गौतम बुद्ध नगर में जाति की राजनीति के बीज 2009 में बोए गए, आज फसल लहलहा रही है, निशाने पर रहे डॉ महेश शर्मा और भाजपा, जानिए कैसे कैसे रंग बदले जाति की राजनीति ने ?
The seeds of caste politics were sown in Gautam Buddha Nagar in 2014, today the crop is flourishing, Dr. Mahesh Sharma and BJP are on target, know how caste politics changed its colours?
डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : गौतम बुद्ध नगर जिले की राजनीति में भूचाल मचा हुआ है। इसके केन्द्र में है नोएडा की एक हाई प्रोफाईल हाऊसिंग सोसायटी में श्रीकांत त्यागी एवं एक महिला के बीच का विवाद है। इस विवाद के रंग इतनी तेजी से बदले कि इसकी धमक लखनऊ तक सुनाई दी। लखनऊ का ताप बढ़ा तो तपिश पुलिस कमिश्नर सहित पूरी कमिश्नरेट व्यवस्था पर भी दिखाई दी। घटनाक्रम इतनी तेजी से बदला कि पहले पूरे मामले के केन्द्र में पुलिस व्यवस्था रही। बाद में मामला पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह और स्थानीय सांसद के बीच हो गया। मामले ने एक बार फिर पलटी खाई और पूरा प्रकरण स्थानीय सांसद डॉ महेश शर्मा बनाम त्यागी समाज हो गया। इसके बाद पूरे घटनाक्रम का राजनीतिकरण शुरू हो गया।
श्रीकांत त्यागी प्रकरण का राजनीतिकरण शुरू
भाजपा में डॉ महेश शर्मा विरोधी गुट श्रीकांत त्यागी प्रकराण की आड़ में डॉ महेश शर्मा पर निशाना साध रहा है, वहीं विरोधी दल इस मामले को त्यागी समाज के मान सम्मान का सवाल बनाकर भाजपा को घेरना चाहती है। यदि त्यागी समाज डॉ महेश शर्मा और भाजपा के बहिष्कार का फैसला लेता है तो इससे भाजपा को नुकसान होगा। बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग एक दर्जन से भी अधिक जिलों में त्यागी समाज राजनीति पर अच्छी खासा प्रभाव रखता है। यह समाज भाजपा का एकमुश्त वोटबैंक माना जाता है। इन जिलों के राजनीतिक समीकरणों को बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है। ब्राह्मण समाज भी त्यागी समाज के समर्थन में आ जाता है। ऐसे में नोएडा के भंगेल में होने वाली त्यागी समाज की महापंचायत को लेकर डॉ महेश शर्मा विरोधी लॉबी और भाजपा विरोधी राजनीतिक दल अपने लिए अवसर तलाशने में जुटें हैं। दरअसल, भाजपा के अन्दर डॉ महेश शर्मा विरोधी लॉबी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाजपा विरोधी दल सीधे सीधे राजनीति में डॉ महेश शर्मा और भाजपा से पार नहीं पा सके हैं। ऐसे में भंगेल में प्रस्तावित त्यागी समाज की पंचायत से उन्हें उम्मीद है कि इस बार वह अपने विरोधियों को परास्त करने की संजीवनी मिल जाएगी।
साल 2009 लोकसभा चुनाव से पूर्व ही बोया जा चुका था जिले में जातिवाद का बीज
गौतम बुद्ध नगर की राजनीति में जातिवाद का बीज असल में साल 2009 में ही बोया जा चुका था। इसके पहले शिकार हुए थे वर्तमान में स्थानीय सांसद डॉ महेश शर्मा। दरअसल, परिसीमन अधिनियम 2008 के अन्तर्गत खुर्जा लोकसभा को गौतम बुद्ध नगर लोकसभा का नाम दिया गया। सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ कि यहां पर अभी तक एससी एसटी वर्ग के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ते थे। नए परिसीमन अधिनियम के बाद साल 2009 में होने वाले लोकसभा चुनाव में गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट पर आरक्षण समाप्त हो गया। इस बार के चुनाव में मोदी लहर थी। जनता की निगाहें इस बात पर टिकी हुई थी कि पार्टी किसे टिकट देती है।
गुर्जर, ठाकुर, वैश्य, ब्राह्मण और कई अन्य समाज के लोगों ने भाजपा से टिकट पाने का प्रयास किया। लेकिन भाजपा ने 2009 के लोकसभा चुनाव के लिए नोएडा के कैलाश अस्पताल के मालिक डॉ महेश शर्मा पर भरोसा जताया और उन्हें टिकट दिया। पार्टी के कुछ लोगों को यह बात रास नहीं आई। जानकारों की माने तो अन्दरखाने पार्टी नेतृत्व के इस निर्णय का विरोध किया। न केवल पार्टी प्रत्याशी का विरोध किया बल्कि तत्तकालीन सजातीय उम्मीदवार सुरेन्द्र सिंह नागर के पक्ष में प्रचार किया गया। सुरेन्द्र सिंह नागर के पक्ष में मतदान भी किया गया। परिणामस्वरूप अपने ही पार्टी के लोगों द्वारा जातीय आधार पर किए गए विरोध के चलते डॉ महेश शर्मा सुरेन्द्र सिंह नागर से चुनाव हार गए। हालांकि साल 2012 में नए परिसीमन अधिनियम के बाद अस्तित्व में आई नोएडा विधानसभा के चुनाव में डॉ महेश शर्मा भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए।
साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में महेश शर्मा की उम्मीदवारी का विरोध जातीय आधार पर
साल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व माहौल पूरी तरह से मोदी मय हो चुका था। भाजपा की पूरे देश में लहर थी। वहीं जिले में मजबूत उपस्थित दर्ज करने वाली बसपा की हालत भी कमजोर हो चुकी थी। तत्कालीन सांसद सुरेन्द्र सिंह नागर का भी बसपा से मोह भंग हो चुका था। इस बार फिर जातीय आधार पर गुर्जर, ठाकुर, ब्राह्मण और वैश्य समाज सहित कई समाज के लोगों ने भाजपा का टिकट पाने का प्रयास किया। लेकिन इस बार भी बाजी तत्कालीन नोएडा विधायक डॉ महेश शर्मा के हाथ लगी। पार्टी के अन्दर डॉ महेश शर्मा का फिर जातीय आधार पर विरोध हुआ। कुछ लोगों ने मुखर होकर भाजपा के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि गौतम बुद्ध नगर गुर्जर बाहुल्य सीट है, ऐसे में भाजपा का टिकट गुर्जर प्रत्याशी को को मिलना चाहिए। लेकिन पार्टी जानती थी कि नोएडा पर बाहरी और शहरी मतदाता खासा प्रभाव रखते हैं और इनके बीच डॉ महेश शर्मा काफी लोकप्रिया है। ऐसी ही रिपोर्ट पार्टी संगठन तथा आरएसएस से पार्टी नेतृत्व के शीर्ष नेतृत्व को मिली। इसी आधार पर डॉ महेश शर्मा को भाजपा ने पार्टी उम्मीदवार बनाया।
यह बात पार्टी के अन्दर डॉ महेश शर्मा के खिलाफ बन चुकी एक लॉबी को रास नहीं आई। जमकर डॉ महेश शर्मा का विरोध हुआ। लेकिन इस बार मोदी लहर में डॉ महेश शर्मा ने बड़ी जीत हासिल की। इसका चुनाव के बाद डॉ महेश शर्मा का कद पार्टी में काफी बढ़ गया। उन्हें केन्द्र में दो दो मंत्रालयों का मंत्री बनाया गया। अपने राजनीतिक प्रभाव का डॉ महेश शर्मा ने प्रयोग किया और जिले में अपने विरोधियों को किनारे लगा दिया। डॉ महेश शर्मा लॉबी विरोधी लॉबी को एक बार फिर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मौका मिला। जानकारों की माने तो पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने डॉ महेश शर्मा विरोधी लॉबी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि डॉ महेश शर्मा गुर्जर तथा ठाकुर विरोधी हैं। इस बार पार्टी का टिकट किसी गुर्जर अथवा ठाकुर उम्मीदवार को दिया जाए। हालांकि इस चुनाव में कई बड़े गुर्जर और ठाकुर समाज के कई नेताओं को डॉ महेश शर्मा ने भाजपा में शामिल कराकर गुर्जर तथा ठाकुर विरोधी होने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। इनमें जेवर से बसपा के कद्दावर नेता, कई बार के विधायक और मंत्री वेदाराम सिंह भाटी का नाम प्रमुख है। पार्टी ने एक बार फिर डॉ महेश शर्मा पर अपना भरोसा जताया। डॉ महेश शर्मा इस विश्वास पर खरे भी उतरे और एक बड़ी जीत दर्ज की।
श्रीकांत त्यागी प्रकरण से 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी
गौतम बुद्ध नगर की वर्तमान की भाजपा और 2009 वाली भाजपा में बड़ा बदलाव आ चुका है। कभी भाजपा के विरूद्ध चुनाव लड़ने वाले सुरेन्द्र सिंह नागर भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं। सपा के कद्दावर नेता नरेन्द्र सिंह भाटी भाजपा के टिकट पर एमएलसी का चुनाव जीत चुके हैं। राहुल गांधी के करीबी रहे कांग्रेसी नेता ठाकुर धीरेन्द्र सिंह लगातार दो बार से जेवर सीट पर भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। ऐसे में जिले में भाजपा का कोई विपक्ष नहीं है। लेकिन जिस तरह दूसरे दलों से भाजपा में नेताओं का आगमन हुआ है, उससे चुनाव दर चुनाव भाजपा में गुटबंदी मजबूत हुई है। इससे डॉ महेश शर्मा विरोधी लॉबी को ऑक्सीजन मिली है। जानकारों की माने तो अभी तक जिले में डॉ महेश शर्मा और भाजपा को मुद्दों के आधार पर घेरने में नाकाम रहे विरोधी श्रीकांत त्यागी प्रकरण की आड़ में 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों को दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। यदि त्यागी समाज डॉ महेश शर्मा और भाजपा का बहिष्कार करने का निर्णय लेता है तो इससे डॉ महेश शर्मा को कम, भाजपा को अधिक नुकसान हो सकता है। अर्थात विरोधी डॉ महेश शर्मा और भाजपा को घेरने के लिए एक बार फिर जातीय कार्ड खेलना चाहते हैं।
बड़ा सवाल : श्रीकांत त्यागी प्रकरण में त्यागी समाज सांसद के प्रति उग्र, विधायक के प्रति नरम क्यों ?
श्रीकांत त्यागी प्रकरण में त्यागी समाज की नाराजगी इस बात को लेकर है कि जिस तरह की पुलिस कार्रवाई श्रीकांत त्यागी और उसके परिवार के खिलाफ हुई उसके लिए स्थानीय सांसद डॉ महेश शर्मा जिम्मेवार है। उन्होंने ही पुलिस और प्रशासन पर इसके लिए दबाव डाला है। लेकिन त्यागी समाज को यह भी ध्यान देना होगा कि किसी भी नेता ने पूरे प्रकरण में त्यागी समाज के लिए कोई बात नहीं कही है। महिला के खिलाफ हुई अभद्रता के लिए आरोपी पर कार्रवाई की बात कही गई। पूरे प्रकरण में यह बात भी ध्यान देने की है कि जिस समय यह प्रकरण हुआ डॉ महेश शर्मा नोएडा में ही थे।स्थानीय सांसद होने के नाते सूचना मिलने पर वह ग्रैंड ओमेक्स हाऊसिंग सोसायटी पहुंचे। मोके पर जो हालात थे उसमें पुलिस और स्थानीय सांसद आमने सामने आ गए।
सूचना के अनुसार उस समय स्थानीय सांसद पंकज सिंह शहर से बाहर थे। सूचना मिलते ही वह घटना वाली रात को ही ग्रेंड ओमेक्स सोसायटी पहुंचे। उन्होंने भी स्थानीय सांसद डॉ महेश शर्मा के अंदाज में पुलिस एवं प्रशासन से महिला से अभद्रता करने वाले आरोपी श्रीकांत त्यागी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और जल्द से जल्द किसी भी कीमत पर उसकी गिरफ्तारी की मांग की। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब श्रीकांत त्यागी के खिलाफ स्थानीय सांसद और स्थानीय विधायक, दोनों ने एक ही स्वर में कार्रवाई की मांग की थी तो त्यागी समाज सलेक्टिव एप्रोच के साथ स्थानीय सांसद के खिलाफ उग्र और स्थानीय विधायक के खिलाफ नरम क्यों हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि श्रीकांत त्यागी प्रकरण में त्यागी समाज डॉ महेश शर्मा और भाजपा विरोधियों के लिए राजनीतिक हथियार बनने जा रहा है ?