राष्ट्रीय

भाजपा और आरएसएस के मतभेदों को मिला बल, संघ प्रमुख ने इशारों में मणिपुर मामले पर भाजपा को दिखाया आईना ?

Differences between BJP and RSS have gained strength, Sangh chief indirectly showed the mirror to BJP on Manipur issue?

Panchayat 24 : लोकसभा चुनाव के बीच यह खबर खूब चर्चा का विषय बनी कि भाजपा और आरएसएस के बीच मतभेद उभरे हैं। मीडिया में इस पर खूब चर्चा होती रही। हालांकि लोकसभा चुनाव संपन्‍न हो चुके हैं। केन्‍द्र में एनडीए की सरकार बन चुकी है। प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्‍द्र मोदी तीसरी बार शपथ ग्रहण कर चुके हैं। प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण के तुरन्‍त बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान ने एक बार फिर से राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी तेज कर दी है। उन्‍होंने मणिपुर मामले पर बड़ा बयान दिया है। यह बयान भाजपा के संदर्भ में बहुत असहज है। माना जा रहा है कि मोहन भागवत ने बयान देकर भाजपा को आइना दिखाने का काम किया है।

क्‍या है पूरा मामला ?

दरअसल, नागपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने चुनावी बयानबाजी पर कठोर टिप्‍पणी करते हुए केन्‍द्र सरकार मणिपुर मामले का शीघ्र समाधान करने की बात कही है। उन्‍होंने कहा है कि मणिपु‍र पिछले एक साल से शांति की राह देख रहा है। इस पर गंभीरता एवं प्राथमिकता से विचार करने की आवश्‍यकता है। मोहन भागवत ने यह बात संघ प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कही। उन्‍होंने समुदायों की बीच एकता पर जोर देते हुए कहा कि अलग अलग स्‍थानों पर समाजों के बीच चल रहा संघर्ष अच्‍छा नहीं है।

मोहन भागवत ने कहा कि पिछले दस साल पूर्व मणिपुर पूरी तरह शांत था। प्रतीत हो रहा था कि बंदूक वाली संस्‍कृति मणिपुर से समाप्‍त हो गई है। लेकिन राज्‍य में अचानक हिंसा बढ़ गई है। हिंसा भड़की हो अथवा भड़काई गई हो, अंतत: जल तो मणिपुर ही रहा है। लोगों को इस हिंसा की आग में जलना पड़ रहा है। मोहन भागवत ने कहा कि मणिपुर हिंसा को शांत करने के लिए चुनावी बयानबाजी से आगे बढ़ने की आवश्‍यकता है। समस्‍याओं पर ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है।

कौन है अच्‍छा सेवक ?

इस बीच मोहन भागवत ने अच्‍छे सेवक के बारे में भी बताया। उन्‍होंने उपदेश देते हुए कहा कि जो अपने काम को लेकर अहंकार न पाले, वहीं अच्‍छा सेवक होता है। हर कोई अपना काम करता है। लेकिन काम करते समय मर्यादा में रहने की जरूरत होती है। काम करने से किसी को चोट न पहुंचे। मर्यादा ही अपनी संस्‍कृति और धर्म है। जो इस मर्यादा का पालन करता है, वह कर्म करता है। कर्मों में लिप्‍त नहीं होता। उसमे अहंकार नहींं आता। मैंने किया है। उन्‍होंने कहा कि शक्ति के साथ शील संपन्न बनो। शील अपने धर्म और संस्कृति से आता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अप्रत्‍यक्ष रूप से मोहन भागवत ने नई सरकार के गठन के बाद सरकार में बैठे भाजपा के बड़े नेताओं के लिए यह बातें कही हैं।

लोकतंत्र में विपक्ष को बताया अहम

मोहन भागवत ने लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में विपक्ष की भूमिका को भी अहम बताया। उन्‍होंने कहा कि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है। सहचित्त संसद में किसी भी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आये इसलिए ऐसी व्यवस्था है। चुनाव प्रचार में जिस प्रकार एक दूसरे को लताड़ना, तकनीकी का दुरुपयोग, असत्य प्रसारित करना ठीक नहीं। विरोधी की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए। *चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा।

भाजपा और आरएसएस के बीच मतभेद का सवाल कहां से आया ?

दरअसल, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा चुनाव के दौरान एक राष्‍ट्रीय अंग्रेजी समाचार पत्र  को दिए गए साक्षात्‍कार के दौरान भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष ने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय और मौजूदा समय में काफी कुछ बदल चुका है। उन्‍होंने कहा कि पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे। हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं। उन्‍होंने कहा था कि पार्टी बड़ी हो गई है। सभी को अपने-अपने कर्तव्य के साथ भूमिकाएं मिल चुकी हैं। आरएसएस एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है। भाजपा एक राजनीतिक संगठन हैं। यह जरूरत का सवाल नहीं है। यह एक वैचारिक मोर्चा है। वह वैचारिक रूप से अपना काम करते हैं और हम अपना। हम अपने मामलों का अपने तीरकों से समाधान तलाशते हें। राजनीतिक दलों को यही करना चाहिए। बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान इस बात की खूब चर्चा रही कि भाजपा आरएसएस की अनदेखी कर रही है। वहीं, आरएसएस की भी चुनाव के दौरान सक्रिय भूमिका नहीं दिखी। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में उत्‍तर प्रदेश में पार्टी की हार के लिए आरएसएस की सक्रिय भूमिका न होना भी बड़ी वजह रहा है।

Related Articles

Back to top button