सावधान : ऑनलाइन खेल और पढ़ाई मासूमों को बना रही बीमार, कहीं आपका बच्चा भी तो नहीं हो रहा इस बीमारी का शिकार, जानिए कौनसी बीमारी बच्चों पर धीरे-धीरे डाल रही है प्रभाव ?
Be careful: Online games and studies are making innocent children sick, is your child also becoming a victim of this disease, know which disease is gradually affecting children?

Panchayat 24 : परंपरागत शिक्षा पद्धति और खेल कूद को पीछे छोड़कर समाज तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है। इससे शारारिक एवं मानसिक विकास की संभावनाएं अवश्य पैदा हुई हैं, लेकिन साथ ही नुकसान भी देखने में सामने आ रहे हैं। आजकल हर घर में मासूम बच्चों का अधिक समय मोबाइल और टीवी के साथ गुजर रहा है। यहां तक की स्कूली शिक्षा के लिए भी इनका प्रयोग बहुत अधिक बढ़ गया है। इससे बच्चे मानसिक रूप से तो बीमार हो रहे हैं। वहीं शारारिक रूप से भी इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। चिकित्सकों की माने तो टीवी, कम्प्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल के साथ अधिक समय बिताने वाले बच्चों में आंखों की बीमारी के लक्षण अधिक पाए जा रहे हैं।
क्या है पूरा मामला ?
नेत्र रोग चिकित्सकों की माने तो बच्चों को जिस चीज से दूर रखा जाता है, उसके प्रति बच्चे के मन में जिज्ञासा बढ़ जाती है। बचपन में बच्चे इन्हें किसी खिलौने से अधिक कुछ नहीं समझते है। अधिकांश घरों में बच्चों की जिद के कारण परिजन उन्हें मोबाइल और अन्य गेजेट खेलने के लिए देते हैं। धीरे-धीरे बच्चे इनके आदि हो जाते हैं। तीन साल पहले दुनिया भर में कोरोना के रूप में आई महामारी के कारण वर्क फ्रॉम होम,ऑनलाइन और मनोरंजन, खेल तथा पढ़ाई ने घर के बड़े और छोटे सदस्य को मोबाइल और लैपटॉप पर आश्रित कर दिया। बच्चों के जीवन में बहुत अधिक मोबाइल, लैपटॉप और कम्प्यूटर के प्रयोग ने मासूम बच्चों में दूर दृष्टि दोष की वजह से होने वाली बीमारी मायोपिया के मामले सामने आने लगे हैं। जानते हैं मायोपिया के लक्षणों के बारे में।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?
नेत्र रोग विशेषज्ञों के अनुसार मायोपिया बीमारी के कारण बच्चों में निकट दृष्टि सही होती है, लेकिन दूर की वस्तुएं बच्चों को देखने में परेशानी होती है। जब बच्चों को मायोपिया होता है, तब उनकी आंखों की पुतली का आकार बढ़ने से इमेज रेटिना की जगह थोड़ा आगे बनता है। इससे उन्हें दूर की चीजें देखने में परेशानी होती है। स्कूल में बार्ड पर लिखे अक्षर पढ़ने में भी परेशानी होती है। इस बीमारी से पीडित बच्चों की आंखों में दर्द, भेंगापन, तनाव, धुंधलाहट, पानी निकलने, शुष्क होने, सूजन और लालिमा जैसी शिकायतें होती हैं। यहां तक कि जो बच्चे चश्मा लगाते हैं, उनको भी धुंधला बातें सामने आ रही हैं। अथवा टीवी, मोबाइल या लैपटॉप देखते समय असामान्य आचरण करते हैं, जैसे आंखों को बड़ा खोलकर देखना, आंखों को सिकुडकर देखना या फिर आंखों को मींचकर देखना। यदि ऐसे लक्षण बच्चे में दिखाई दे तो तुरन्त बच्चे को नेत्र रोग चिकित्सक को दिखाए।
कितना खतरनाक है मायोपिया?
जी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार मायोपिया बचपन में 5 साल की उम्र से शुरू हो जाता है। यह बीमारी 18 साल की उम्र तक बढ़ती है। एम्स की एक स्टडी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 5 से 15 साल की उम्र के 6 में से 1 बच्चा मायोपिया से पीडित है। जिन्हें यह बीमारी बचपन में लग जाती है उन्हें आगे चलकर मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, रेटिनल डिटेचमेंट जैसी बीमारिया होने का खतरा बढ़ जाता है।
ऐसे करें बचाव
विशेषज्ञाों के अनुसार घर में बच्चे हो या बड़े, लगातार मोबाइल या लैपटॉप पर काम नहीं करना चाहिए। लगातार स्क्रीन पर नजर गड़ाए रखने से बच्चों की आंखों में दोष पैदा होता है। ऐसे में जितना हो सके बच्चों को इलैक्ट्रानिक गैजेट- टीवी, मोबाइल, लैपटॉप अथवा कम्प्यूटर से दूर रखें। बच्चों को शारारिक परिश्रम वाले खेल खलने दें। यदि ऐसा संभव नहीं हो तो घर के अंदर ही बच्चों को लूडो, चैस या केरम खिलाएं। बच्चों को ज्ञानवर्धक बातें बताएं। बच्चों को सामाजिक घटनाक्रम के बारे में बाएं। टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर और मोबाइल पर 20 मिनट काम करने के दौरान 30 सेकंड आंखों को आराम दें। बंद करके उनको खोलें, इससे खुजलाहट एवं शुष्कता नहीं होगी।
पलकें झपकाना नहीं भूलें, आंखों को घुमाने की एक्सरसाइज करें। बच्चों की ऑनलाइन कक्षा का स्क्रीन टाइम सीमित हो।स्क्रीन से पर्याप्त दूरी बनाकर रखें, जो आसानी से दिखे। हो सके तो लैपटॉप को टीवी स्क्रीन से जोड़कर काम करें। बच्चों की आंखों के फोन अत्यधिक करीब न हो। इससे आंख की पेशियों पर दबाव पड़ता है। कंप्यूटर स्क्रीन और आंखों के बीच की दूरी कम से कम 18 से 24 इंच हो। हरी सब्जियां, आंवला, बादाम के पोषक भोजन पर ध्यान दें।