनी पहचान के बारे में लोगों को बताए।

कई प्रकार की आशंकाएं एवं घृणा का भाव

योगी सरकार के इस फैसले का समर्थन करने वाले पिछले कुछ समय में सोशल मीडिया पर वायरल हो रही वीडियो के कारण वर्ग विशेष के प्रति आशंकाओं से ग्रसित हैं। इन विडियों में खाद्य पदार्थों को भ्रष्‍ट एवं अपवित्र करके लोगों के सामने परोसा अथवा बेचा गया है। खाद्य पदार्थों में थूक कर, मूतकर अथवा झूठा करने की घटनाओं ने वर्ग विशेष के प्रति लोगों के मन में घृणा पैदा कर दी है। इस प्रकार की घटनाएं केवल आशंकाएं मात्र नहीं है। बाकायदा पुलिस ने ऐसे लोगों को गिरफ्तार करके कानूनी कार्रवाई भी की है। ऐसे लोगों के कुकर्मों का परिणाम पूरे वर्ग को भोगना पड़ता है।

सबसे अहम पहलू : राजनीतिक पहलू

उत्‍तर प्रदेश की योगी आदित्‍यनाथ सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा के दौरान संस्‍थान के मालिक के नाम की नेम प्‍लेट संस्‍थान के बाहर चस्‍पा करने के आदेश के लिए भले ही कानून का पालन करने की बात कही जा रही हो अथवा कांव‍ड यात्रियों की धार्मिक आस्‍था का सवाल बताया जा रहा हो। वास्‍तव में इस पूरे प्रकरण की जड़ में राजनीतिक पहलू है। दरअसल, भाजपा ने साल 2014 में उत्‍तर प्रदेश के राजनतिक परिदृश्‍य को हिन्‍दुत्‍व का कार्ड चलकर एकदम बदल दिया। अभी तक जातीय राजनीति में बंटी उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का दबदबा था। भाजपा ने हिन्‍दुत्‍व को धार देकर जातीयों में बंटे हिन्‍दु समाज को हिन्‍दुत्‍व के धागे में मजबूती से पिरो दिया। इसका भाजपा को लगातार चुनाव दर चुनाव लाभ भी हुआ। उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में तीसरे स्‍थान की पार्टी भाजपा ने साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव एवं 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्‍त जीत दर्ज की। इन चुनावों में उत्‍तर प्रदेश की राजनीति के अहम खिलाड़ी समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी हासिए पर चले गए।

उत्‍तर प्रदेश में विजय रथ पर सवार भारतीय जनता पार्टी को साल 2024 के लोकसभा चुनावों में तगड़ा झटका लगा। प्रदेश की 80 में से 80 सीटें जीतने का दावा करने वाले भाजपा महज 33 सीटों पर सिमट गई। वहीं, चुनाव दर चुनाव हार का सामना करने वाली मुख्‍य विपक्षी पार्टी समाज वादी पार्टी 37 सीटें प्राप्‍त करके प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। समाजवादी पार्टी ऐसा अपनी विशेष चुनावी रणनीति एवं नई सोशल इंजीनियरिंग के कारण ही कर सकी। समाजवादी पार्टी ने चुनावी रणनीति एवं MY ( मुस्लिम यादव) समीकरण के स्‍थान पर नई सोशल इंजीनियरिंग को इतनी सटीक ढंग से बुना कि भाजपा को इसकी कानों कान भनक तक नहीं लगी। समाजवादी पार्टी की नई सोशल इंजीनियरिंग अर्थात पीडीए ( पिछड़ा, दलित, अल्‍पसंख्‍यक) ने भाजपा के उस चुनावी कवच हिन्‍दुत्‍व को भी भेद दिया जिसको भाजपाई देश भर में, विशेष रूप से उत्‍तर प्रदेश में अभेद मान रहे थे। यहां तक की भाजपा के हिन्‍दुत्‍व का आधार अयोध्‍या में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।

लोकसभा चुनाव में उत्‍तर प्रदेश में भाजपा को मिली हार के बाद पार्टी के रणनीतिकार इस बात को स्‍वीकार कर रहे हैं कि समाजवादी पार्टी की नई सोशल इंजीनियरिंग पीडीए के सामने भाजपा का हिन्‍दुत्‍व कमजोर पड़ गया। समाजवादी पार्टी की नई सोशल इंजीनियरिंग को विपक्ष के जातीय जनगणना की मांग मजबूती मिली। इसके सहारे समाजवादी पार्टी हिन्‍दु समाज में 80 बनाम 20 का नेरेटिव बनाने में कामयाब रही। इसके सहारे समाजवादी पार्टी एवं अन्‍य विरोधी दलों ने हिन्‍दु समाज के 20 प्रतिशत अगड़ों को 80 प्रतिशत पिछड़ो, दलितों, अनुसूचित एवं अल्‍पसंख्‍यक वर्गों का विरोधी साबित कर दिया। इसके काररण बड़ी संख्‍या में पिछड़ों, दलितों और अनुसूचित समाज के मतदाताओं ने खुद को भाजपा के हिन्‍दुत्‍व से अलग कर लिया।

लोकसभा चुनाव में पीडीए की सफलता से समाजवादी पार्टी एवं भाजपा विरोधी दलों का मनोबल सातवे आसमान पर है। पीडीए भाजपा के हिन्‍दुत्‍व के विरोध में पीड़ीए समाजवादी पार्टी एवं भाजपा विरोधी दलों के हाथ एक दिव्‍यास्‍त्र लग गया है। आने वाले चुनावों में भाजपा के खिलाफ इसका प्रयोग किया जाएगा। वहीं, भाजपा के रणनीतिकार भी इस बात को भली भांति जानते हैं कि यदि पीडीए की जल्‍द काट नहीं तलाशी गई तो आने वाले चुनावों में भी भाजपा के सामने चुनौतियां कम होने वाली नहीं है।

ऐसे में भाजपा के हिन्‍दुत्‍व के फायर ब्रांड और उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के नाम एवं पहचान उजागर करने वाले आदेश को समाजवादी पार्टी की नई सोशल इंजीनियरिंग की काट के रूप में देखा जा रहा है। नई सोशल इंजीनियरिंग के सहारे समाजवादी पार्टी एवं विपक्षी दल जातीय जनगणना की मांग कर जातीय राजनीति को धार देने में लगे हैं। ऐसे में योगी आदित्‍यनाथ का आदेश हिन्‍दुत्‍व के एजेंडे को नए सिरे से धार देता हुआ दिख रहा है। यहीं कारण है कि जातीय जनगणना के सहारे जातीय राजनीति को आगे बढ़ाने वाले नेता और राजनीतिक दल इस निर्णय से बैचेन हो गए हैं। विरोधी जानते हैं कि योगी आदित्‍यनाथ धार्मिक आस्‍था की आड़ में कमजोर हुए हिन्‍दुत्‍व के कवच को मजबूत करने में लगे हुए हैं। यदि वह इस काम में कामयाब हो गए तो नई सोशल से जो जातीयां हिन्‍दुत्‍व को छोड़कर पीडीए पर विश्‍वास कर रही हैं, वह दोबारा से हिन्‍दुत्‍व की राहत पर लौट जाएंगी।

ऐसे में उत्‍तर प्रदेश सरकार के फैसले के बाद पूरे देश की मचे भूचाल के केन्‍द्र में जाति बनाम धर्म की राजनीति का नया क्‍लेवर है। सभी राजनीति दल अपने नफा और नुकसान के आधार पर इसका समर्थन और विरोध कर रहे हैं। उत्‍तर प्रदेश के बाद उत्‍तराखंड एवं मध्‍य प्रदेश में भी कुछ स्‍थानों पर इस तरह का आदेश लागू कर दिया गया है। हालांकि भाजपा के नए क्‍लेवर वाले हिन्‍दुत्‍ववादी एजेंडे और समाजवादी पार्टी की नई सोशल इंजीनियरिंग अर्थात पीडीए का आगामी उपचुनावों में जल्‍द ही आमना सामना होगा। इन चुनावों में पता चल जाएगा कि समाजवादी पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग पीडीए और भाजपा के नए हिन्‍दुत्‍व में कौन किस पर भारी पड़ेगा।

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