शारदा विश्वविद्यालय में छात्रा द्वारा आत्महत्या का मामला शिक्षण संस्थान के माहौल और छात्र-शिक्षक संबंधों की कहानी है
The case of suicide by a student in Sharda University is a story of the atmosphere of the educational institution and student-teacher relationships

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : हाल ही में शारदा विश्वविद्यालय में बीडीएस की छात्रा ज्योति शर्मा की आत्महत्या ने शिक्षा जगत गहरे सदमे में है। इस हृदयविदारक घटना ने न केवल संस्थान के माहौल पर सवाल उठाए हैं, बल्कि छात्रों की मानसिक स्थिति और भविष्य में विश्वविद्यालय के प्रति विश्वास को लेकर भी चिंताएं व्यक्त की हैं। यह चिंताएं बहुत हद तक जायज भी हैं। छात्र इस घटना को स्वंय से जोड़कर विश्वविद्यालय प्रबंधन की भूमिका के बारे में भी विचार कर रहे हैं। इस घटना के बाद विश्वविद्यालय की सार्वजनिक छवि पर भी प्रभाव पड़ना तय है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले का स्वत: संज्ञान लिए जाने के बाद पीडित परिजनों और न्याय की मांग कर रहे छात्र और सामाजिक संगठनों के बीच मामले में न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए जांच के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता अपूर्णा भट्ट को न्याय मित्र नियुक्त किया है। न्यायायल की एक टीम जांच करने ग्रेटर नोएडा शारदा विश्वविद्यालय पहुंची और मामले से जुड़ी जानकारियां एवं साक्ष्य एकत्रित किए। अधिकारियों से बातचीत कर प्रकरण के बारे में बातचीत की। यह टीम घटना के लिए जिम्मेवार परिस्थितियों के पीछे विश्वविद्यालय की भूमिका की भी जांच करेगी। जल्द ही यह टीम जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी।
शिक्षण संस्था का माहौल छात्र और शिक्षकों के बीच विश्वासपूर्ण संबंधों पर निर्भर करता है। शारदा विश्वविद्यालय में छात्रा द्वारा आत्महत्या की घटना में शिक्षकों की भूमिका पर उठे गंभीर सवालों के बाद छात्रों के मन में छात्रों के प्रति कई तरह का संदेह उत्पन्न होना भी स्वभाविक है। छात्रों के मन में कई तरह के सवाल कोतुहल मचाएंगे कि क्या उनके शिक्षक उनकी मदद करेंगे अथवा किसी तरह का उनके ऊपर अनावश्यक दबाव डालेंगे ? ऐसी परिथितियां छात्र और शिक्षकों के बीच पैदा हो रहे तनाव को और अधिक बढ़ाएंगी। इससे छात्र और शिक्षकों के बीच विश्वास घटेगा। परिणामस्वरूप दोनों के बीच दूरियां बढ़ेंगी और शिक्षा का स्तर भी प्रभावित होगा।
वर्तमान में शिक्षण संस्थानों में निजी सुरक्षाकर्मी रखने का चलन शारदा विश्वविद्यालय में भी देखा जा सकता है। कई शिक्षण संस्थान तो बाउंसरों की भी तैनाती रखते हैं। सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर इतने तामझाम के बावजूद इस घटना के बाद छात्र अपनी सुरक्षा को लेकर सवाल उठा रहे हैं। सवाल उठता है कि इतने बड़े स्तर पर निजी सुरक्षा किसके लिए हैं ? ऐसे सवाल विश्वविद्यालय प्रबंधन के सामने छात्रों की भावनात्मक सुरक्षा और उनके विश्वास को बनाए रखना और पारदर्शी तरीके से जवाब तलाशने की चुनौती पेश करते हैं।
छात्रा द्वारा आत्महत्या का प्रकरण सीधे तौर पर प्रशासन से जुड़ा हुआ नहीं है। फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रशासन को ग्रेटर नोएडा में स्थित स्कूल, कॉलेजों एवं विश्वविद्यायों में घट रही घटनाओं और उनके पीछे के माहौल के बारे में कुछ भी पता नहीं हैं। हालांकि समय समय पर प्रशासन कुछ गतिविधियां जरूर करता है, लेकिन शिक्षण संस्थानों के नाम पर बनी पूंजीपतियों की इन इमारतों में प्रशासन की सिफारिसों को कितना और किस रूप में लागू किया जाता है, यह जग जाहिर है। शारदा विश्वविद्यालय भी इसका कतई अपवाद नहीं है।
छात्रा की आत्महत्या की यह घटना समाज के सामने भी शारदा विश्वविद्यालय जैसे अन्य शिक्षण संस्थानों की तस्वीर पेश करती है। यह घटना दर्शाती है कि शारदा विश्वविद्यालय शिक्षा व्यवस्था और छात्रों के प्रति किस स्तर तक संवेदनशील है। हालांकि इस घटना से जुड़े हुए पहलूओं में परिवार, प्रशासन, समाज और सरकारें भी अहम हैं। पुलिस भी मामले में जांच एवं कार्रवाई कर रही है। विश्वविद्यालय ने भी आंतरिक जांच के लिए समिति का गठन किया है। इस सबके बावजूद चूंकि घटना प्रत्यक्ष रूप से शारदा विश्वविद्यालय से जुड़ी हुई है, मुख्य जिम्मेदारी और जवाबदेही भी विश्वविद्यालय की ही बनती है। ऐसे में विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी एवं जवाबदेही तय होनी ही चाहिए।