स्पेशल स्टोरी

राष्‍ट्रीय समस्‍या का रूप ले रहा जल भराव, आम से लेकर खास तक प्रभावित, केवल व्‍यवस्‍था के दोषारोपण से होगा समाधान ?

Waterlogging is becoming a national problem, common man as well as the elite are affected, will the solution be found only by blaming the system?

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 : बारिश की चंद बूंदें महीनों से विकास के दावों पर पानी फेर रहे हैं। शहर-शहर और गांव-गांव नालों से बाहर बहता पानी सड़कों पर जमा दिखाई दे रहा है। परिणामस्‍वरूप सड़कें जगह जगह क्षतिग्रस्‍त हो रही हैं। लोगों को आने जाने में भारी समस्‍याओं का सामना करना पड़ रहा है। जल भराव धीरे-धीरे राष्‍ट्रीय समस्‍या का रूप ले रहा है। पहले मुम्‍बई जैसे महानगरों में ही बारिश के मौसम में जल भराव की खबरें सुनने में आती थी। वर्तमान में यह समस्‍या तेजी से बढ़ती जा रही है। सभी छोटे बड़े कस्‍बों को बारिस के मौसम में जूझना पड़ रहा है। हाल ही में गुरूग्राम से आई तस्‍वीरें चिंता बढ़ाने वाली हैं।

गौतम बुद्ध नगर जिले की स्थिति भी दूसरे शहरों से अलग नहीं हैं। हालांकि यहां विकास का जिम्‍मा नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्‍सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरणों सहित जिले की एक मात्र दादरी नगरपालिका और बिलासपुर, दनकौर, रबूपुरा, जेवर और जहांगीरपुर सहित पांच नगर पंचायतों के कंधों पर है। नगरपालिका और नगरपंचायतें जल भराव से निपटने के लिए हर साल अपने नाकाफी प्रयास करते हैं। बाद में जल भराव की समस्‍या के लिए अपने सीमित संसाधनों का रोना रोकर अपना बचाव करने का प्रयास करती हैं। यह सभी पुराने नगर हैं। यहां कई समस्‍याओं के लिए इनकी बसावट के समय हुई खामियों को भी जिम्‍मेवार ठहराया जाता रहा है।

नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे आधुनिक शहरों में भी जल भराव की समस्‍या है। यह शहर पूर्ण नियोजन के बाद बसाए गए हैं। इनको बसाते समय भूत और भविष्‍य की समस्‍याओं को ध्‍यान में रखा गया है। इसके बावजूद इन आधुनिक शहरों की सोसायटियों में बारिश के मौसम में जल भराव, अण्‍डरपास और सड़कों पर जल भराव की तस्‍वीरें वि‍चलित करती हैं। कमोंबेश यहां रहने वाले लोगों को भी सामान्‍य शहरों में रहने वाले लोगों की तरह ही कहीं न कहीं इस समस्‍या का सामना करना पड़ता है।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जल भराव की समस्‍या के पीछे व्‍यवस्‍था की असफलता और भ्रष्‍टाचार है। जल भराव के कारण बिगड़ती व्‍यवस्‍था के लिए सरकार, शासन और प्रशासन को दोषी ठहराया जाता है। समाज में हर बिगड़ती व्‍यवस्‍था के लिए सरकार, शासन और प्रशासन को दोषारोपण की प्रवृति पैदा हो गई है। समस्‍या के सामाजिक पहलू पर विचार ही नहीं किया जाता है। नागरिक समस्‍या में अपनी भूमिका के आंकनल से बचना चाहता है अथवा निजी हित में ऐसा विचार करता है। यह प्रवृति समस्‍या के निष्‍पक्ष आंकलन में बाधा पैदा करती है। चंद लोग निजी हित के लिए इसका लाभ उठाते हैं। संभत: ऐसा व्‍यवस्‍था में बैठे भ्रष्‍ट अधिकारियों और वोटबैंक की राजनीति के कारण ही संभव है।

जल भराव की समस्‍या को आम नागरिक ने भाग्‍य मान लिया है। रास्‍ते में जल भराव, टूटी सड़क और सड़क पर अतिक्रमण को देखकर आम नागरिक मन ही मन दुखी जरूर होता होगा, लेकिन बदलाव की उम्‍मीद नहीं दिखाई देने के कारण आगे बढ़ जाना ही बेहतर विकल्‍प दिखाई देता है। सड़कों और नालों, नहरों, नदियों और पहाड़ों पर अतिक्रकण करने वाले लोग यह विचार करके चुप रहते हैं कि आखिर समस्‍या में उनकी अहम भूमिका है। अंतत: इससे उन्‍हें लाभ ही हो रहा है। कोई अधिकारी एवं संस्‍था उनके अतिक्रमण को नहीं हटा पा रहा है।

ऐसे में समाज में उनकी धमक और शासन और प्रशासन पर पकड़ का प्रदर्शन भी हो रहा है। इस बीच जन प्रतिनिधियों को अपना वोटबैंक भी साधना है। ऐसे में उनके ऊपर अतिक्रमणकर्ताओं और जनता के बीच सामंजस्‍य बिठाने का दबाव है। व्‍यवस्‍था में बैठे भ्रष्‍ट लोग दिल को तसल्‍ली देते हैं कि केवल दो महीनों की ही तो बात है फिर सबकुछ पहले जैसा सामान्‍य हो जाएगा। यदि नागरिक व्‍यवस्‍था में अपनी सकारात्‍मक भूमिका का निर्वहन नहीं करेगा तो शासन और प्रशासन चाहकर भी समस्‍या का समाधान नहीं दे सकते हैं। वहीं, भ्रष्‍ट अधिकारियों को अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने का सुअवसर मिल जाता है।

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