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छोटी छोटी घटनाओं में मोबलिंचिंग तलाशने वाले बंगाल में साधुओं को निर्वस्‍त्र कर पीटे जाने की घटना पर चुप क्‍यों ?

Why are those who seek mob lynching in small incidents silent on the incident of sadhus being stripped and beaten in Bengal?

Panchayat 24 : पश्चिम बंगाल के पुरूलिया में दो दिन पूर्व कुछ साधुओं के साथ निर्मम तरीके से निर्वस्‍त्र कर मारपीट करने का मामला प्रकाश में आया है। कुछ साधु संत मकर संक्रांति के मौके पर पुण्‍य स्‍नान के लिए पश्चिम बंगाल के गंगासागर मेले में जा रहे थे। भीड़ ने इन के ऊपर हमला कर दिया। इन साधुओं को निर्वस्‍त्र कर दौड़ा दौड़ाकर पीटा गया। आश्‍चर्य की बात यह है कि देश में छोटी छोटी घटनाओं में छोटी छोटी घटनाओं में मॉब लिंचिंग तलाशने वाले राजनीतिक दल और संगठन इस मामले में पूरी तरह चुप्‍पी साधे हुए हैं।  दरअसल ,पिछले कुछ समय में साधु संतों के साथ मारपीट की घटनाएं बढ़ी है। महाराष्‍ट्र के पाल घर में भीड़ द्वारा साधुओं की पीट पीटकर हत्‍या तक कर दी गई थी। इस घटना में तत्‍कालीन महराष्‍ट्र सरकार पर आरोप भी आरोप लगे थे। यह भी कहा गया कि पालघर में मारे गए साधु संत उस क्षेत्र में चल रहे धर्म परिवर्तन का विरोध करते थे। इस लिए उनकी हत्‍या कर दी गई।

देश में मॉब लिंचिंग को अलग अलग चश्‍मे से देखा जा रहा है

देश में होने वाली मारपीट की घटनाओं को दो तरह के चश्‍मों से देखा जा रहा है। यदि मारपीट की कोई घटना किसी अल्‍पसंख्‍यक वर्ग के साथ हुई है तो कुछ राजनीतिक दल और संगठन मामले की जांच से पूर्व ही मैदान में कूदकर छोटी छोटी घटनाओं में मॉब लिंचिंग का विपलाप शुरू कर देते हैं। ऐसा माहौल तैयार करने का प्रयास किया जाता है कि देश में अल्‍पसंख्‍यकों के ऊपर अत्‍याचार हो रहा है। अल्‍पसंख्‍यकों के रहने योग्‍य भारत नहीं रह गया है। वहीं, देश में ऐसी भी कई घटनाएं होती रही है जिनमें अल्‍पसंख्‍यक वर्ग के द्वारा बहुसंख्‍यक वर्गों के साथ मारपीट एवं हत्‍या तक कर दी गई है। इन घटनाओं पर देश के राजनीतिक दल और संगठन चुप्‍पी साध लेते हैं। इससे पता चलता है कि कुछ राजनीतिक दल, संगठन और व्‍यक्ति अल्‍पसंख्‍यक तुष्टिकरण के गंभीर रूप से शिकार हो चुके हैं। वहीं, कुछ लोग धार्मिक उन्‍माद के कारण मॉब लिंचिंग को एक हथियार की तरह बहुसंख्‍यक वर्ग को बदनाम करने के लिए करते हैं।

देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं किसी भी हिस्‍से में, किसी भी जाति अथवा धर्म के व्‍यक्ति के साथ होती है तो यह बेहद निंदनीय एवं दुर्भाग्‍यपूर्ण है। यह एक कानून अपराध है। किसी भी राजनीतिक दल, संगठन अथवा व्‍यक्ति को इसका राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। लेकिन देश में राजनीतिक लाभ हासिल करने और अल्‍पसंख्‍यकों का वोटबैंक साधने के लिए मोबलिंचिंग का राजनीतिककरण किया जा रहा है। परिणामस्‍वरूप दूसरी और बहुसंख्‍यक वर्गों की वोट हासिल करने के लिए भी कुछ राजनीकि दल मैदान में आ जाते हैं। मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर दोहरा नजरिया रखना बेहद निंदनीय है।

साधुओं पर हमले की घटना पर ममता बनर्जी से सवाल क्‍यों नहीं पूछ रहा है विपक्ष ?

बंगाल के पुरूलिया में साधुओं के साथ हुई हिंसा के मामले में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम और समाजवादी पार्टी तृणमूल कांग्रेस से सवाल क्‍यों नहीं पूछ रहे हैं ? भाजपा की ओर से इस मामले में बंगाल की ममता सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ममता बनर्जी को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। लेकिन देश में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को शोर मचाने वाली कांग्रेस, एआईएमआईएम, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी ममता बनर्जी के राज्‍य में साधुओं के साथ हई हिंसा को लेकर आपत्ति क्‍यों नहीं जता रहे रहीं हैं ? इन दलों के नेताओं ने चुप्‍पी क्‍यों साध रखी है ? यह समझ लिया जाएं कि इनकी नजर में मॉब लिंचिंग केवल एक वर्ग के साथ हुई मारपीट को कहा जाता है ? कानून व्‍यवस्‍था राज्‍य सरकार विषय है। बंगाल में साधुओं के साथ हुई हिंसा की जिम्‍मेवारी ममता बनर्जी को लेनी चाहिए। मामले में बिना भेदभाव के आरोपियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो ममता बनर्जी पर वोटबैंक के लिए अल्‍पसंख्‍यक तुष्टिकरण करने और हिन्‍दु विरोधी होने के आरोपों को सही मान लेना चाहिए ?

कहां से शुरू हुआ मोबलिंचिंग का राजनीतिकरण ?

दरअसल, साल, 2015 में 28 सितंबर की रात को दिल्‍ली एनसीआर के गौतम बुद्ध नगर जिले के बिसाहड़ा गांव में गौहत्‍या कर गौमांस पकाए जाने की खबर फैलने पर भीड़ ने अकलाख नामक व्‍यक्ति और सके बेटे की पिटाई कर दी थी। घटना में अकलाख की हत्‍या हो गई थी। वहीं, बेटे को गंभीर चोटें आई थी। इस घटना से  एक साल चार महीना पूर्व देश की सत्‍ता पर भाजपा ने कब्‍जा किया था। विरोधी दल लगातार भाजपा पर हमलावर थे। बिसाहड़ा में हुई अकलाख की हत्‍या के बाद पुलिस और प्रशासन अपना काम कर रहे थे। अपराधियों की गिरफ्तारी के लगातार प्रयास हो रहे थे। विरोधी दलों ने इस घटना के लिए केन्‍द्र सरकार को जिम्‍मेवार ठहराया, जबकि कानून व्‍यवस्‍था राज्‍य का विषय होता है।

अकलाख हत्‍याकाड़ में पहली बार माॅब लिंचिंग का राजनीतिक रूप में इस्‍तेमाल किया गया। राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के लिए मॉब लिंचिंग का सहारा लिया गया। सबसे पहले असदुद्दीन औवेसी बिसाहड़ा पहुंचकर अकलाख के परिजनों से मिले। फिर बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी के नेता भी बिसाहड़ा पहुंचे। राजनीति में नई नवेली आम आदमी पार्टी की ओर से अरविन्‍द केजरीवाल भी बिसाहड़ा पहुंचे। बिसाहड़ा की घटना में अल्‍पसंख्‍यक वोटों की लाभ हानि का गणित लगाकर राहुल गांधी भी बिसाहड़ा पहुंचे और पीडित परिवार से मिले। वहीं, दूसरी और भाजपा नेता संगीत सोम और कुछ हिंदुवादी संगठन भी बिसाहड़ा पहुंचे और पुलिस पर राज्‍य सरकार के दबाव में दबावपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाया। इस घटना के बाद देश में केन्‍द्र की सरकार को बदनाम करने के लिए ऐसा माहौल बना दिया गया कि देश का माहौल मुस्लिमों के रहने लायाक नहीं है। सिनेमा और साहित्‍य से लेकर दूसरे क्षेत्रों में तथाकथित द्धिजीवी वर्ग में एक एजेंडा चलाया गया। किसी को भारत में मु‍सलमान सुरक्षित नहीं दिखे, तो किसी ने अपने अवॉर्ड लौटाने शुरू कर दिए।

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